संविधान के भाग -3 में अनुच्छेद 12-35 तक मूल अधिकारों का विवरण हैं | इस संबंध में संविधान निर्माता अमेरिकी संविधान से प्रभावित हैं|
🔸संविधान के भाग -3 को भारत का मैग्नाकार्टा की संज्ञा दी गई हैं| इसमें एक लंबी एवं विस्तृत सूची में न्यायोचित मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया हैं|
🔸 वास्तव में मूल अधिकारों के संबंध में जितना विस्तृत विवरण प्राप्त मिलता है उतना विश्व के किसी देश में नहीं मिलता चाहे वह अमेरिका ही क्यों न हो |
🔸 संविधान द्वारा बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति के लिए मूल अधिकारों के संबंध में गारंटी दी गई हैं| इनमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए समानता, सम्मान, राष्ट्रहित और राष्ट्रीय एकता को समाहित किया गया हैं|
मूल अधिकारों को यह नाम इसलिए दिया गया हैं| क्योंकि इन्हें संविधान द्वारा गारंटी एवं सुरक्षा प्रदान की गई हैं| जो राष्ट्र कानून का मूल सिद्धांत हैं|
🔸ये ‘ मूल ‘ इसलिए भी हैं| क्योंकि ये व्यक्ति के चहुंमुखी विकास ( भौतिक , बौद्धिक, नैतिक अध्यात्मिक) के लिए आवश्यक हैं|
मूल रूप से संविधान ने सात मूल अधिकार प्रदान किए:
1. समता का अधिकार ( अनुच्छेद 14-18)
2. स्वतंत्रता का अधिकार ( अनुच्छेद 19-22)
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार ( अनुच्छेद 23-24)
4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार ( अनुच्छेद 25-28)
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार ( अनुच्छेद 29- 30)
6. संपत्ति का अधिकार ( अनुच्छेद – 31)
7. संविधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद -32)
Note : – संपत्ति के अधिकार को 44वें संविधान अधिनियमसूची से हटा 1978 द्वारा मूल अधिकारों की सूची से हटा दिया गया हैं|
इसे संविधान के भाग -XII में अनुच्छेद 300क के तहत कानूनी अधिकार बना दिया गया हैं| इस तरह फिलहाल छह मूल अधिकार हैं|
◾️मूल अधिकारों की विशेषताएं
🔸 उनमें से कुछ सिर्फ नागरिकों के लिए उपलब्ध हैं| जबकि कुछ अन्य सभी व्यक्तियों के लिए उपलब्ध हैं| चाहे वे नागरिक विदेशी लोगों या कानूनी व्यक्ति जैसे – परिषद एवं कंपनियां हों|
🔸संविधान द्वारा संरक्षित: सामान्य कानूनी अधिकारों के विपरीत मौलिक अधिकारों को देश के संविधान द्वारा गारंटी एवं सुरक्षा प्रदान की गई है।
🔸ये स्थायी नहीं हैं। संसद इनमें कटौती या कमी कर सकती है लेकिन संशोधन अधिनियम के तहत, न कि साधारण विधेयक द्वारा।
🔸ये असीमित नहीं हैं, लेकिन वाद योग्य हैं।
🔸राज्य उन पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है। हालाँकि कारण उचित है या नहीं इसका निर्णय अदालत करती है।
🔸ये न्यायोचित हैं। जब भी इनका उल्लंघन होता है ये व्यक्तियों को अदालत जाने की अनुमति देते हैं।
🔸मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में कोई भी पीड़ित व्यक्ति सीधे सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा सकता है।
🔸अधिकारों का निलंबन: राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान (अनुच्छेद 20 और 21 प्रत्याभूत अधिकारों को छोड़कर) इन्हें निलंबित किया जा सकता है।
🔸इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 19 में उल्लिखित 6 मौलिक अधिकारों को उस स्थिति में स्थगित किया जा सकता है,
जब युद्ध या विदेशी आक्रमण के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गई हो। इन्हें सशस्त्र विद्रोह (आंतरिक आपातकाल) के आधार पर स्थगित नहीं किया जा सकता है।
🔸सशस्त्र बलों, अर्द्ध-सैनिक बलों, पुलिस बलों, गुप्तचर संस्थाओं और ऐसी ही अन्य सेवाओं के क्रियान्वयन पर संसद प्रतिबंध आरोपित कर सकती है (अनुच्छेद 33)।
🔸ऐसे इलाकों में भी इनका क्रियान्वयन रोका जा सकता है, जहाँ फौजी कानून का मतलब ‘सैन्य शासन’ से है, जो असामान्य परिस्थितियों में लगाया जाता है।
मौलिक अधिकार (नागरिकों और विदेशियों को प्राप्त अधिकार) (शत्रु देश के लोगों को छोड़कर)
कानून के समक्ष समता।
अपराधों के दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण।
प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण।
प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार।
कुछ मामलों में गिरफ्तारी और नज़रबंदी के खिलाफ संरक्षण।
बलात् श्रम एवं अवैध मानव व्यापार के विरुद्ध प्रतिषेध।
कारखानों में बच्चों के नियोजन पर प्रतिबंध।
धर्म की अभिवृद्धि के लिये प्रयास करने की स्वतंत्रता।
धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता।
किसी धर्म को प्रोत्साहित करने हेतु कर से छूट।
कुछ विशिष्ट संस्थानों में धार्मिक आदेशों को जारी करने की स्वतंत्रता।
केवल नागरिकों को प्राप्त मौलिक अधिकार, जो विदेशियों को प्राप्त नहीं है
धर्म, मूल वंश, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध।
लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता।
अनुच्छेद 19 में उल्लिखित स्वतंत्रता के छह मौलिक अधिकारों का संरक्षण।
अल्पसंख्यकों की भाषा, लिपि और संस्कृति का संरक्षण।
शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार।