जैन धर्म के संस्थापक ‘ सम्राट भारत’ के पिता ऋषभ को माना गया है| ऋषभदेव एवं अरिष्टनेमि (भगवान श्री कृष्ण का संबंधी) का उल्लेख ऋग्वेद में है|
🔸श्वेतांबर संप्रदाय के अनुसार 19वें जैन तीर्थंकर मल्लिनाथ स्त्री थी| अश्वसेन (काशी नरेश) के पुत्र पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे|
जैन धर्म की उत्पत्ति
🔸छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जब भगवान महावीर ने जैन धर्म का प्रचार किया तब यह धर्म प्रमुखता से सामने आया।
🔸इस धर्म में 24 महान शिक्षक हुए, जिनमें से अंतिम भगवान महावीर थे।
🔸इन 24 शिक्षकों को तीर्थंकर कहा जाता था, वे लोग जिन्होंने अपने जीवन में सभी ज्ञान (मोक्ष) प्राप्त कर लिये थे और लोगों तक इसका प्रचार किया था।
🔸प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ थे।’जैन’ शब्द जिन या जैन से बना है जिसका अर्थ है ‘विजेता’।
महावीर
🔸24वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व वैशाली के निकट कुण्डग्राम गाँव में हुआ था। वह ज्ञानत्रिक वंश के थे और मगध के शाही परिवार से जुड़े थे।
🔸उनके पिता सिद्धार्थ ज्ञानत्रिक क्षत्रिय वंश के मुखिया थे और उनकी माता त्रिशला वैशाली के राजा चेतक की बहन थीं।
🔸30 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना घर त्याग दिया और एक तपस्वी बन गए।
🔸उन्होंने 12 वर्षों तक तपस्या की और 42 वर्ष की आयु में कैवल्य (अर्थात दुख और सुख पर विजय प्राप्त की) नामक सर्वोच्च आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया।
🔸12 वर्षों की कठिन तपस्या के बाद महावीर को ज्रम्भिक ग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे संपूर्ण ज्ञान का बोध हुआ|
🔸इसी समय से महावीर जिन (विजेता) एवं अर्हत (पूज्य) निग्रन्थ (बंधनहीन) कहलाए, उन्होंने अपना पहला उपदेश पावा में दिया था।
🔸प्रत्येक तीर्थंकर के साथ एक प्रतीक जुड़ा था और महावीर का प्रतीक सिंह था।
🔸अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये उन्होंने कोशल, मगध, मिथिला, चंपा आदि प्रदेशों का भ्रमण किया।
🔸468 ई.पू. 72 वर्ष की आयु में बिहार के पावापुरी में उनका निधन हो गया।
जैन धर्म की सगीतियाँ
प्रथम जैन संगीति
समय – 322 ई. पू. से 298 ई. पू.
स्थल – पाटलिपुत्र
अध्यक्ष – स्थूलभद्र
शासक – चंद्रगुप्त मौर्य
कार्य – जैन धर्म श्वेतांबर और दिगंबर में बंटे|
द्वितीय जैन संगीति
समय – 512 ई.
स्थान – वल्लभी (गुजरात)
अध्यक्ष – देवर्धी क्षमाश्रमण (देवऋद्धिगणी )
शासक – अज्ञात
कार्य – जैन ग्रंथ अंतिम रूप से लिपिबद्ध किया गया|
इस धर्म की उत्पत्ति का कारण
🔸जटिल कर्मकांडों और ब्राह्मणों के प्रभुत्व के साथ हिंदू धर्म कठोर व रूढ़िवादी हो गया था।
🔸वर्ण व्यवस्था ने समाज को जन्म के आधार पर 4 वर्गों में विभाजित किया, जहाँ दो उच्च वर्गों को कई विशेषाधिकार प्राप्त थे।
🔸ब्राह्मणों के वर्चस्व के खिलाफ क्षत्रिय की प्रतिक्रिया।
🔸लोहे के औज़ारों के प्रयोग से उत्तर-पूर्वी भारत में नई कृषि अर्थव्यवस्था का प्रसार हुआ।
🔸 जैन धर्म मानने वाले कुछ राजा – उदयन, चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंग नरेश खारवेल, राष्ट्रकूट अमोघवर्ष एवं चंदेल शासक|
जैन धर्म के सिद्धांत
🔸इसका मुख्य उद्देश्य मुक्ति की प्राप्ति है, जिसके लिये किसी अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती है। इसे तीन सिद्धांतों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है जिसे त्रिरत्न कहा जाता है, ये हैं-
सम्यकदर्शन
सम्यकज्ञान
सम्यकचरित
जैन धर्म के पाँच सिद्धांत-
अहिंसा : जीव को चोट न पहुँचाना
सत्य : झूठ न बोलना
अस्तेय : चोरी न करना
अपरिग्रह : संपत्ति का संचय न करना और ब्रह्मचर्य
जैन धर्म के संप्रदाय
जैन व्यवस्था को दो प्रमुख संप्रदायों में विभाजित किया गया है:
दिगंबर और श्वेतांबर।
विभाजन मुख्य रूप से मगध में अकाल के कारण हुआ जिसने भद्रबाहु के नेतृत्व वाले एक समूह को दक्षिण भारत में स्थानांतरित होने के लिये मजबूर किया।
12 वर्षों के अकाल के दौरान दक्षिण भारत में समूह सख्त प्रथाओं पर कायम रहा, जबकि मगध में समूह ने अधिक ढीला रवैया अपनाया और सफेद कपड़े पहनना शुरू कर दिया।
काल की समाप्ति के बाद जब दक्षिणी समूह मगध में वापस आया तो बदली हुई प्रथाओं ने जैन धर्म को दो संप्रदायों में विभाजित कर दिया।
दिगंबर:
इस संप्रदाय के साधु पूर्ण नग्नता में विश्वास करते हैं। पुरुष भिक्षु कपड़े नहीं पहनते हैं जबकि महिला भिक्षु बिना सिलाई वाली सफेद साड़ी पहनती हैं।
ये सभी पाँच व्रतों (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य) का पालन करते हैं।
मान्यता है कि औरतें मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकतीं हैं।
भद्रबाहु इस संप्रदाय के प्रतिपादक थे।
प्रमुख उप-संप्रदाय:
मुला संघ
बिसपंथ
थेरापंथा
तरणपंथ या समायपंथा
लघु उप-समूह:
गुमानपंथ
तोतापंथ
श्वेतांबर
साधु सफेद वस्त्र धारण करते हैं।
केवल 4 व्रतों का पालन करते हैं (ब्रह्मचर्य को छोड़कर)।
इनका विश्वास है कि महिलाएँ मुक्ति प्राप्त कर सकती हैं।
स्थूलभद्र इस संप्रदाय के प्रतिपादक थे।
प्रमुख उप-संप्रदाय:
मूर्तिपूजक
स्थानकवासी
थेरापंथी
जैन धर्म का प्रसार
महावीर ने अपने अनुयायियों को एक आदेश दियाजैन धर्म के प्रसार का कारण?
महावीर ने अपने अनुयायियों को एक आदेश दिया, जिसमें पुरुषों और महिलाओं दोनों को शामिल किया गया।
जैन धर्म खुद को ब्राह्मणवादी धर्म से बहुत स्पष्ट रूप से अलग नहीं करता, अतः यह धीरे-धीरे पश्चिम और दक्षिण भारत में फैल गया जहाँ ब्राह्मणवादी व्यवस्था कमज़ोर थे।
महान मौर्य राजा चंद्रगुप्त मौर्य अपने अंतिम वर्षों के दौरान जैन तपस्वी बन गए और कर्नाटक में जैन धर्म को बढ़ावा दिया।
मगध में अकाल के कारण दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रसार हुआ।
यह अकाल 12 वर्षों तक चला और भद्रबाहु के नेतृत्व में बहुत से जैन अपनी रक्षा के लिये दक्षिण भारत चले गए।
ओडिशा में इसे खारवेल के कलिंग राजा का संरक्षण प्राप्त था।
जैन वास्तुकला के प्रकार:
लाना/गुम्फा (गुफाएँ)
एलोरा गुफाएँ (गुफा संख्या 30-35)- महाराष्ट्र
मांगी तुंगी गुफा- महाराष्ट्र
गजपंथ गुफा- महाराष्ट्र
उदयगिरि-खंडगिरि गुफाएँ- ओडिशा
हाथी-गुम्फा गुफा- ओडिशा
सित्तनवसल गुफा- तमिलनाडु
मूर्तियाँ
गोमेतेश्वर/बाहुबली प्रतिमा- श्रवणबेलगोला, कर्नाटक
अहिंसा की मूर्ति (ऋषभनाथ) – मांगी-तुंगी पहाड़ियाँ, महाराष्ट्र
जियानलय (मंदिर)
दिलवाड़ा मंदिर- माउंट आबू, राजस्थान
गिरनार और पलिताना मंदिर- गुजरात
मुक्तागिरि मंदिर- महाराष्ट्र
बसदी: कर्नाटक में जैन मठों की स्थापना या मंदिर।
जैन धर्म , बौद्ध धर्म में अंतर
जैन धर्म ने ईश्वर के अस्तित्व को मान्यता दी, जबकि बौद्ध धर्म ने नहीं।
जैन धर्म वर्ण व्यवस्था की निंदा नहीं करता, जबकि बौद्ध धर्म निंदा करता है।
जैन धर्म आत्मा के पुनर्जन्म में विश्वास करता है जबकि बौद्ध धर्म नहीं करता है।
बुद्ध ने मध्यम मार्ग निर्धारित किया, जबकि जैन धर्म अपने अनुयायियों को कपड़े यानी जीवन को पूरी तरह से त्यागने की वकालत करता है।
प्रमुख जैन तीर्थंकर एवं उनके प्रतीक
क्रम संख्या तीर्थंकर प्रतीक
पहले ऋषभदेव सांड
दूसरे अजीतनाथ हाथी
तीसरे संभावनाथ घोड़े
पांचवे सूमतीनाथ सारस
सातवें संपार्श्वनाथ स्वास्तिक
दसवें शीतल वृक्ष
चौदहवें अनंतनाथ बाज
सोलहवें शांतिनाथ हिरण
अट्ठारहवें अरनाथ मत्स्य
उन्नीसवें मल्लिनाथ कलश
इक्कीसवें नेमिनाथ नीलकमल
बाईसवें अरिष्ठनेमि शंख
तेईसवें पार्श्वनाथ सर्प
चौबीसवें महावीर स्वामी सिंह