संविधान के भाग – I अंतर्गत अनुच्छेद 1 से 4 तक में संघ एवं उसके क्षेत्रों की चर्चा की गई है|
अनुच्छेद – 1
अनुच्छेद – 1 में कहा गया है कि इंडिया यानी भारत ‘राज्यों के समूह’ के बजाय ‘राज्यों का संघ’ होगा|
🔸यह व्यवस्था दो बातों को स्पष्ट करती है, एक – देश का नाम और दूसरी – राज्य पद्धति का प्रकार
🔸संविधान सभा में देश के नाम को लेकर किसी तरह ka कोई मतैक्य नहीं था|
🔸कुछ सदस्यों ने सलाह दी कि इसके परंपरागत नाम (भारत ) को रहने दिया जाए जबकि कुछ में आधुनिक नाम (इंडिया) की वकालत की, इस तरह संविधान सभा में दोनों को स्वीकार किया (इंडिया जो कि भारत है)|
🔸दूसरे, देश को संग बताया गया| यद्यपि संविधान का ढांचा संघीय है, डॉ. बी. आर. अंबेडकर के अनुसार राज्यों का संघ` उक्ति को संघीय राज्य के स्थान पर महत्व देने के दो कारण है|
🔸 पहला – भारतीय संघ राज्यों के बीच में कोई समझौते का परिणाम नहीं है जैसे – कि अमेरिका संघ में और दूसरा – राज्यों को संघ से विभक्त होने का कोई अधिकार नहीं है|
🔸 यह संघ है, यह भी विभक्त नहीं हो सकता है पूरा देश एक है जो विभिन्न राज्यों में प्रशासनिक की सुविधा के लिए बटा हुआ है|
🔸 अनुच्छेद 1 के अनुसार भारतीय क्षेत्र को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
1. राज्यों के क्षेत्र (28 राज्य )
2. संघ क्षेत्र ( 8 केंद्रशासित प्रदेश )
3. ऐसे क्षेत्र जिन्हें किसी भी समय भारत सरकार द्वारा अधिगृहित किया जा सकता है|
🔸 राज्यों एवं संघ शासित राज्यों के नाम , उनके क्षेत्र विस्तार को संविधान की पहली अनुसूची में दर्शाया गया हैं|
🔸वर्तमान समय में 28 राज्य एवं 8 केंद्र शासित प्रदेश है राज्यों के संदर्भ में संविधान के उपबंध की व्यवस्था सभी राज्यों पर समान रूप से लागू है|
🔸 यद्यपि (भाग XXI के अंतर्गत) कुछ राज्यों के लिए विशेष उपबंध है ( इनमें शामिल है – महाराष्ट्र , गुजरात, नागालैंड, असम, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, सिक्किम, मिजोरम , अरुणाचल प्रदेश गोवा एवं कर्नाटक ( अनुच्छेद -371)|
- इसके अतिरिक्त पांचवी एवं छठी अनुसूचियों में राज्य के भीतर अनुसूचित एवं जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिए विशेष उपबंध है|
🔸उल्लेखनीय है कि ‘भारत के क्षेत्र ‘ भारत का संघ ‘ से ज्यादा व्यापक अर्थ समेटे है क्योंकि बाद वाले में सिर्फ राज्य शामिल है|
🔸जबकि पहले में न केवल राज्य बल्कि संघ शासित क्षेत्र एवं वे क्षेत्र, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा भविष्य में कभी भी अधिगृहित किया जा सकता है, शामिल है
🔸संघीय व्यवस्था में राज्य इसके सदस्य हैं और केंद्र के साथ शक्तियों के बंटवारे में हिस्सेदार है|
🔸 दूसरी तरफ संघ शासित क्षेत्र एवं केंद्र द्वारा अधिकृत क्षेत्र में सीधे केंद्र सरकार का प्रशासन होता है|
🔸एक संप्रभु राज्य होने के नाते भारत अंतराष्ट्रीय कानूनों के तहत विदेशी क्षेत्र का भी अधिग्रहण कर सकता है|
- उदाहरण के लिए सत्तातरण (संधि के अनुसार खरीद, उपहार या लीज, जिसे अभी तक किसी मान्य शासक ने अधिगृहित ना किया हो) जीत या हारकर |
🔸 उदाहरण के लिए भारत में संविधान लागू होने के बाद कुछ विदेशी क्षेत्रों का अधिग्रहण किया, जैसे – दादर और नागर हवेली, गोवा, दमन एवं दीव , पुडुचेरी एवं सिक्किम|
◾️अनुच्छेद – 2
🔸अनुच्छेद 2 में संसद को यह शक्ति दी गई है कि संसद, विधि द्वारा, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी|
🔸इस तहत अनुच्छेद 2 संसद को दो शक्तियां प्रदान करता है – अ). नये राज्यों को भारत के संघ में शामिल करना ब ). नये राज्यों को गठन करने की शक्ति
🔸पहले शक्ति उन राज्यों के प्रवेश को लेकर है जो पहले से अस्तित्व में हैं , दूसरी शक्ति नये राज्य जो अस्तित्व में नहीं है के गठन को लेकर हैं|
🔸 अनुच्छेद 2 उन राज्यों, जो भारतीय संघ के हिस्से नहीं है, के प्रवेश एवं गठन से संबंधित है|
◾️अनुच्छेद -3
🔸दूसरी ओर अनुच्छेद 3 भारतीय संघ के नए राज्यों के निर्माण या वर्तमान राज्यों में परिवर्तन से संबंधित है|
🔸दूसरे शब्दों में अनुच्छेद 3 में भारतीय संघ के राज्यों के पुनर्सीमन की व्यवस्था करता है|
◾️ राज्यों के पुनर्गठन संबंधी संसद की शक्ति
अ). किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्य क्षेत्र को किसी राज्य के बाहर के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण करना
ब ). किसी राज्य के क्षेत्र को बढ़ाना
स ).किसी राज्य का क्षेत्र घटाना
द).किसी राज्य की सीमा में परिवर्तन करना
ड़). किसी राज्य के नाम में परिवर्तन करना
🔸 हालांकि इस संबंध में अनुच्छेद 3 में दो शर्तों का उल्लेख किया गया है|
🔸पहला – उपरोक्त परिवर्तन से संबंधित कोई अध्यादेश राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बाद ही संसद में पेश किया जा सकता है|
दूसरा – संस्तुति से पूर्व राष्ट्रपति उस अध्यादेश को संबंधित राज्य के विधानमंडल का मत जानने के लिए भेजता हैं , यह मत निश्चित सीमा के भीतर दिया जाना चाहिए|
🔸 इसके अतिरिक्त संसद की नए राज्यों का निर्माण करने की शक्ति में किसी राज्य या संघ क्षेत्र के किसी भाग को किसी अन्य राज्य संघ क्षेत्र में मिलाकर अथवा नए राज्य या संघ क्षेत्र में मिलाकर अथवा में राज्य क्षेत्र का निर्माण सम्मिलित है|
🔸 राष्ट्रपति ( या संसद ) राज्य विधानमंडल के मतों को मानने के लिए बाध्य नहीं है, और इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है, भले ही उसका मत समय पर आ गया हो|
🔸संशोधन संबंधी अध्यादेश के संसद में आने पर हर बार राज्य के विधानमंडल के लिए नया संदर्भ बनाना जरूरी नहीं|
🔸 संघ क्षेत्र के मामले से संबंधित विधानमंडल के संदर्भ में की कोई आवश्यकता नहीं, संसद जब उचित समझे स्वयं कदम उठा सकती है|
🔸इस तरह यह स्पष्ट है कि संविधान, संसद को यह अधिकार देता है कि वह नए राज्य बनाने , उसमें परिवर्तन करने, नाम बदलने या सीमा में परिवर्तन के संबंध में बिना राज्यों की अनुमति के कदम उठा सकती है|
🔸 दूसरे शब्दों में, संसद अपने अनुसार भारत के राजनीतिक मानचित्र का पुनर्निर्धारण कर सकती है|
🔸इस तरह संविधान द्वारा क्षेत्रीय की एकता या राज्य के अस्तित्व को गारंटी नहीं दी गई है, इस तरह भारत को सही कहा गया है, विभक्त राज्यों का अविभाज्य संघ|
🔸 संघ सरकार राज्य को समाप्त कर सकती है जबकि राज्य सरकार संघ को समाप्त नहीं कर सकती
🔸दूसरी तरफ अमेरिका में क्षेत्रीय एकता या राज्यों के अस्तित्व को संविधान द्वारा गारंटी दी गई है|
🔸अमेरिकी संघीय सरकार नए राज्यों का निर्माण व उनकी सीमा में परिवर्तन बिना संबंधित राज्यों की अनुमति के नहीं कर सकती , इसलिए अमेरिका को ‘अविभाज्य राज्यों का अविभाज्य संघ ‘ कहा गया है|
◾️अनुच्छेद – 4
🔸 संविधान (अनुच्छेद 4) में स्वयं यह घोषित किया गया है कि नए राज्यों का प्रवेश या गठन (अनुच्छेद 2 के अंतर्गत) नए राज्यों के निर्माण, सीमाओं, क्षेत्रों और नामों में परिवर्तन (अनुच्छेद 3 के अंतर्गत ) को संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन नहीं माना जाएगा|
🔸अर्थात इस तरह का कानून एक सामान्य बहुमत और साधारण विधायी प्रक्रिया के जरिए पारित किया जा सकता है|
◾️बांग्लादेश के साथ क्षेत्रों का आदान -प्रदान
🔸100वां संविधान संशोधन अधिनियम 2015 को भारत द्वारा कुछ भूभाग का अधिग्रहण किया गया जबकि कुछ भाग को बांग्लादेश को दे दिया गया|
🔸उस समझौते के तहत जो भारत और बांग्लादेश की सरकारों के बीच हुआ| इस लेन -देन में भारत ने 111 विदेशी अंत:क्षेत्रों को बांग्लादेश को सौंप दिया गया जबकि बांग्लादेश 51 अंत:क्षेत्रों को भारत को हस्तांतरित किया|
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