संविधान की मूल संरचना का तात्पर्य संविधान में निहित उन प्रावधानों से है, जो संविधान और भारतीय राजनीतिक और लोकतांत्रिक आदर्शों को प्रस्तुत करता है। इन प्रावधानों को संविधान में संशोधन के द्वारा भी नहीं हटाया जा सकता है।
यद्यपि संविधान में मूल संरचना स्पष्ट रूप से उल्लिखित नहीं है किंतु न्यायालय के विभिन्न वादों के निर्णयों के माध्यम से इसे स्पष्टत: समझा जा सकता है। भारत में संविधान की आधारभूत संरचना के सिद्धांत को केशवानंद भारती मामले से जोड़ कर देखा जा सकता है।
संविधान की मूल संरचना
संविधान के 24वें संशोधन पर विचार करते समय न्यायालय ने निर्णय दिया कि विधायिका अनुच्छेद 368 के तहत संविधान की मूल संरचना को नहीं बदल सकती।
न्यायालय का एक तर्क यह था कि संविधान सभा का महत्त्व वर्तमान के विधायिका की तुलना में अधिक है, इसलिये विधायिका संविधान के सार-तत्त्व को नहीं बदल सकती। साथ ही इसमें संविधान की सर्वोच्चता, संविधान की धर्मनिरपेक्षता, व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा जैसे तत्त्वों को संविधान की आधारभूत संरचना का भाग है।
संविधान के अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती हैं| या नहीं यह विषय संविधान लागू होने के एक वर्ष पश्चात् ही सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विचारार्थ आया| शंकरी प्रसाद मामला (1951) में पहले सशोधन अधिनियम (1951) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गयी| जिसमे सम्पत्ति के अधिकार में कटौती की गयी थी|
सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी की संसद में अनुच्छेद 368 में संशोधन की शक्ति अंतनिर्हित हैं| अनुच्छेद-13 में विधि (Law) शब्द के अंतर्गत मात्र सामान्य विधियां (कानून) ही आती हैं, संवैधानिक संशोधन अधिनियम ( संवैधानिक नियम ) नहीं, इसलिए संसद संविधान संशोधन अधिनियम पारित कराकर भौतिक अधिकारों को संक्षिप्त कर सकती हैं अथवा किसी मौलिक अधिकार को वापस ले सकती हैं|
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संविधान की मूल संरचना के तत्व
वर्तमान में संसद अनुच्छेद 368 के अधीन संविधान के किसी भी भाग , मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती हैं, बशर्ते की इससे संविधान की मूल संरचना प्रभावित न हो| सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट किया गया है की मूल संरचना के तत्व कौन – से हैं|
- संविधान की सर्वोच्चता
- संविधान का धर्मनिरपेक्ष
- भारतीय राजनीती की सार्वभौम , लोकतान्त्रिक तथा गणराज्य प्रकृति
- विधायिका , कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के बीच शक्ति का विभाजन
- संविधान का संघीय स्वरूप
- राष्ट्र की एकता एवं अखंडता
- कल्याणकारी राज्य ( सामाजिक – आर्थिक न्याय )
- न्यायिक समीक्षा
- संसदीय प्रणाली
- वैयक्तिक स्वतंत्रता एवं गरिमा
- कानून का शासन
- मौलिक अधिकारों तथा नीति-निदेशक सिद्धांतों के बीच सौहार्द और संतुलन
- समत्व का सिद्धांत
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव
- संविधान संशोधन की संसद की सीमित शक्ति
- न्याय तथा प्रभावकारी पहुँच
- मौलिक अधिकारों के आधारभूत सिद्धांत
- अनुच्छेद 32, 136, 141 तथा 142 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को प्राप्त शक्तियां
- अनुच्छेद 226 तथा 227 के अंतर्गत उच्च न्यायालयों की शक्ति
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महत्वपूर्ण मामलें
- शंकरी प्रसाद बनाम भारतीय संघ (1951)
- गोलकनाथ बनाम पंजाब सरकार (1967)
- केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार (1973)
- इंदिरा गाँधी बनाम राजनारायण (1975)
- मिनर्वा मिल्स बनाम भारतीय संघ (1980)
- वामन राव बनाम भारतीय संघ (1981)
- सेंट्रल कोलफ्रील्डस लिमिटेड बनाम जायसवाल कॉल कंपनी (1980)
- भीमसिहं बनाम भारतीय संघ (1981)
- एस पी सम्पथ कुमार बनाम भारतीय संघ (1987)
- पी सम्बामूर्ति बनाम आंध्र प्रदेश (1987)
- दिल्ली ज्यूडिशियल सर्विस एसोसिएसन बनाम गुजरात राज्य (1991)
- इंद्रा साहनी बनाम भारतीय संघ (1992)
- कुमार पद्म प्रसाद बनाम जचिल्हू (1992)
- कीहोतो होलाहोन बनाम सचिल्ड (1993)
- रघुनाथ रओ बनाम भारतीय संघ (1993)
- एस आर बोम्मई बनाम भारतीय संघ (1994)
- एल चंद्रकुमार बनाम भारतीय संघ (1997)
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Conclusion |
आशा है की आप इस आर्टिकल को अच्छे समझ गए होंगे और अपनी तैयार को बेहतर बनाएंगे| क्योकि परिश्रम ही सफलता की कुंजी है, जितना आप परिश्रम करेंगे उतना ही आप सफल होंगे| यदि आप के मन में इस आर्टिकल से सम्बंधित कोई सवाल हो तो आप मुझे कमेंट बॉक्स में msg कर सकते हैं|
कुछ महत्वपूर्ण बातें
शपथ एवं त्यागपत्र |
पद | शपथ | त्यागपत्र |
राष्ट्रपति | मुख्य न्यायाधीश | उपराष्ट्रपति |
उपराष्ट्रपति | राष्ट्रपति | राष्ट्रपति |
राज्यपाल | राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश | राष्ट्रपति |
मुख्य न्यायाधीश | राष्ट्रपति | राष्ट्रपति |
प्रधानमंत्री | राष्ट्रपति | राष्ट्रपति |
FAQ
Q.1 संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत किसने दिया?
Ans. संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य’ मामले में 24 अप्रैल 1973 को सुप्रीम कोर्ट की 13 सदस्यीय बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था| इस फैसले के पश्चात संविधान की मूल संरचना या मूल ढांचा का कॉन्सेप्ट सामने आया था|
Q.2 संविधान के मूलभूत चार सिद्धांत कौन कौन से हैं?
Ans. संविधान के मूलभूत संरचना सिद्धांत की व्याख्या इस तरह से की गई जिसमें संविधान की सर्वोच्चता, कानून का शासन, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत, संघवाद, धर्मनिरपेक्षता, संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य, सरकार की संसदीय प्रणाली को शामिल माना गया|
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