संविधान की प्रमुख विशेषताएं

भारतीय संविधान तत्व और मूल भावना की दृष्टि से   हालांकि उसके कई तत्व विश्व के विभिन्न विभागों से उधार लिए हैं|

🔸संविधान में  कई बड़े परिवर्तन करने वाले 42 वें संविधान संशोधन 1976 को ‘मिनी कॉन्स्टिट्यूशन’ कहा जाता है|  संविधान में  7वें , 42वें  44वें , 73वें , 74 वें,  97वें  और 101वें संविधान विशेष थे|

🔸केशवानंद भारती मामला (1973) में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी थी कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद को मिले संवैधानिक शक्ति के मूल ढांचे को बदलने की अनुमति नहीं देती|

                      संविधान की विशेषताएं

 

 1. सबसे लंबा लिखित संविधान

🔸संविधान को दो वर्गों में विभाजित किया गया है

लिखित – जैसे अमेरिका का संविधान

अलिखित –  जैसे ब्रिटेन का संविधान

🔸 भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है|

🔸मूल रूप से (1949)  संविधान में एक प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद , 22 भाग  और 8 अनुसूचियां थी|

🔸वर्तमान में (2019)  एक प्रस्तावना, 470 अनुच्छेद, 25 भाग और 12 अनुसुचियां है| विश्व के किसी अन्य संविधान में इतने अनुच्छेद और अनुसूचियां नहीं हैं|

🔸1951 से हुए विभिन्न संशोधनों ने करीब 20 अनुच्छेद व एक भाग (भाग-VII) को हटा दिया और इसमें करीब 95 अनुच्छेद, चार भाग ( 4क़ , 9क, 9ख , और 14 क ) और चार अनुसूचियों ( 9,  10, 11, 12) को जोड़ा गया|

🔸भारत के संविधान को विस्तृत बनाने के निम्न चार कारण है|

अ). भौगोलिक कारण, भारत का विस्तार एवं विविधता

ब ). ऐतिहासिक, इसके उदाहरण के रूप में शासन भारत  शासन अधिनियम 1935 के प्रभाव को देखा जा सकता है यह अधिनियम बहुत विस्तृत था|

स ). केंद्र और राज्यों के एकल संविधान

द ). विधानसभा में कानून विशेषज्ञों का प्रभुत्व

🔸 संविधान में न सिर्फ शासन के मौलिक सिद्धांत बल्कि विस्तृत रूप से प्रशासनिक प्रावधान भी विद्यमान है|

2. विभिन्न स्त्रोतों से विहित 

🔸भारत के संविधान ने अपने अधिकतर उपबंध विश्व के कई देशों के संविधान और भारत शासन अधिनियम 1935 के उपबंधों से हैं|

🔸 डॉ. भीमराव अंबेडकर ने गर्व के साथ घोषणा की थी कि,  “भारत के संविधान का निर्माण विश्व के विभिन्न संविधान को छानने के बाद किया गया है” |

🔸संविधान का अधिकांश ढांचा भारत शासन अधिनियम 1935 से लिया गया है संविधान का दार्शनिक भाग ( मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत) क्रमश: अमेरिका और आयरलैंड से प्रेरित है|

🔸भारतीय संविधान के राजनीतिक भाग ( कैबिनेट सरकार का सिद्धांत और कार्यपालिका और विधायिका के संबंध ) का अधिकांश हिस्सा ब्रिटेन के संविधान से लिया गया है|

🔸 संविधान के अन्य प्रावधान कनाडा, ऑस्ट्रेलिया , जर्मनी, यूएसएसआर ( अब रूस), फ्रांस , दक्षिण अफ्रीका, जापान इत्यादि देशों के संविधान से लिए गए हैं|

🔸संघीय व्यवस्था,  न्यायपालिका, राज्यपाल ,आपातकालीन अधिकारी, लोक सेवा आयोग और अधिकतर प्रशासनिक विवरण भारत शासन अधिनियम 1935 से लिए गए हैं|

3. नम्यता एवं अनम्यता का समन्वय

🔸यह संविधान को नम्रता और अनम्रता की दृष्टि से भी वर्णित किया जाता है कठोर या  संविधान उसे माना जाता है जिस में संशोधन करने के लिए विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता हो जैसे  – अमेरिका का संविधान

🔸लचीला या नम्य संविधान वह कहलाता है, जिसमें संशोधन की प्रक्रिया वही हो, जैसी किसी आम कानूनों के निर्माण की, जैसे – ब्रिटेन का संविधान

भारत का संविधान न तो लचीला है और न ही कठोर, बल्कि यह दोनों का मिला जुला रूप है अनुच्छेद 368 में दो तरह के संशोधनों का प्रावधान है| 

अ). कुछ उपबंधों को संसद में विशेष बहुमत से संशोधित किया जा सकता है उदाहरण दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का दो -तिहाई बहुमत और प्रत्येक सदन में कुल सदस्यों का बहुमत|

ब). कुछ अन्य प्रावधानों को संसद के विशेष बहुमत द्वारा कुल राज्यों के आधे से अधिक राज्यों के अनुमोदन से ही संशोधित किया जाता है|

एकात्मक की ओर झुकाव के साथ संघीय व्यवस्था भारत का संविधान संघीय सरकार की स्थापना करता है|

4. एकात्मता की ओर झुकाव के साथ संघीय व्यवस्था 

 🔸 भारत का संविधान संघीय सरकार की स्थापना करता है इसमें संघ के सभी आम लक्षण विद्यमान है, जैसे – दो सरकार, विभाजन, लिखित संविधान, संविधान की सर्वोच्चा संविधान की कठोरता, स्वतंत्र न्यायपालिका एवं द्विसदनीयता आदि|

🔸भारतीय संविधान में बड़ी संख्या में एकात्मक था और गैर- संघीय लक्षण भी विद्यमान है जैसे- एक सशक्त केंद्र, एक संविधान, एकल नागरिकता,

  • संविधान का लचीलापन, एकीकृत न्यायपालिका, केंद्र द्वारा राज्य की नियुक्ति, अखिल भारतीय सेवाएं आपातकालीन  प्रावधान इत्यादि|

संविधान में कहीं भी संघ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है  केवल अनुच्छेद -1 में भारत का उल्लेख ‘राज्यों के संघ’ के रूप में किया गया है|

इसके दो अभीप्राय हैं- पहला- भारतीय संघ राज्यों के बीच हुए समझौते का निष्कर्ष नहीं है, दूसरा – किसी भी राज्य को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है|

5. सरकार का संसदीय रूप

भारतीय संविधान ने अमेरिका के अध्यक्षीय प्रणाली की बजाए  ब्रिटेन के संसदीय तंत्र को अपनाया है|

🔸संसदीय प्रणाली को सरकार के ‘वेस्टमिंस्टर’,  उत्तरदायी सरकार और मंत्रिमंडलीय सरकार के नाम से भी जाना जाता है संविधान केवल केंद्र में ही नहीं बल्कि राज्य में भी संसदीय प्रणाली की स्थापना करता है|

भारत में संसदीय प्रणाली की विशेषताएं निम्नलिखित  हैं —-

1. वास्तविक व नाममात्र के कार्यपालकों की उपस्थिति

2.बहुमत वाले दल की सत्ता

3. विधायिका के समक्ष कार्यपालिका की संयुक्त जवाबदेही

4. विधायिका में मंत्रियों की सदस्यता

5. प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री का नेतृत्व

6. निचले सदन का विघटन (लोकसभा तथा विधानसभा)

उदाहरण-ब्रिटेन संसद की तरह भारतीय संसद संप्रभु नहीं है| इसके अलावा भारत का प्रधान निर्वाचित व्यक्ति होता है, जबकि ब्रिटेन में उत्तराधिकारी व्यवस्था है|

6. संसदीय संप्रभुता एवं न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वय —-

संसद की संप्रभुता का नियम ब्रिटिश संसद से जुड़ा हुआ है, जबकि न्यायपालिका की सर्वोच्चता का सिद्धांत, अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय से लिया गया है|

जिस प्रकार भारतीय संसदीय प्रणाली , ब्रिटिश प्रणाली से भिन्न है, ठीक उसी प्रकार भारत में सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक समीक्षा शक्ति अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय से कम है|

ऐसा इसलिए है क्योंकि अमेरिकी संविधान में ‘विधि की नियत प्रक्रिया’ का प्रावधान है, जबकि भारतीय संविधान में ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ (अनुच्छेद 21 ) का प्रावधान है|

7. एकीकृत व स्वतंत्र न्यायपालिका

भारतीय संविधान एक ऐसी न्यायपालिका की स्थापना करता है जो अपने आप में एकीकृत होने के साथ-साथ स्वतंत्र है|

भारत की न्याय व्यवस्था में सर्वोच्च न्यायालय शीर्ष पर है| इसके नीचे राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय है| राज्यों में उच्च  न्यायालय के नीचे क्रमवार अधीनस्थ न्यायालय हैं|

जैसे – जिला अदालतों व अन्य निचली अदालतें| न्यायालयों का एकल तंत्र, केंद्रीय कानूनों के साथ-साथ राज्य कानूनों को

  • लागू करता है| हालांकि अमेरिका में संघीय कानूनों को संघीय न्यायपालिका और राज्य कानूनों को राज्य न्यायपालिका लागू करती है|
8. मौलिक अधिकार

संविधान के तीसरे भाग में छह मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है —–

1. समानता का अधिकार      (अनुच्छेद  14 -18 )

2. स्वतंत्रता का अधिकार          ( अनुच्छेद  19 – 22 )

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार      ( अनुच्छेद 23 – 24 )

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार   (अनुच्छेद 25 – 28)

5. सांस्कृतिक व शिक्षा का अधिकार(अनुच्छेद 29 -30)

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार    ( अनुच्छेद 32 )

🔸मौलिक अधिकार का उद्देश्य वस्तुतः राजनीतिक लोकतंत्र की भावना को प्रोत्साहन देना है| यह कार्यपालिका और विधायिका के मनमाने कानूनों पर निरोधक की तरह काम करते हैं|

🔸उल्लंघन की स्थिति में इन्हें न्यायालय के माध्यम से लागू किया जा सकता है जिस व्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन हुआ है वह सीधे सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा सकता है|

🔸मौलिक अधिकार कुछ सीमाओं के दायरे में आते हैं लेकिन यह अपरिवर्तनीय भी नहीं है संसद ने संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से समाप्त कर सकती है अथवा इनमें कटौती भी कर सकती है|

🔸अनुच्छेद 20 – 21 द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छोड़कर राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान इन्हें स्थगित किया जा सकता है|

9. राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत

🔸डॉ. बी.आर. अंबेडकर के अनुसार राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत भारतीय संविधान की अनूठी विशेषता है इसका उद्देश्य संविधान के चौथे भाग में किया गया है|

🔸इन्हें  3 वर्गों में विभाजित किया गया है  – समाजवादी, गांधीवादी तथा उदार-बौद्धिक | नीति-निदेशक तत्वों का कार्य सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र को बढ़ावा देना है|

🔸इनका उद्देश्य भारत में एक ‘कल्याणकारी राज्य’ की स्थापना करना है हालांकि मौलिक अधिकारों की तरह इन्हें कानून रूप में लागू नहीं किया जा सकता|

मिनर्वा मिल्स मामले (1980) में सर्वोच्च न्यायलय ने कहा था कि, “भारतीय संविधान की नींव मौलिक अधिकारों और नीति-निदेशक सिद्धांतों के संतुलन पर रखी गई हैं”|

10. मौलिक  कर्तव्य

🔸मूल संविधान में मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख नहीं किया गया है| इन्हें स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के आधार पर 1976 के 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से आंतरिक आपातकाल ( 1975 – 77) के दौरान शामिल किया गया था|

🔸2002 के 86वें  संविधान संशोधन में एक और मौलिक कर्तव्य को जोड़ा गया| संविधान के 4ए भाग में 1 मौलिक कर्तव्यों का जिक्र किया गया है (जिसमें केवल एक अनुच्छेद – 51 कौन है)

11. एक धर्मनिरपेक्ष राज्य

🔸भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है | इसलिए यह किसी धर्म विशेष को भारत के धर्म के तौर पर मान्यता नहीं देता|

संविधान के निम्नलिखित प्रावधान भारत की धर्मनिरपेक्ष लक्षणों को दर्शाते हैं—– 

1. 1976 के 42 वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘ धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को जोड़ा गया |

2. प्रस्तावना  हर भारतीय की आस्था, पूजा-अर्चना व विश्वास की स्वतंत्रता की रक्षा करती है|

3. किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष सामान समझा जाएगा और उसे कानून की समान सुरक्षा प्रदान की जाएगी (अनुच्छेद -14)

4. धर्म के नाम पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा| ( अनुच्छेद -15)

5. सार्वजनिक  सेवाओं में सभी नागरिकों को समान अवसर दिये जाएंगे| (अनुच्छेद -16)

6. हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को अपनाने ज्योतिष के अनुसार पूजा अर्चना करने का समान अधिकार         (अनुच्छेद -25)

12. सार्वभौम वयस्क मताधिकार

🔸भारतीय संविधान द्वारा राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव के आधार स्वरूप सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया गया हैं |

🔸हर व्यक्ति जिसकी उम्र कम से कम 18 वर्ष है, उसे धर्म, जाति, लिंग, साक्षरता अथवा संपदा इत्यादि के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना मतदान करने का अधिकार है|

🔸वर्ष 1999 में 61 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1988 के द्वारा मतदान करने की उम्र को 21 वर्ष से घटाकर कर  18 दिया गया था|

13. एकल नागरिकता

भारतीय संविधान फेडरल है और 2 लक्षणों (एकल व संघीय ) का प्रतिनिधित्व करता है मगर इसमें केवल एकल नागरिकता का प्रावधान है अर्थात भारतीय नागरिकता|

दूसरी और , अमेरिका जैसे देशों में प्रत्येक व्यक्ति के पास न केवल देश की नागरिकता होती है बल्कि वह जिस राज्य में रहता है उसकी  भी नागरिकता है|

इसलिए अधिकारों के दो समूहों का लाभ उठाता है –

पहला     –   राष्ट्रीय सरकार द्वारा प्रदत्त सरकार|

दूसरा      –  राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त|

14. स्वतंत्र निकाय

भारतीय संविधान की केवल विधायिका , कार्यपालिका व सरकार (केंद्र और राज्य ) न्यायिक अंग ही उपलब्ध कराता है |

बल्कि यह कुछ स्वतंत्र निकायों की स्थापना भी करता है| इन्हें संविधान ने भारत सरकार की लोकतांत्रिक तंत्र के महत्वपूर्ण स्तम्भ के रूप में परिकल्पित किया हैं|

15. आपातकालीन प्रावधान

आपातकाल की स्थिति से प्रभावशाली ढंग से निपटने के लिए भारतीय संविधान में राष्ट्रपति के लिए वृहद आपातकालीन प्रावधान की व्यवस्था है|

इन प्रावधानों को संविधान में शामिल करने का उद्देश्य – देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता और सुरक्षा , संविधान एवं देश के लोकतांत्रिक ढांचे को सुरक्षा प्रदान करना है|

1.राष्ट्रीय आपातकाल :-  युद्ध , आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह पैदा हुई राष्ट्रीय अशांति की अवस्था (अनुच्छेद – 352)

2. राज्य में आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) :- राज्य में संवैधानिक तंत्र की असफलता (अनुच्छेद 356) या केंद्र के निदेशकों का अनुपालन करने में असफलता (अनुच्छेद 365)

3. वित्तीय आपातकाल :- भारत की वित्तीय स्थिरता या प्रत्यय संकट में हो (अनुच्छेद 360)

आपातकाल के दौरान देश की सत्ता केंद्र सरकार के हाथों में आ जाती है, राज्य केेंद्र के नियंत्रण में कार्य करते है|

16. त्रिस्तरीय सरकार

मूल रूप से अन्य संघीय संविधानों की तरह भारतीय संविधान में दो स्तरीय राज्व्यवस्था (केंद्र व राज्य) और संगठन के संबंध में प्रावधान तथा केंद्र एवं राज्यों की शक्तियां थी|

  • बाद में वर्ष 1992 में 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन में तीन स्तरीय ( स्थानीय)  सरकार का प्रावधान किया गया, जो विश्व के किसी और संविधान में नहीं है|

संविधान में एक नए भाग (9वें ) एवं नई अनुसूची (11वीं ) जोड़कर वर्ष 1992 के 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायतों को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई|

इसमें एक नया  भाग 9 जोड़ा गया, इसी प्रकार से 74वें संविधान संशोधन विधेयक, 1992 में एक नए भाग 9ए तथा अन्य अनुसूची 12वीं को जोड़कर नगरपालिकाओं ( शहरी स्थानीय सरकारें ) को संवैधानिक मान्यता प्रदान की|

17. सहकारी समितियां

97वां संविधान संशोधन अधिनियम 2011 में सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा और संरक्षण प्रदान किया| इस संदर्भ में निम्न तीन परिवर्तन संविधान में इसने किए —

1. इसने सहकारी समिति गठित करने के अधिकार को मौलिक अधिकार बना दिया (अनुच्छेद 19)

2. इसने एक नया राज्य के नीति निदेशक तत्व जोड़ा सहकारी समितियों के प्रोत्साहन देने के लिए (अनुच्छेद 43-B)

3. इसने संविधान में एक नया भाग IX- B जोड़ा-  “सहकारी समितियां ” ( The Co-operative Societies) शीर्षक से (अनुच्छेद 243 ZH से लेकर 234 -ZT तक )

नए भाग 9B के अंतर्गत देशभर में सहकारी समितियां लोकतांत्रिक , व्यवसायिक , स्वायत्त ढंग से तथा आर्थिक मजबूती के साथ कार्य करें |

 

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