चोल वंश का इतिहास Pdf : चोल वंश भारतीय इतिहास में एक प्रमुख राजवंश था, जो मुख्यत: तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश क्षेत्र में 9वीं से 13वीं सदी तक शासन करता था।
चोल वंश का इतिहास
चोल वंश का इतिहास भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण हिस्सों में से एक है। चोल वंश तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश क्षेत्र में 9वीं से 13वीं सदी तक अपना प्रभुत्व बनाए रखता रहा।
प्रारंभिक अवस्था (1,000 BCE – 300 CE)-चोल वंश की शुरुआत अधिकांशत: स्थानीय राजाओं और नायकों के संघर्षों से हुई थी।
पल्लव और पांड्य राजाओं के साथ संघर्ष (4वीं से 9वीं सदी)- इस अवधि में चोल वंश ने पल्लव और पांड्य राजाओं के साथ युद्धों में शामिल होकर अपना स्थान बनाया।
राजाराज चोल का शासनकाल (985-1014 CE)- राजाराज चोल ने चोल साम्राज्य की शक्ति को विस्तारित किया और बृहदीश्वर मन्दिर की निर्माण की।
राजेन्द्र चोल और दक्षिणपथ विस्तार (1014-1044 CE)- राजाराज चोल के पुत्र राजेन्द्र चोल ने दक्षिणपथ का विस्तार किया और भूमिका निभाई।
अंतिम शासक (13वीं सदी)- चोल वंश के अंतिम कुछ शासकों ने अपने इतिहास में चुनौती का सामना किया, और इसके बाद चोल साम्राज्य का समापन हुआ।
चोल वंश ने साहित्य, कला, और धर्म के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो आज भी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।
चोल वंश की उत्पति
चोल वंश की उत्पति से संबंधित विभिन्न संस्कृत और तमिल ग्रंथों में विचारविमर्श है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि चोल वंश उत्पति कब हुई। चोल वंश का प्रारंभ एक नंदन नामक राजा के साथ जोड़ा जाता है, जो ताम्रपर्णी नदी के किनारे की क्षेत्र में शासन करता था। चोल वंश का अधिकारिक नाम “चोऴा” था, जिससे “चोल” का उत्पति हुआ।
चोल वंश के सभी प्रमुख राजा
विजयालय चोल (850-871 CE) – प्रथम चोल साम्राज्य का संस्थापक
राजाराज चोल (985-1014 CE) – बृहदीश्वर मन्दिर की निर्माण में प्रसिद्ध
राजेन्द्र चोल (1014-1044 CE) – राजाराज चोल के पुत्र, गंगा का दक्षिणपथ विस्तार करने वाले
कुलोत्तुङ्ग चोल (1070-1122 CE) – चोल साम्राज्य के अधिकारी, राजराजेश्वरी नाट्य मंदिर की निर्माण में शिरोमणि
राजदेव चोल (1246-1279 CE) – चोल वंश के अंतिम प्रमुख
यह केवल कुछ उदाहरण हैं, चोल वंश के कई और राजाएं थे जो भूमिका निभाए और इसका संघर्ष किया।
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चोल वंश के सभी राजाओं की सूची
चोल वंश के शासक | शासन अवधि(ईस्वी में) |
विजयालय चोल | 848–870 |
आदित्य चोल 1 | 870–907 |
परन्तक चोल 1 | 907–955 |
गंधरादित्य चोल | 955-957 |
अरिंजय चोल | 956-957 |
परन्तक चोल 2 | 957-970 |
उत्तम चोल | 970-985 |
राजाराज चोल प्रथम महान | 985-1014 |
राजेन्द्र चोल प्रथम महान | 1014-1044 |
राजाधिराज चोल 1 | 1044-1054 |
राजेन्द्र चोल 2 | 1054-1063 |
वीरराजेन्द्र चोल | 1063-1070 |
अधिराजेन्द्र चोल | 1070 |
चोल-चालुक्य शासक | |
कुलोतुंग चोल 1 | 1070-1122 |
विक्रम चोल | 1122-1135 |
कुलोतुंग चोल 2 | 1135-1150 |
राजाराज चोल 2 | 1150-1173 |
राजाधिराज चोल 2 | 1173-1178 |
कुलोतुंग चोल 3 | 1178-1218 |
राजाराज चोल 3 | 1218-1256 |
राजेन्द्र चोल 3 | 1256-1279 |
चोल वंश की संस्कृति
चोल साम्राज्य की संस्कृति ने भारतीय सांस्कृतिक विरासत में महत्वपूर्ण योगदान किया और इसने भारतीय समृद्धि के क्षेत्र में एक स्वयंभू और अमूर्त स्थान बनाया।
चोल वंश की संस्कृति बहुत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धारा से युक्त थी। इस समय के दौरान, चोल साम्राज्य ने भारतीय साहित्य, कला, और विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान किया। यहाँ कुछ मुख्य विषय हैं।
मंदिर वास्तुकला- राजाराज चोल ने बृहदीश्वर मन्दिर की निर्माण करके चोल साम्राज्य की विशेषता में विकसित मंदिर वास्तुकला का प्रमोष किया।
शिक्षा और साहित्य- चोल साम्राज्य में शिक्षा और साहित्य का प्रोत्साहन था। राजराज चोल ने शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूल और विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।
विद्यार्थियों का समर्थन- राजराज चोल ने विद्यार्थियों को आर्थिक और शैक्षिक समर्थन प्रदान किया और उन्हें अध्ययन के लिए प्रेरित किया।
कला और साहित्य- चोल साम्राज्य में तमिल कला और साहित्य का समृद्धिशील विकास हुआ। चोल राजाओं ने कविताएँ, संगीत, और नृत्य को भी प्रोत्साहित किया।
व्यापार और समृद्धि- चोल साम्राज्य ने व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया और समृद्धि के साधन में सहायक रहा।
चोल वंश की विशेषता
चोल वंश भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण था, विशेषकर तमिलनाडु क्षेत्र में। इस वंश की विशेषताएं शासन, साहित्य, कला, और धर्म से जुड़ी हुई थीं। चोल राजा राजवंश के प्रमुख थे और उनके शासनकाल में विकासशीलता और समृद्धि होती थी। इस वंश के अंतर्निहित समृद्धि और सांस्कृतिक योगदान के कारण उन्हें चोल दिनास्ती के रूप में भी जाना जाता है।
चोल वंश की विशेषताएं इसे एक महत्वपूर्ण राजवंश बनाती हैं।
शासनकाल की महत्वपूर्णता- चोल वंश का शासनकाल भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण था, विशेषकर तमिलनाडु क्षेत्र में 9वीं से 13वीं सदी तक।
शासकीय विकास- चोल राजाओं ने अपने शासकीय इतिहास में बहुत ऊँची स्थिति प्राप्त की और उनका साम्राज्यिक प्रभाव दक्षिण भारत में फैला।
बौद्ध और हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार में योगदान- चोल राजाएं ने धार्मिक और सांस्कृतिक प्रचार-प्रसार में अपना योगदान दिया, जिससे धार्मिक एकता बढ़ी और सांस्कृतिक आदर्शों का समृद्धि से परिपूर्ण विकास हुआ।
कला और साहित्य में उत्कृष्टता- चोल साम्राज्य में कला, साहित्य, और विद्या में उत्कृष्टता की गई, जिससे इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धारा को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया गया।
बौद्ध और जैन साहित्य के समर्थक- चोल राजाएं ने बौद्ध और जैन साहित्य के समर्थक रहे हैं, जिससे धार्मिक सहिष्णुता का संदेश फैलाया गया।
ये विशेषताएं चोल वंश को भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता बनाती हैं।
FAQs-चोल वंश का इतिहास
Q.1 प्रमुख चोल राजा कौन थे?
Ans.प्रमुख चोल राजा महेन्द्रवर्मा, राजराजा और राजेन्द्र थे।
Q.2 चोल साम्राज्य का क्षेत्रफल क्या था?
Ans. चोल साम्राज्य का क्षेत्रफल तमिलनाडु और दक्षिण भारतीय राज्यों को शामिल करता था।
Q.3 चोल राजवंश के युगल शासक कौन थे?
Ans. चोल राजवंश के युगल शासक राजराजा और राजेन्द्र थे, जो मिलकर चोल साम्राज्य की शक्ति को मजबूत करते थे।
Q.4 चोल साम्राज्य में किस क्षेत्र में विकास हुआ?
Ans. चोल साम्राज्य में कला, साहित्य, धर्म, और शिक्षा के क्षेत्र में विकास हुआ और इसने तमिलनाडु को सांस्कृतिक हब बनाया।
Q.5चोल राजवंश की अद्वितीयता में क्या था?
Ans. चोल राजवंश की अद्वितीयता में उसका सांस्कृतिक और धार्मिक समृद्धि में योगदान था, जिससे इसे भारतीय इतिहास में विशेष माना जाता है।