मध्यकालीन भारत का इतिहास

प्राचीन भारतीय इतिहास की तुलना में  मध्यकालीन भारत के  इतिहास से संबंधित ऐतिहासिक सामग्री प्रचुर मात्रा में हैं| इसका मुख्य कारण प्राचीन काल में ऐतिहासिक ग्रंथों का अभाव या फिर उनकी उपलब्धता की कमी हैं| मध्यकालीन भारतीय इतिहास जानने के लिए ऐतिहासिक स्त्रोतों की कमी नहीं हैं|

इतिहास लेख में मुस्लिम सुल्तान और उलेमा रूचि रखते थे| मुस्लिम इतिहासकारों ने सुल्तान और उनकी भारतीय विजयों का विस्तृत विवरण दिया हैं|

 

मध्यकालीन भारत का इतिहास
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मध्यकालीन भारत का इतिहास (712ई.- 1707ई.)

साहित्यिक स्त्रोतों के अतिरिक्त मध्यकालीन भारत में विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतांत, शिक्षित सुल्तानों की आत्मकथा, विजय अभियानों के बाद स्थापित विजय स्मारक, विजय स्तंभ आदि ऐतिहासिक स्त्रोतों से भी पर्याप्त जानकारी मिलती हैं|

मध्यकालीन भारत के इतिहास को मुख्यत: 5 भागों में विभक्त किया गया हैं।

राष्ट्रकूट , पाल वंश और प्रतिहार वंश का काल

राजपूत काल

धार्मिक आंदोलन

दिल्ली सल्तनत का काल

मुग़ल काल

सल्तनतकालीन प्रमुख ऐतिहासिक स्त्रोत साहित्यिक साक्ष्य

तारीख-उल-हिंद

इस पुस्तक की रचना अलबरूनी द्वारा की गयी, वह महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत आया था वह अरबी और फ़ारसी भाषा का ज्ञाता था| इस पुस्तक में अलबरूनी ने 11वीं शताब्दी के प्रारंभ में हिन्दुओं के साहित्य, विज्ञान तथा धर्म का सजीव वर्णन किया है| इस पुस्तक के अध्ययन से तात्कालिक सामाजिक दशा का पर्याप्त ज्ञान होता हैं|

चचनामा

यह पुस्तक अरबी भाषा में लिखी गयी है, इसका लेखक अली अहमद हैं, इसमें चच राजवंश के इतिहास तथा अरबों द्वारा सिंध विजय का वर्णन किया गया हैं| चचनामा अरबों की सिंध-विजय की जानकारी का मूल स्त्रोत हैं|

ताज-उल-मासिर

इसकी रचना हसन निजामी द्वारा की गयी| इस पुस्तक में 1192 ई से 1228 ई तक के भारत की घटनाओं का विवरण दिया गया हैं| इसमें राजनीतिक घटनाओं के साथ-साथ सामाजिक तथा धार्मिक जीवन का उल्लेख भी किया गया हैं|  दिल्ली सल्तनत के प्रारंभिक दिनों का प्रामाणिक इतिहास इस पुस्तक में पर्याप्त रूप से मिलता हैं| यह पुस्तक अरबी एवं फ़ारसी दोनों भाषों में लिखी गयी हैं|

तारीख-ए-फिरोजशाही

यह पुस्तक जियाउद्दीन बरनी द्वारा लिखी गयी हैं, यह तुगलक शासकों का समकालीन था, तारीख-ए-फिरोजशाही में बलबन के सिंहासनारोहण से लेकर फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल के छठे वर्ष तक का वर्णन हैं| इस पुस्तक में उस काल के सामाजिक, आर्थिक जीवन तथा न्याय सुधारों का वर्णन किया गया हैं| इसके साथ ही अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल की सामाजिक तथा आर्थिक दशा का इस पुस्तक में सजीव वर्णन मिलता हैं| इस पुस्तक की सिमा धार्मिक पक्षपात है| हालाँकि समकालीन इतिहास वर्णन की दृष्टि से इसका ऐतिहासिक महत्व हैं|

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FAQ

Q.1 मध्यकालीन भारतीय इतिहास के कौन-कौन से स्रोत होते थे?

Ans. मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत हो सकते हैं। इतिहासिक लेखन, राजवंशावली, पुराण, काव्य और साहित्य, यात्रा वृत्तांत, शिलालेख, मुन्शिपाटनी लेख, आर्किव्स, पुस्तकालय आदि।

Q.2 शिलालेखों का मध्यकालीन भारतीय इतिहास में क्या महत्व था?

Ans. शिलालेखों के माध्यम से हमें मध्यकालीन भारतीय समाज, धार्मिक प्रथाएँ, राजनीति, और सांस्कृतिक अवशेष मिलते थे।

Q.3 मुन्शिपाटनी लेख क्या थे और इनसे क्या जानकारी प्राप्त होती थी?

Ans. मुन्शिपाटनी लेख गांवों में लिखे गए दस्तावेज थे जिनमें स्थानीय जीवन, समाज, और आर्थिक कार्यक्रम की जानकारी होती थी।

Q.4 मध्यकालीन भारत के इतिहास काव्य और साहित्य की जानकारी कैस प्रदान करते थे?

Ans. काव्य और साहित्य मध्यकालीन भारत की समाजिक जीवनशैली, संस्कृति, और ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी प्रदान करते थे।

Q.5 आर्किव्स और पुस्तकालयों में संग्रहित स्रोत मध्यकालीन भारतीय इतिहास के क्यों महत्वपूर्ण थे?

Ans. आर्किव्स और पुस्तकालयों में संग्रहित स्रोत हमें मध्यकालीन भारत के इतिहास, संस्कृति, और समाज की सूचना प्रदान करते थे और विश्वविद्यालयों में अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण थे।

Q.6 मध्यकालीन भारत में? पुराणों के भूमिका क्या थी?

Ans. पुराणों के माध्यम से विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएँ, अद्भुत कथाएँ, और इतिहासिक जानकारी मध्यकालीन भारत में प्रसारित होती थी।

Q.7 मध्यकालीन भारत में कौन-कौन से स्रोत यात्रा वृत्तांतों से जुड़े थे?

Ans. यात्रा वृत्तांतों के माध्यम से यात्रिकों के अनुभव, स्थलीय जीवन, और संस्कृति की जानकारी प्राप्त होती थी।

 

Conclusion 

आशा है की आप इस आर्टिकल को अच्छे समझ गए होंगे और यदि आप के मन में इस आर्टिकल से सम्बंधित कोई सवाल हो तो आप मुझे कमेंट बॉक्स में msg कर सकते है।

 

 

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