पाषाण काल: 25 लाख ई.पू.- 3 हज़ार ई. पू.
- इस काल की जानकारी मुख्यता प्रस्तर अर्थात पत्थर के औज़ारो के माध्यम से प्राप्त होता है ।
- अध्ययन की सुविधा के दृष्टीकोण से पाषाण काल को तीन भागो में विभाजित किया गया है|
1. पुरापाषाण काल paleolithic age (25 लाख ई. पू.- 10 हज़ार ई.पू.)
2. मध्यपाषाण काल ( Mesolithic Age)(10 हज़ार ई. पू – 7 हज़ार ई.पू.)
3. नवपाषाण काल ( Neolithic Age ) (7 हज़ार ई. पू. -3 हज़ार ई. पू)
पुरापाषाण काल : 25 लाख ई.पू. – 10 हज़ार ई. पू.
भारतीय पुरापाषाण काल को मानव द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पत्थर के औज़ार के स्वरुप एवं जलवायु में होने वाले परिवर्तन के आधार पर 3 अवस्थाओं में विभजित किया जाता है ।
1 . निम्न / पूर्व पुरापाषाण काल ( 25 लाख ई. पू.-50 हज़ार ई.पू. )
2.मध्य पुरापाषाण काल ( 50 लाख ई. पू.- 40 हज़ार ई. पू.)
3 .उच्च पुरापाषाण काल ( 40 हज़ार ई.पू. – 10 हज़ार ई. पू. )
पूर्व पुरापाषाण काल ( 25 लाख ई. पू.- 50 हज़ार ई.पू.)
- इसे निम्न पुरापाषाण काल भी कहते है ।
- इस काल में मानव को कृषि एवं पशुपालन का ज्ञान नहीं था ।
- मानव शिकारी एवं खाधसंग्राहक था । वह केवल बड़े पशुओ का ही शिकार कर सकता था ।
- इस काल में मानव मुख्यता क्वार्ट्जाइट( स्फटिक ) पत्थर के क्रोड ( core) उपकरणों का प्रयोग करता था ।
इस काल के प्रमुख प्रस्तर उपकरण है –
1 . पेबल ( Pebble)
पत्थर के वे टुकड़े , जिनके किनारे पानी के बहाव में रगड़ खाकर चिकने और सपाट हो जाते है , पेबल कहे जाते है । इनका आकर गोल मटोल होता है ।
2 .चापर एवं चॉपिंग ( Chopper & Chopping)
जब पेबल के एक तल से शल्क उतारकर एक तरफ धार बनाई जाती है तो उसे गंडासा कहते है , और जब दोनों ओर धार बनाई जाती है तो उसे खण्डक कहते है ।
3. हेंडएक्स एवं क्लीवर ( Handaxe & Cleaver)
ऐसे तिकोने क्रोड उपकरण जिसमे दोनों तरफ धार बनाई जाती है |
हेंडएक्स मानव द्वारा निर्मित सबसे प्राचीनतम उपकरण है ।
यदि हेंडएक्स अपरिष्कृत हो तो उसे एबीबेल तथा परिष्कृत हो तो उसे एश्यूलियन खा जाता है ।
क्लीवर U तथा V आकर की होती है ।
4. स्क्रैपर ( Scraper)
इसमें किसी मोटे शल्क के एक या अनेक किनारों की घिसाई कर तेज एवं मजबूत किनारा बनाया जाता है|
5. प्वाइंट ( Point)
ऐसा शल्क उपकरण जिसमें घिसकर एक तरफ नुकीला सिरा बना दिया जाता है|
6. ब्यूरिन ( Burin)
ऐसा शल्क उपकरण जिसमें घिसकर दोनों तरफ नुकीला सिरा बना दिया जाता है |
पूर्व पाषाण कालीन उपकरण कश्मीर , केरल तथा गंगा यमुना व सिंधु के कछारी मैदानों को छोड़कर लगभग संपूर्ण भारत से प्राप्त होते हैं|
उदाहरण – सोहन नदी घाटी (पाकिस्तान ) नर्मदा और सोन नदी घाटी (मध्य प्रदेश) साबरमती व माही नदी घाटी( गुजरात) लूनी व चम्बल नदी घाटी( राजस्थान )सिंगरौली व बेलन नदी घाटी (उत्तर प्रदेश) मयूरमंज (उड़ीसा ) गोदावरी व प्रवरा नदी घाटी(महाराष्ट्र) गिद्दलूर व नल्लोर नदी घाटी (आंध्र प्रदेश) कृष्णा व तुंगभद्रा नदी घाटी( कर्नाटक) तथा तमिलनाडु से प्राप्त होते हैं |
पूर्व पाषाण काल से संबंधित स्थलों को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है:-
1. चॉपर -चॉपिंग पेबल संस्कृति( सोहन संस्कृति)
2. हेण्डएक्स संस्कृति (मद्रासीय संस्कृति)
चॉपर -चॉपिंग पेबल संस्कृति – इस संस्कृति के उपकरण सर्वप्रथम पाकिस्तान के पंजाब स्थित सोहन नदी घाटी से प्राप्त हुए हैं इसी कारण इसे सोहन संस्कृति भी कहा जाता है सोहन नदी, सिंधु नदी की एक सहायक नदी थी|
1928 ईस्वी में डी. एन.वाडिया ने इस क्षेत्र से पूर्व पाषाण काल का उपकरण प्राप्त किया था | डी.एन. वाडिया को सोहन नदी घाटी का पितामह भी कहा जाता है |नर्मदा नदी घाटी में स्थित हथनोरा (सिहोर) से मानव की खोपड़ी मिली, जो भारत में मानव अवशेष का सर्वप्रथम साक्ष्य है |
हैण्डएक्स संस्कृति
इसके उपकरण सर्वप्रथम मद्रास के समीपवर्ती क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं इसी कारण इसे ‘मद्रासीय संस्कृति’ भी कहा जाता है|
सर्वप्रथम 1863 ईस्वी में रॉबर्ट ब्रूसफुट ने मद्रास के समीप पल्लवरम नामक स्थान से प्रथम भारतीय पुरापाषाण कलाकृति हैण्डएक्स प्राप्त किया था |
रॉबर्ट ब्रूसफुट को भारतीय प्रागैतिहासिक पुरातत्व का जनक कहा जाता है |
1864 ईस्वी में रॉबर्ट ब्रूसफुट के मित्र विलियम किंग ने तमिलनाडु की कोर्तलयार नदी घाटी में स्थित अत्तिरपक्कम तथा बदमदुरै से हैण्डएक्स प्राप्त किए थे|
सोहन नदी घाटी में स्थित चौन्तरा (हिमाचल प्रदेश) से चॉपर -चॉपिंग पेबल के साथ- साथ हैण्डएक्स भी प्राप्त हुए हैं अत: सं चौन्तरा को उत्तर व दक्षिण भारत के पूर्व पुरापाषाण कालीन संस्कृति का मिलन स्थल माना गया है |
मध्य पुरापाषाण काल (50हजार ई. पू. – 40 हजार ई. पू.)
मध्य पुरापाषाण काल में भी मानव शिकारी व खाद्यसंग्राहक ही था|
इस काल में क्वार्टजाइट पत्थर के साथ-साथ जेस्पर, चर्ट, ऐंगट आदि पत्थरों के फलक / शल्क ( Flaxes) उपकरणों का प्रयोग किया जाने लगा था |
इस काल में प्रस्तर उपकरण चॉपर -चॉपिंग, हैण्डएक्स, स्क्रैपर, प्वाइंट , ब्यूरिंग आदि थे |
इस काल में सबसे अधिक फलक उपकरणों का प्रचलन था, इसलिए मध्य पुरापाषाण काल को फलक संस्कृति की संज्ञा दी गई है|
एच.डी. संकालिया ने प्रवरा नदी घाटी में स्थित नेबासा को इस संस्कृति का प्रारूप स्थल माना है|
इस काल के उपकरण भी पूर्व पुरापाषाण काल में उल्लेखित स्थानों से प्राप्त होते हैं हालांकि उत्तर- पश्चिम क्षेत्र में उतने स्थल प्राप्त नहीं होते जितने प्रायद्वीपीय क्षेत्र से प्राप्त होते हैं, इसका प्रमुख कारण पंजाब में उपयुक्त कच्चे माल का अभाव माना जाता है |
उच्च पुरापाषाण काल (40 हजार ई. पू.- 10 हजार ई. पू.)
उच्च पुरापाषाण काल में भी मानव शिकारी व खाद्यसंग्राहक ही था |
इस काल में क्वार्टजाइट, जेस्पर, चर्ट, ऐंगट पत्थर के साथ -साथ फ़्लिंट आदि पत्थरों के साथ ब्लेड उपकरणों का प्रयोग किया जाने लगा था| इस काल के प्रस्तर उपकरण चॉपर -चॉपिंग हैण्डएक्स, क्लीवर ,स्क्रैपर, प्वाइंट, ब्यूरिन आदि थे |
इस काल में सबसे अधिक ब्लेड एवं ब्यूरिन उपकरणों का प्रचलन था , इसलिए उच्च पुरापाषाण काल को ब्लेड ब्यूरिन संस्कृति की संज्ञा दी गई है |
उच्च पुरापाषाण काल में नक्काशी एवं चित्रकारी दोनों रूपों में कला का विकास हुआ |
इलाहाबाद स्थित बेलन घाटी के लोहदा नाला से इस काल अस्थिनिर्मित मातृ देवी की प्रतिमा प्राप्त होती है,जो कौशाम्बी संग्रहालय में सुरक्षित है |
विंध्य क्षेत्र में स्थित भीमबेटका ( रायसेन, म. प्र.) के शैलाश्रयों से विश्व की सबसे प्राचीनतम चित्रकारी के साक्ष्य प्राप्त होते हैं|
भीमबेटका की खोज 1958 ईस्वी में विष्णु धारक वाकड़कर के द्वारा की गई थी |
भीमबेटका के 700शैलाश्रयों में से 475 गुफाओं में शैलचित्र प्राप्त हुए हैं , जो विश्व के किसी भी स्थल से प्राप्त होने वाले सर्वाधिक शैलचित्र हैं|
यहां के शैलचित्रों में मुख्यतः हरे व लाल रंग का प्रयोग किया गया है|
भीमबेटका से नीले रंग के कुछ पाषाण खंड भी मिले हैं विष्णुधर वाकणकर के अनुसार इन नीले पाषाण खंड से चित्रकारी के लिए रंग तैयार किया जाता होगा |
भीमबेटका के शैलाश्रयों से प्राप्त चित्रों में नृत्य करता हुआ मानव समुदाय एवं शिकार करते लोग आदि चित्रों का की बहुलता है|
भीमबेटका में सर्वप्रथम उच्च पुरापाषाण काल के चित्र, जबकि सबसे अधिक संख्या में मध्य पाषाण काल के चित्र मिले हैं |
भीमबेटका से ताम्रपाषाण काल एवं ऐतिहासिक काल के चित्र भी मिलते हैं |
इस काल मे शुतुरमुर्ग के अंडे के छिलके सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश के बांदा जिले से, महाराष्ट्र के पाटने, राजस्थान के चंदेसाल एवं मध्य प्रदेश के रामनगर से प्राप्त होते हुए है |
महाराष्ट्र के पाटने से प्राप्त शुतुरमुर्ग के अंडे के छिलके पर मानव निर्मित चित्रांकन पाया गया है|
इस काल में मानव चकमक प्रस्तर उपकरण का प्रयोग करने लगा था, अर्थात वह अग्नि से परिचित तो था, परंतु उसके प्रयोग से नहीं |
मध्य पाषाण काल( 10 हजार ई. पू. – 7 हजार ई. पू.)
मध्य पाषाण कालीन प्रथम स्थल या औजार की खोज 1867 ई. में सी. एन. कार्लाइल के द्वारा की गई थी, जिन्होंने विंध्य क्षेत्र में लघु पाषाण उपकरणों को प्राप्त किया था |
इस काल में मानव मुख्यतः शिकारी एवं खाद्यसंग्राहक ही था, परंतु शिकार करने की तकनीक में परिवर्तन आ गया था|
मध्यपाषाण काल में पत्थरों के अलावा हड्डियों और सींग के औजार बनाए जाने लगे थे |
इस साल की उपकरण छोटे पत्थरों से बने हुए थे जिन्हें माइक्रोलिथिक ( सूक्ष्म पाषाण ) कहा गया है |इसलिए इस काल को माइक्रोलिथिक काल भी कहा जाता है|
इस काल के प्रमुख उपकरण स्क्रैपर ,पॉइंट ,ब्यूरिन, त्रिकोण, नबचंद्राकार, समलंब त्रिभुज आदि है |
इस काल में मानव न केवल बड़े बल्कि छोटे जानवरों जैसी- पक्षी और मछली का भी शिकार करने लगा था |
इसी काल में सर्वप्रथम तीर कमान अर्थात प्राक्षेपास्त्र तकनीकी का विकास हुआ |
इस काल में आदमगढ़ (होशंगाबाद मध्य प्रदेश) एवं बागोर (भीलवाड़ा राजस्थान )से 5000 ईसा पूर्व से पशु पालन के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त होते हैं |बागोर भारत में सबसे बड़ा मध्य पाषाण कालीन स्थल है|
मानव द्वारा पालतू बनाया गया पहला पशु कुत्ता था |
लकड़ी की डोंगी का सर्वप्रथम साक्ष्य भी इसी काल में प्राप्त होता है|
गंगा घाटी में स्थित सरायनाहर राय महादहा एवं दमदमा (प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश) नामक स्थल भारत में सबसे प्राचीनतम मध्य पाषाण कालीन स्थल है |
सराय नाहर राय एवं महादहा से सर्वप्रथम स्तंभगर्त, गर्तचूल्हो, मानव अस्थि पंजर एवं मृतक संस्कार विधि के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं|
गर्तचूल्हो मैं पशुओं की हड्डियां चली हुई है इस प्रकार मानव कच्चे मांस को पकाने लगा अर्थात अग्नि के प्रयोग से परिचित हो गया था |
सरायनाहर राय से मानवीय आक्रमण युद्ध तथा दंत रोग (ओस्टियो आर्थराइटिस) के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त होते हैं |
सरायनाहर राय , महादहा एवं दमदमा से पशुओं की हड्डियों के उपकरण तथा हिरण के सींग के छल्ले प्राप्त हुए हैं|
महादहा से हड्डियों के सर्वाधिक आभूषण प्राप्त हुए हैं|
महादहा से युग्मित शवाधान अर्थात एक ही कब्र में स्त्री- पुरुष को साथ दफनाने का साक्ष्य प्राप्त हुआ है|
इस काल में राजस्थान स्थित सांभर झील के निक्षेपों से विश्व के प्राचीनतम वृक्षारोपण के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं |
इस काल में शैलचित्रों के महत्वपूर्ण स्थल थे मोरहना पहाड़ (उत्तर प्रदेश ) ,भीमबेटका ,लाखाजुआर व आदमगढ़ (मध्य प्रदेश) कुपागल्लू ( कर्नाटक )आदि|
भीमबेटका की गुफाओं से प्राप्त सर्वाधिक चित्र मध्य पाषाण काल से संबंधित है|
मध्य पाषाण कालीन कुछ अन्य महत्वपूर्ण स्थल लंघनाज (गुजरात ),टेरी समूह (तमिलनाडु ),बीरभानपुर (पश्चिम बंगाल) आदि है |
नवपाषाण काल : 7 हजार ई. पू.- 3 हजार ई. पू.
विश्व स्तर पर इस साल की शुरुआत 9000 ई. पू.में हुई, जबकि भारत में इसकी शुरुआत 7000ई. पू. से मानी जाती है |
नवपाषाण काल का सर्वप्रथम प्रयोग 1865 ई. पू. सर जॉन लुवाक ने किया था |
नवपाषाण कालीन प्रथम स्थान या औजार की खोज ली मेसुरियर ( Le Mesurier) के द्वारा की गई थी, जिन्होंने इलाहाबाद स्थित टोंस नदी घाटी में पॉलिशदार सेल्ट प्राप्त किया था |
नवपाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है कृषि एवं स्थायी निवास का प्रारंभ , पत्थर के औजारों को पॉलिशदार व घर्षित करना , मृदभांड बनाना,पशुपालन एवं अग्नि के उपयोग का विकास आदि |
नवपाषाण काल की इन्हीं विशेषताओं को देखते हुए गार्डन चाइल्ड ने इसे नवपाषाण क्रांति की संज्ञा दी है |
पाकिस्तान स्थित पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत की की मेहरगढ़ नामक स्थान से कृषि का प्रारंभिक साक्ष्य प्राप्त होता है जिसका काल 7000 ई.पू. है |
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