भारत का संविधान अपने स्वरुप में संघीय है तथा समस्त शक्तियां ( विधायी, कार्यपालिका, और वित्तीय ) केंद्र एवं राज्यों के मध्य विभाजित है| यद्धपि न्यायिक शक्तियों का बंटवारा नहीं हैं| संविधान में एकल न्यायिक व्यवस्था की स्थापना की गयी हैं, जो केंद्रीय कानूनों की तरह ही राज्य कानूनों को लागू करती हैं|
केंद्र एवं राज्य अपने अपने क्षेत्र में प्रमुख है, तथा संघीय तंत्र के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए इनके मध्य अधिकतम सहभागिता एवं सहकारिता आवश्यक हैं| इस तरह संविधान ने केंद्र-राज्य संबंधों को लेकर विभिन्न मुद्दों पर व्यवस्थाएं स्थापित की हैं|
केंद्र-राज्य संबंध का अध्ययन
केंद्रों एवं राज्यों के संबंधों का अध्ययन तीन प्रकार से किया जा सकता हैं-
- विधायी संबंध
- प्रशासनिक संबंध
- वित्तीय संबंध
विधायी संबंध
संविधान के भाग XI में अनुच्छेद 245-255 तक केंद्र-राज्य विधायी संबंधों की चर्चा की गयी हैं| इसके अतिरिक्त कुछ अन्य अनुच्छेद भी इस विषय से संबंधित हैं|
किसी अन्य संघीय संविधान की तरह भारतीय संविधान भी केंद्रों एवं राज्यों के बीच उनके क्षेत्र के हिसाब से विधायी शक्तियों का बंटवारा करता हैं| इसके अतिरिक्त संविधान पांच असाधारण परिस्थितियों के अंतर्गत राज्य क्षेत्र में संसदीय विधान सहित कुछ अन्य मामलों में राज्य विधानमंडल पर केंद्र की व्यवस्था करता हैं|
केंद्र-राज्य विधायी संबंधों के मामले में चार स्थितियां हैं|
- केंद्र और राज्य विधान के सीमांत क्षेत्र
- विधायी विषयों का बंटवारा
- राज्य क्षेत्र में संसदीय विधान
- राज्य विधान पर केंद्र का नियंत्रण
केंद्र और राज्य विधान के सीमांत क्षेत्र
संविधान ने केंद्र और राज्यों को प्रदत्त शक्तियों के संबंध में स्थानीय सीमाओं को लेकर विधायी संबंधों को निम्नलिखित तरीके से परिभषित किया हैं-
- संसद पूरे भारत या इसके किसी भी क्षेत्र के लिए कानून बना सकती हैं| भारत क्षेत्र में राज्य शामिल हैं| केंद्रशासित राज्य और किसी अन्य क्षेत्र को भारत के क्षेत्र में माना जाता हैं|
विधायी विषयों का बंटवारा
संविधान ने सातवीं अनुसूची में केंद्र एवं राज्य के बीच विधायी विषयों के संबंध में त्रिस्तरीय व्यवस्था की हैं- सूची I (संघ सूची) , सूची II (राज्य सूची) और सूची III (समवर्ती सूची))
राज्य क्षेत्र में संसदीय विधान
केंद्र एवं राज्यों के बीच बंटवारे की उक्त व्यवस्था सामान्य काल में विधायी शक्तियों के बंटवारें के लिए होती हैं| लेकिन असामान्य काल में बंटवारें की योजना या तो सुधारी जाती हैं या स्थगित कर दी जाती हैं| दूसरे शब्दों में, संविधान संसद को यह शक्ति प्रदान करता हैं की राज्य सूची के तहत पांच असाधारण परिस्थितियों में कानून बनाए गए है|
- जब राज्यसभा एक प्रस्ताव पारित करे
- राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान
- राज्यों के अनुरोध की अवस्था में
- अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को लागू करना
- राष्ट्रपति शासन के दौरान
राज्य विधानमंडल पर केंद्र का नियंत्रण
अपवाद जनक परिस्थितियों में राज्य सूची पर संसद के सीधे विधान के अतिरिक्त संविधान केंद्र को राज्य सूची पर नियंत्रण के लिए निम्नलिखित मामलों में शक्तिशाली बनता हैं-
- राज्यपाल कुछ प्रकार के विधेयकों को, राष्ट्रपति की संस्तुति के लिए सुरक्षित रख सकता हैं| राष्ट्रपति को उन पर विशेष वीटो की शक्ति प्राप्त हैं|
- राज्य सूची से संबंधित कुछ मामलों पर विधेयक सिर्फ राष्ट्रपति की पूर्व सहमति पर ही लाया जा सकता हैं| ( उदाहरण के लिए व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने संबंधी विधेयक)
- राष्ट्रपति राज्य विधानमंडल द्वारा पारित धन या वित्त विधेयक को वित्तीय आपातकाल के दौरान सुरक्षित रखने का निर्देश दे सकता हैं|
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प्रशासनिक संबंध
संविधान के भाग XI में अनुच्छेद 256-263 तक केंद्र व राज्य के बीच प्रशासनिक संबंधों की व्याख्या की गयी हैं| इसी मुद्दे पर कई अन्य अनुच्छेद भी हैं|
- कार्यकारी शक्तियों का बंटवारा
- राज्य एवं केंद्र के दायित्व
- राज्यों को केंद्र के निर्देश
- कार्यों का पारस्परिक प्रतिनिधित्व
- केंद्र व राज्यों के बीच सहयोग
- अखिल भारतीय सेवाएं
- लोक सेवा आयोग
वित्तीय संबंध
संविधान के भाग XIII में अनुच्छेद 268-293 तक केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों की चर्चा की गयी हैं| इसके आलावा इसी विषय पर कई अन्य राज्य उपबंध भी हैं|
- कराधान शक्तियों का आवंटन
- कर राजस्व का वितरण
राष्ट्रीय आपातकाल
जब राष्ट्रीय आपातकाल लागू हो (अनुच्छेद 352 के अंतर्गत) राष्ट्रपति केंद्र व राज्यों के बीच संवैधानिक राजस्व वितरण को परिवर्तित कर सकता हैं| इसका तात्पर्य है राष्ट्रपति या तो वित्तीय अंतरण को कम कर सकता हैं या रोक सकता है ऐसे परिवर्तन जिस वर्ष आपातकाल की घोषणा की गयी हो उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक प्रभावी रहते हैं|
वित्तीय आपातकाल
जब वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360 के अंतर्गत) लागू हो केंद्र राज्यों को निर्देश दे सकता हैं-
- वित्तीय औचित्य संबंधी सिद्धांतों का पालन
- राज्य की सेवा में लगे सभी वर्गों के लोगों के वेतन एवं भत्ते कम करे (उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों समेत)
- सभी धन विधेयकों या अन्य वित्तीय विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित रखे|
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FAQs
Q. संविधान के कितने अनुच्छेद केंद्र और राज्य सरकार के बीच संबंधों को स्पष्ट करते हैं?
Ans. संविधान में 7वें अनुच्छेद से 12वें अनुच्छेद तक केंद्र और राज्य संबंधों को स्पष्ट करते हैं।
Q. केंद्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय संबंध कैसे निर्धारित होते हैं?
Ans. वित्तीय संबंधों के लिए संविधान द्वारा वित्तीय समिति (Finance Commission) का गठन किया गया है।
Q. केंद्र सरकार के पास क्या शक्तियाँ हैं जो राज्य सरकारों के पास नहीं हैं?
Ans. केंद्र सरकार के पास रक्षा, विदेश मामले, और आपातकालीन स्थितियों में नियंत्रण जैसी शक्तियाँ हैं।
Q. भारतीय संविधान में केंद्र सरकार की संविधानिक व्यापकता क्या है?
Ans. केंद्र सरकार की संविधानिक व्यापकता उसके कानूनी और संविधानिक अधिकारों को बढ़ाती है और राज्य सरकारों के ऊपर शासन करने की अनुमति देती है।
Q. केंद्र सरकार के पास क्या शक्तियाँ हैं जो विधायिका से संबंधित हैं?
Ans. केंद्र सरकार के पास संविधान द्वारा निर्धारित कानून बनाने की शक्ति है और विधायिका को अपने प्रभाव के तहत बिना उनकी सहमति के बदल सकती है।
Q. भारतीय संविधान के अनुसार राज्य सरकारों की कितनी श्रेणियाँ होती हैं?
Ans. भारतीय संविधान के अनुसार, राज्य सरकारों की 29 श्रेणियों में विभाजित होती हैं।
Q. केंद्र सरकार के पास किस क्षेत्र में अधिक शक्तियाँ होती हैं विधायिका या कार्यपालिका?
Ans. केंद्र सरकार के पास कार्यपालिका क्षेत्र में अधिक शक्तियाँ होती हैं जबकि विधायिका क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण शक्तियाँ होती हैं।
Q. क्या संविधान के तहत केंद्र और राज्य सरकार के बीच संबंध बदले जा सकते हैं?
Ans. हां, संविधान में संशोधन करके केंद्र और राज्य सरकार के संबंधों में परिवर्तन किया जा सकता है।
Q. केंद्र सरकार के अंतर्गत कितने राज्य हैं?
Ans. केंद्र सरकार के अंतर्गत 28 राज्य और 8 संघ शासित प्रदेश होते हैं।
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