तुर्कों का आक्रमण Pdf(Attack of Turks UPSC)

712 ई में अरबों के आक्रमण और उसकी प्रतिक्रियास्वरूप भारत में कई प्रभावशाली साम्राज्यों का उदय हुआ, तथा  300 वर्षों तक भारत सहित सिंहल द्वीप, जावा, सुमात्रा में शासन करने वाले सम्राट अपने आपसी संघर्ष, देश में केंद्रीकृत शक्ति का आभाव, सत्तालोभ के लिए तुर्कों की सहायता आदि के कारण तुर्क मुसलमानों के आक्रमण को विफल करने में असफल रहे| अरबों द्वारा प्रारंभ किये गए कार्य तुर्कों ने पूरा किया, मुस्लिम शासन का श्रेय तुर्कों को जाता हैं|

तुर्कों का आक्रमण Pdf

भारत पर तुर्कों का आक्रमण Pdf

लड़ाकू एवं बर्बर जाती थी| तुर्क, उमैय्यावंशी शासकों के संपर्क में आने के बाद इस्लाम धर्म के संपर्क में आये| कालांतर में उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया, उनका उद्देश्य एक विशाल मुस्लिम साम्राज्य स्थापित करना था|

अलप्तगीन 

अलप्तगीन तुर्क दास था, अपनी योग्यता और दूरदर्शिता के कारण 956 ई में उसे खुरासान का राज्यपाल नियुक्त किया गया| अलप्तगीन इन परिस्थितियों में अपने लगभग 800 वफादार सैनिकों के साथ अफगान प्रदेश के गजनी नगर में बस गया और यहां स्वतंत्र गजनवी वंश की स्थापना की, अलप्तगीन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र इस्हाक और उसके बाद बल्क्तगीन गद्दी पर बैठा|

सुबुक्तगीन प्रारंभ में अलप्तगीन का गुलाम था, गुलाम की प्रतिभा से प्रभावित होकर उसने उसे अपना दामाद बना लिया और अमीर-उल-उमरा की उपाधि से सम्मानित किया| सुबक्तगीन एक योग्य तथा महत्वाकांक्षी शासक सिद्ध हुआ, उसने अपनी शक्ति को बढ़ाया और साथ ही राज्य का विस्तार भी शुरू कर दिया|

सुबुक्तगीन

सुबुक्तगीन ही प्रथम तुर्की था, जिसने हिंदुशाही शासक जयपाल को पराजित किया| सुबुक्तगीन के देहांत के बाद उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी महमूद गजनवी (998-1030) गजनवी की गद्दी पर बैठा| पिता की मृत्यु के बाद महमूद गजनवी के पास एक विशाल और सुसंगठित साम्राज्य था, इसमें कोई संदेह नहीं की सुबुक्तगीन एक वीर और गुणवान शासक था| उसने अपने राज्य का शासक 20 वर्षों तक विवेक, सुनीति और उदारता के साथ किया| भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम तुर्क (मुस्लिम) शासक सुबुक्तगीन ही था|

महमूद गजनवी(998-1030 ई)

सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र महमूद गजनवी 998 ई में 27 वर्ष की आयु में शासक बना, महमूद गजनवी ने 1000 ई से 1027 ई तक भारत में कुल 17 बार आक्रमण किया, उसके आक्रमण का मुख्य उद्देश्य भारत की संपत्ति को लूटना था| महमूद गजनवी ने 1000 ई में भारत पर आक्रमण शुरू किये तथा सीमावर्ती क्षेत्रों के दुर्गों/किलो को जीता, तत्पश्चात 1001 ई में हिंदुशाही शासक जयपाल को पेशावर के निकट पराजित किया, महमूद ने धन लेकर जयपाल को छोड़ दिया परंतु अपमानित महसूस करते हुए जयपाल ने अपने पुत्र आनंदपाल को राज्य सौंपकर आत्महत्या कर ली|

महमूद गजनवी का महत्पूर्ण आक्रमण मुल्तान पर हुआ तथा रस्ते में भेरा के निकट जयपाल के पुत्र आनंदपाल को पराजित किया और 1006 ई में मुल्तान पर विजय प्राप्त की| 1008 ई में महमूद ने पुन: मुल्तान पर आक्रमण किया और उसने अपने राज्य में मिला लिया|

1009 ई में हिंदुशाही राज्य आनंदपाल से बैहंद के निकट महमूद का युद्ध हुआ परंतु आनंदपाल पराजित हुआ और सिंध से नगरकोट तक महमूद का आधिपत्य स्थापित हो गया, 1014 ई में महमूद ने थानेश्वर पर आक्रमण किया| दिल्ली के राजा ने पड़ोसी राजाओं के साथ मिलकर महमूद को रोकने का प्रयत्न किया परंतु विफल रहे|

1018 ई में महमूद ने कन्नौज क्षेत्र पर आक्रमण किया, वहां गुर्जर-प्रतिहार शासक के प्रतिनिधि राज्यपाल का शासक था, मार्ग में बरन (बुलंदशहर) के राजा हरदत्त ने आत्मसमर्पण किया तथा मथुरा का शासक कुलचंद युद्ध भूमि में मारा गया, महमूद ने मथुरा तथा निकटवर्ती क्षेत्रों के लगभग 1000 मंदिरों में लूटपाट करके नष्ट कर दिया|

सोमनाथ मंदिर- भारत में महमूद गजनवी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अभियान (1025-26 ई) सोमनाथ मंदिर का था| उस समय वहां का शासक भीम प्रथम था, इस युद्ध में 50,000 से अधिक लोग मारे गए, महमूद इस मंदिर को पूर्णतया नष्ट करके इसकी अकूत संपत्ति को लेकर सिंध (थार मरुस्थल) के रेगिस्तान से वापस लौट गया|

अंतिम आक्रमण- महमूद ने अंतिम आक्रमण 1027 ई में जाटों पर किया और उन्हें पराजित किया क्योंकि सोमनाथ मंदिर को लूट कर वापस जाते समय महमूद को पश्चिमोत्तर में सिंध के जाटों ने क्षति पहुंचाई थी| 1030 ई में महमूद गजनवी की मत्यु हो गयी|

नोट:- महमूद के दरबार में अलबरूनी, फिरदौसी, उत्बी एवं फ़र्रुख़ी आदि विद्वान् थे, इसी के दरबार में फिरदौसी ने शाहनामा की रचना की| अलबरूनी, महमूद के आक्रमण के समय भारत आया, जिसकी प्रसिद्ध पुस्तक किताब-उल- हिंद तात्कालिक इतिहास जानने का अच्छा स्त्रोत हैं|

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भारत पर महमूद गजनवी के आक्रमण का प्रभाव 

महमूद गजनवी के आक्रमण के परिणाम स्वरूप उत्तर भारत राजनीतिक दृष्टि से असुरक्षित हो गया| महमूद के आक्रमण का राजनैतिक प्रभाव यह रहा की उसने उत्तर-पश्चिम के रक्षक हिंदुशाही वंश को समाप्त कर अन्य आक्रमणकारियों के लिए भारत का मार्ग प्रशस्त किया और पंजाब पर प्रत्यक्ष शासन स्थापित किया|

महमूद के आक्रमणों का सीधा प्रभाव तो भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ा जो पूरी तरह जर्जर हो चुकी थी| महमूद अधिकांश संपत्ति लूटकर ले गया|

महमूद के आक्रमणों का अंतिम और महत्वपूर्ण प्रभाव यह हुआ की भारत में अनेक हिंदू, मुसलमान बन गए और यहाँ इस्लाम धर्म का विस्तार हुआ|

शिहाबुद्दीन उर्फ़ मुइज़ुद्दीन मुहम्मद गौरी 

भारत में मुसलमानों के साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक मुइज़ुद्दीन मुहम्मद-बिन-साम था, जिसे शिहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी अथवा गौर वंश का मुहम्मद भी कहा जाता है| भारत पर आक्रमण करने वाला पहला मुसलमान मुहम्मद बिन कासिम था, किन्तु शीघ्र मृत्यु हो जाने के कारण कासिम भारत में मुस्लिम साम्राज्य स्थापित नहीं कर पाया, उसके आक्रमण का एकमात्र स्थायी प्रभाव सिंध की विजय थी|

कासिम के बाद महमूद गजनवी ने भारत पर कई आक्रमण किये, लेकिन उसने भी अपने आप को मात्रा लूटपाट तक ही सिमित रखा, भारत में मुसलमानों के साम्राज्य की दृढ़ नींव रखने का श्रेय मुहम्मद गौरी को ही जाता हैं|

गौरी वंश (गौर वंश) का उदय 

सर्वप्रथम 12वीं शताब्दी के मध्य में गौरी वंश (गौर वंश) का उदय हुआ| गौर, महमूद गजनवी के अधीन एक छोटा-सा पहाड़ी राज्य था, 1173 ई में गौरी यहाँ का शासक बना| मुहम्मद गौरी, गजनवी का शासक होने के नाते पंजाब को अपने राज्य का हिस्सा मानता था|

इस समय पंजाब का शासन गजनी वंश के शासक खुसरव मलिक के अधीन था, पंजाब भारत का सिंहद्वार कहा जाता था अत: इस पर आक्रमण करना उसके लिए आवश्यक हो गया| साम्राज्य स्थापना के उद्देश्य से 1175-1205 ई के मध्य गौरी ने कई बार भारत पर आक्रमण किये|

मुहम्मद गौरी का भारत पर आक्रमण 

मुहम्मद गौरी ने 1175 ई में भारत पर आक्रमण करने की शुरुआत की और मुल्तान पर आक्रमण किया| मुल्तान के मुसलमानों को परास्त कर उसने वहां अधिकार कर लिया| मुल्तान से आगे बढ़ते हुए 1178 ई में उसने पाटन (गुजरात) पर चढाई की परंतु गुजरात के शासक भीम द्वितीय द्वारा उसे पराजित होना पड़ा, मुहम्मद गौरी की भारत में यह पहली पराजय थी|

1179 ई में उसने पेशावर पर अपना नियंत्रण स्थापित किया, दो वर्ष बाद लाहौर (पंजाब) पर आक्रमण किया खुसरव मलिक ने बहुमूल्य भेंट देकर अपनी रक्षा की| 1185 ई में गौरी ने सियालकोट को जीता और वापस चला गया| 1186 ई में उसने पुन: लाहौर को जीत कर वहां के शासक खुसरव को बंदी बना लिया|

लाहौर को केंद्र बनाकर 1189 ई में मुहम्मद गौरी ने भटिंडा के दुर्ग को जीता, उस समय भटिंडा का शासक पृथ्वीराज चौहान था| भटिंडा के दुर्ग पर कब्ज़ा कर लेने से पृथ्वीराज चौहान अत्यंत क्रुद्ध हुए और यही तराइन के युद्ध का तात्कालिक कारण बना|

1191 ई के तराइन के प्रथम युद्ध में गौरी दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान से पराजित हो गया, मुहम्मद गौरी की भारत में यह दूसरी पराजय थी| 1192 ई में पुन: तराईन का युद्ध हुआ जिसमे पृथ्वीराज चौहान की पराजय हुई|

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