गुप्त वंश का उदय तीसरी शताब्दी के अंत में प्रयाग के निकट कौशाम्बी में हुआ| विद्वानों के मतानुसार गुप्त लोग कुषाणों के सामंत थे| गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त (240-280 ई) था| श्रीगुप्त का उत्तराधिकारी घटोत्कच (280-320 ई) हुआ| इस लेख में गुप्त वंश के सभी महान शासकों का उल्लेख किया गया हैं| विस्तार से जानकारी के लिए अंत तक ज़रूर पढ़े| तथा यहां से आप गुप्त वंश Pdf भी डाउनलोड कर सकते है|
गुप्त वंश
गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ। गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था।साम्राज्य के पहले शासक चंद्र गुप्त प्रथम थे, जिन्होंने विवाह द्वारा लिच्छवी के साथ गुप्त को एकजुट किया।
मौर्य वंश व शुंग वंश के पतन के बाद दीर्घकाल में हर्ष तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरान्त तीसरी शताब्दी ईस्वी में तीन राजवंशो का उदय हुआ जिसमें मध्य भारत में नाग शक्ति, दक्षिण में वाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनः स्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है
चंद्रगुप्त प्रथम
गुप्त वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक चंद्रगुप्त प्रथम था, इसने 319-335 ई तक शासन किया| चंद्रगुप्त प्रथम 320 ई में गद्दी पर बैठा| इसने अपनी महत्ता सूचित करने के लिए अपने पूर्वजों के विपरीत महाराजाधिराज की उपाधि धारण की| गुप्त संवत का प्रवर्तक चंद्रगुप्त प्रथम था| चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवि राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया| चंद्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त हुआ, जो 335 ई में राज गद्दी पर बैठा|
समुद्रगुप्त
इतिहासकार विसेंट स्मिथ ने अपनी रचना ‘अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ में समुद्रगुप्त की वीरता एवं विजयों पर मुग्ध होकर उसे भारतीय नेपोलियन की संज्ञा दी हैं| समुद्रगुप्त ने 335-375 ई तक शासन किया| इलाहाबाद का अशोक स्तंभ अभिलेख से समद्रगुप्त (335-375 ई) के शासन के बारे में सूचना मिलती हैं| इस स्तंभ पर समुद्रगुप्त के संधि-विग्रहीत हरिषेण ने संस्कृत भाषा में प्रशंसात्मक वर्णन प्रस्तुत किया हैं, जिसे प्रयाग प्रशस्ति कहा गया हैं इसमें समुद्रगुप्त की विजयों का उल्लेख हैं|
परमभागवत की उपाधि धारण करने वाला प्रथम गुप्त शासक समुद्रगुप्त था| गया एवं नालंदा से मिले दो ताम्रलेख में समुद्रगुप्त को परमभागवत कहा गया हैं| |
चंद्रगुप्त द्वितीय
चंद्रगुप्त द्वितीय समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी था, जो 380 ई में राजगद्दी पर बैठा| इसके शासनकाल में चीनी बौद्ध यात्री फाहियान भारत आया| शकों पर विजय के उपलक्ष्य में चंद्रगुप्त-II ने चांदी के सिक्के चलाए| चंद्रगुप्त-II ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की| यह उपाधि इससे पूर्व 57 ई पू में उज्जैन के शासक ने भी पश्चिमी भारत में शक क्षत्रपों पर विजय पाने के उपलक्ष्य में धारण की थी|
चंद्रगुप्त II के समय में पाटलिपुत्र एवं उज्जयिनी विद्या के प्रमुख केंद्र थे| शाब चंद्रगुप्त II का राजकवि था| अनुश्रुति के अनुसार चंद्रगुप्त II के दरबार में नौ विद्वानों की एक मंडली निवास करती थी जिसे नवरत्न कहा गया हैं| महाकवि कालिदास संभवत: इनमें अग्रगण्य थे| कालिदास के अतिरिक्त इनमें धन्वंतरि, क्षपणक ( फलित- ज्योतिष के विद्वान्), अमरसिंह (कोशकार), शंकु (वास्तुकार), वेतालभट्ट, घटकर्पर, वाराहमिहिर (खगोल विज्ञानी) एवं वररुचि जैसे विद्वान् थे|
कुमारगुप्त प्रथम महेंद्रादित्य
कुमारगुप्त प्रथम (लगभग 415-455 ई) चंद्रगुप्त द्वितीय की पत्नी ध्रुवदेवी से उत्पन्न बड़ा पुत्र था| इसके समय के गुप्तकालीन सर्वाधिक अभिलेख प्राप्त हुए हैं, जिनकी संख्या लगभग 18 हैं| बिलसड अभिलेखों में कुमारगुप्त प्रथम तक गुप्तों की वंशावली प्राप्त होती हैं| बंगाल के तीन स्थानों से कुमारगुप्तकालीन ताम्रपत्र प्राप्त होते हैं| ये हैं- धनदैह ताम्रपत्र, दामोदरपुर ताम्रपत्र तथा बैग्राम ताम्रपत्र| कुमारगुप्त की स्वर्ण, रजत तथा ताम्र मुद्राएं प्राप्त होती हैं| मुद्राओं पर कुमारगुप्त की उपाधियां महेंद्रादित्य, श्रीमहेंद्र, महेंद्रसिंह, अश्वमेघ महेंद्र आदि उत्कीर्ण मिलती हैं|
स्कंदगुप्त
कुमारगुप्त-1 का उत्तराधिकारी स्कंदगुप्त (455-467 ई) था| स्कंदगुप्त ने गिरनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील का पुनर्निर्माण किया था| स्कंदगुप्त के स्वर्ण सिक्कों के मुख भाग पर धनुष-बाण लिए हुए राजा की आकृति तथा पृष्ठ भाग पर पद्यासन में विराजित लक्ष्मी के साथ-साथ श्रीस्कंदगुप्त उत्कीर्ण हैं| कुछ सिक्कों के ऊपर गरुड़ध्वज तथा उसकी उपाधि क्रमादित्य अंकित हैं| भितरी स्तंभ लेख में पुष्यमित्र और हूणों के साथ स्कंदगुप्त के युद्ध का वर्णन मिलता हैं| हूणों का पहला भारतीय आक्रमण गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त के शासनकाल में हुआ तथा स्कंदगुप्त के हाथों वे बुरी तरह परास्त हुआ|
गुप्तकाल के प्रसिद्ध मंदिर |
मंदिर | स्थान |
विष्णु मंदिर | तिगवा (जबलपुर, मध्य प्रदेश) |
शिव मंदिर | भूमरा (नागौदा, मध्य प्रदेश) |
पार्वती मंदिर | नायरा कुठार(मध्य प्रदेश) |
दशावतार मंदिर (ईंटों द्वारा निर्मित) | देवगढ़ (ललितपुर, उत्तर प्रदेश) |
शिव मंदिर | खोह (नागौद, मध्य प्रदेश) |
लक्ष्मण मंदिर (ईंटों द्वारा निर्मित) | भीतर गांव कानपुर (उत्तर प्रदेश) |
गुप्त वंश Pdf Download
यदि आप गुप्त वंश pdf डाउनलोड करना चाहते हैं, तथा परीक्षा से जुड़ी सभी जानकारियां प्राप्त करना चाहते हैं। तो आप आधिकारिक वेबसाइट से या फिर हमारे द्वारा नीचे दिए गए लिंक के जरिए डाउनलोड कर सकते हैं।
गुप्त वंश Pdf Download | Click here |
गुप्त वंश से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त था|
- गुप्त वंश का प्रथम महान शासक चंद्रगुप्त प्रथम था|
- समुद्रगुप्त को भारत के नेपोलियन नाम से भी जाना जाता हैं|
- नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त ने की थी|
- स्कंदगुप्त ने पर्णदत्त की सौराष्ट्र का गवर्नर नियुक्त किया|
- स्कंदगुप्त ने गिरनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील का पुनर्निर्माण करवाया था|
- ग्राम- समूह की छोटी इकाई को पेठ कहा जाता था|
- गुप्त वंश का अंतिम शासक विष्णुगुप्त था|
- गुप्तकाल में उज्जैन सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था|
- श्रेणी के प्रधान को ज्येष्ठक कहा जाता था|
- गुप्त राजाओं ने सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएं जारी की| इनकी स्वर्ण मुद्राओं को अभिलेखों में दीनार कहा गया हैं| गुजरात के बाद गुप्त राजाओं ने बड़ी संख्या में चाँदी के सिक्के जारी किए जो केवल स्थानीय लेन-देन में चलते थे|
Conclusion |
आशा करते हैं की आपको गुप्त वंश अच्छे से समझ आया होगा| और आपको गुप्त वंश से संबंधित सभी जानकारी प्राप्त हो गयी होगी|
अगर आप का भारत के गुप्त वंश pdf से संबंधित अभी भी कोई सवाल है तो कमेंट के माध्यम से ज़रूर पूछें, हम जल्दी ही आपके सवालों का उत्तर देंगे| यदि आपके दोस्त या रिश्तेदार सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं तो उनके साथ शेयर ज़रूर करें ताकि उनकी भी मदद हो सके|