भारत शासन अधिनियम 1858
इस महत्वपूर्ण कानून का निर्माण 1857 के विद्रोह के बाद किया गया जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम या ‘सिपाही विद्रोह’ भी कहा जाता है|
🔸भारत के शासन को अच्छा बनाने वाला अधिनियम नाम के प्रसिद्ध इस कानून ने, ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर दिया और गवर्नरों, क्षेत्र व राजस्व संबंधी शक्तियां ब्रिटिश राजशाही को स्थानांतरित कर दी|
विशेषताएँ
🔸इसके तहत भारत का शासन सीधा महारानी विक्टोरिया के अधीन चला गया|
गवर्नर जनरल का पद नाम बदलकर भारत का वायसराय कर दिया गया|
🔸लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने| इस अधिनियम ने नियंत्रण बोर्ड और निदेशक कोर्ट समाप्त कर भारत में द्वैध शासन की प्रणाली समाप्त कर दी|
भारत के राज्य सचिव पद का सृजन किया गया जिसमें भारतीय प्रशासन पर संपूर्ण नियंत्रण की शक्ति निहित थी|
🔸भारत सचिव की सहायता के लिए 15 सदस्य परिषद का गठन किया गया, जो एक सलाहकार परिषद थी|
परिषद का अध्यक्ष भारत सचिव को बनाया गया|
🔸1858 के कानून का प्रमुख उद्देश्य प्रशासनिक मशीनरी में सुधार था जिसके माध्यम से इंग्लैंड में भारतीय सरकार का अधीक्षण और उसका नियंत्रण हो सकता था|
इसने भारत में प्रचलित प्रशासन प्रणाली में कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया|
भारतीय परिषद अधिनियम 1861
🔸1857 की महान क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने महसूस किया कि भारत में शासन चलाने के लिए भारतीयों का सहयोग लेना आवश्यक है|
इस सहयोग नीति के तहत ब्रिटिश संसद ने 1861, 1892 और 1909 में 3 नए अधिनियम पारित किए|
🔸1861 का भारत परिषद अधिनियम भारतीय संवैधानिक और राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अधिनियम था|
विशेषताएं
🔸इसके द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई|
इस प्रकार वायसराय कुछ भारतीयों को विस्तारित परिषद में गैर- सरकारी सदस्यों के रूप में नामांकित कर सकता था
🔸1862 में लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतीयों बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया|
लॉर्ड कैनिंग द्वारा 1859 में प्रारंभ की गई पोर्टफोलियो प्रणाली को भी मान्यता दी|
🔸वायसराय को आपातकाल में बिना काउंसलिंग की संस्तुति के अध्यादेश जारी करने के लिए अधिकृत किया|
ऐसी अध्यादेश की अवधि मात्र 6 माह होती थी|
1892 का भारत परिषद अधिनियम
🔸इसमें विधान परिषदों के कार्यों में वृद्धि कर उन्हें बजट पर बहस करने और कार्यपालिका के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए अधिकृत किया|
इस अधिनियम में केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषद दोनों में गैर- सरकारी सदस्यों की नियुक्ति के लिए एक सीमित और परोक्ष रूप से चुनाव का प्रावधान किया|
🔸चुनाव शब्द का अधिनियम में प्रयोग नहीं हुआ था इसे निश्चित निकायों की सिफारिश पर की जाने वाली नामांकन की प्रक्रिया कहां गया|
1909 का भारत परिषद अधिनियम
🔸इस अधिनियम को मार्ले-मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है (उस समय लॉर्ड मार्ले इंग्लैंड में भारत के राज्य सचिव थे और लॉर्ड मिंटो भारत के वायसराय थे)
केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषद के आकार में काफी वृद्धि की| केंद्रीय परिषद में इनकी संख्या 16 से 60 हो गई|प्रांतीय विधान परिषद में इनकी संख्या एक समान नहीं थी|
🔸इस अधिनियम के अंतर्गत पहली बार किसी भारतीय को वायसराय और गवर्नर की कार्यपरिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया|
सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा वायसराय की कार्यपालिका परिषद के प्रथम भारतीय सदस्य बने| उन्हें विधि सदस्य बनाया गया था|
🔸इसके अंतर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते हैं|
इस प्रकार इस अधिनियम ने सांप्रदायिकता वैधानिकता प्रदान की और लॉर्ड मिंटो को सांप्रदायिक निर्वाचन के जनक के रूप में जाना गया|
🔸इसने प्रेसिडेंसी कारपोरेशन, चेंबर ऑफ कॉमर्स विश्वविद्यालयों और जमींदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान भी किया|
भारत शासन अधिनियम 1919
🔸 20 अगस्त 1917 को ब्रिटिश सरकार ने पहली बार घोषित किया कि उसका उद्देश्य भारत में क्रमिक रूप से उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना था|
क्रमिक रूप से 1919 में भारत शासन अधिनियम बनाया गया, जो 1921 में लागू हुआ|
🔸इस कानून को मांटेग्यू -चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा जाता है| (मांटेग्यू भारत के राज्य सचिव थे, जबकि चेम्सफोर्ड भारत के वायसराय थे )
विशेषताएं
केंद्रीय और प्रांतीय विषयों की सूची की पहचान कर एवं उन्हें पृथक कर राज्यों पर केंद्रीय नियंत्रण कम किया गया|
द्वैध शासन को दो भागों में विभक्त किया गया :-
1. केंद्र
कार्य – कानून बनाना
कौन बनाता है – जी जी वायसराय
2. प्रांत
कार्य – कानून बनाना
कौन बनाता है – गवर्नर
गवर्नर के कार्यों को दो विषयों में विभक्त किया गया है
1. आरक्षित विषय – आय वाले विषय
कौन बनाता है – गवर्नर जनरल के कार्यकारिणी परिषद के सदस्य
2. हस्तांतरित विषय – व्यय वाले विषय
कौन बनाता है – प्रांतीय विधान परिषद के निर्वाचित सदस्य कानून बनाने में मदद करते थे|
🔸दोनों अलग-अलग कानून बन रहे हैं इसलिए इसे द्वैध शासन कहते हैं|
केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषद को अपनी सूचियों के विषयों पर विधान बनाने का अधिकार प्रदान किया गया|
🔸 लेकिन सरकार का ढांचा केंद्रीय और एकात्मक ही बना रहा|
इसने प्रांतीय विषयों को पुनः दो भागों में विभक्त किया स्थानांतरित और आरक्षित|
🔸हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर का शासन होता था और इस कार्य में वह उन मंत्रियों की सहायता लेता था जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी थे|
दूसरी ओर आरक्षित विषयों पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था, जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदाई नहीं थी|
🔸शासन की इस दोहरी व्यवस्था को द्वैध शासन व्यवस्था (यूनानी शब्द डाई -आर्की से व्युत्पन्न) कहा गया हालांकि यह व्यवस्था काफी हद तक असफल रही|
इसके अनुसार वायसराय की कार्यकारी परिषद में 6 सदस्यों में से commander-in-chief को छोड़कर तीन सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक था|
🔸इसमें एक लोक सेवा आयोग का गठन किया गया अत: 1926 में सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केंद्रीय लोक सेवा आयोग का गठन किया गया| तथा 1935 में इसका नाम बदलकर संघ लोक सेवा आयोग रखा गया|
इसने पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया और राज्य विधानसभाओं को अपना बजट स्वयं बनाने के लिए अधिकृत कर दिया|
🔸 इसके अंतर्गत एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया जिसका कार्य 10 वर्ष बाद जांच के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था|
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