नोनिया विद्रोह PDF

नोनिया विद्रोह 1770-1800 ई तक चला| नोनिया विद्रोह बिहार के मुख्य शोरा/सोडा उत्पादक केंद्र हाजीपुर, तिरहुत, सारण और पूर्णिया में हुआ था| इस समय में बिहार शोरा उत्पादन का प्रमुख केंद्र था| शोरा का उत्पादन बारूद बनाने के लिए किया जाता था| शोरा उत्पादन करने का कार्य मुख्य रूप से नोनिया जाति द्वारा किया जाता था|

नोनिया विद्रोह 

नोनिया विद्रोह 1770-1800ई के मध्य बिहार के प्रमुख शोरा उत्पादक केंद्रों तिरहुत , सारण , हाजीपुर और पूर्णिया में हुआ था| मुख्य रूप से नोनिया समुदाय द्वारा शोरा उत्पाद का कार्य किया जाता था तथा शोरा का उपयोग बारूद बनाने में किया जाता था|

बिचौलिए ( असामी ) कच्चा शोरा ब्रिटिश कंपनी को देते थे| ब्रिटिश कंपनी शोरा मूल्य प्रति मन 12 से 15 आना देते थे जबकि अन्य व्यापारी जो कंपनी से सम्बंधित नहीं थे वे 3 से 4 रुपए प्रति मन देते थे|

नोनिया समुदाय गुप्त रूप से शोरे का व्यापर अन्य व्यापारियों से करने लगे इस बात की जानकारी ब्रिटिश को होने पर ब्रिटिश ने क्रूरता करना आरम्भ कर दिया जिसका नोनिया समुदाय ने विरोध किया|

नोनिया जाति का इतिहास

नोनिया जाति नमक, खाड़ी और शोरा के खोजकर्ता और निर्माता हैं| प्राचीन काल में नोनिया जाति नमक बना कर देश ही नहीं दुनिया को देती थी| नोनिया जाति द्वारा तोप और बंदूक के आविष्कार के शुरुआती दिनों में इनके द्वारा बनाये जाने वाले एक विस्फोटक पदार्थ शोरा के बल पर ही दुनिया में शासन करना संभव था| प्राचीन भारत में नमक, खाड़ी और शोरा के कुटिर उद्योग पर नोनिया समाज का ही एकाधिकार था, क्योंकि इसको बनाने की विधि इन्हें ही पता था की रेह (नमकीन मिट्टी) से यह तीनों पदार्थ कैसे बनेगा| प्राचीन समय में नमक बनाने वाली नोनिया जाति देश की आर्थिक तौर पर सबसे सम्पन्न जाति हुआ करती थी| इनके एक उत्पाद शोरा को अंग्रेज सफ़ेद सोना भी कहते थे यह उस समय में बहुत बेसकिमती था|

नोनिया विद्रोह का कारण

नोनिया जाति के लोग बिहार में दुनियां के सबसे उच्च कोटि के शोरा का निर्माण करते थे और इसका व्यापक वे अपनी मर्जी से डच, पुर्तगाली, फ्रांसीसी और ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेजों से किया करते थे जिसका इस्तेमाल तोप के गोलों और बंदूक की गोलियों में गन पाउडर के रूप में किया जाता था। लेकिन अब बिहार के शोरा और नमक का उत्पादन तथा व्यापार अंग्रेजों के हाथ में आ गया और शोरा के लिए 2 से 4 रुपए प्रति मन और कच्चा शोरा 1 से 4 आना प्रति मन आसामी कंपनी से लेते थे।

नोनिया लोगों को 12, 14 या 5 आना प्रति मन देते थे, जबकि अन्य व्यापारी जो कंपनी से संबंधित नहीं थे, वे नोनिया लोगों को 3 रुपए प्रति मन शोरा देते थे। अतः कंपनी द्वारा नोनिया लोगों का अत्यधिक शोषण हो रहा था, इसलिए गुप्त रूप से वे लोग व्यापारियों को शोरा बेचने लगे। इसकी जानकारी जब ब्रिटिश सरकार को हुई, तब उसने नोनिया लोगों पर क्रूरतापूर्वक कार्रवाई की। इसी कारण नोनिया विद्रोह का आरंभ हुआ।

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Conclusion 

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