बिहार की राज्यव्यवस्था (Polity of Bihar BPSC)

भारतीय संविधान के भाग 6 जिसमें 152-237 अनुच्छेद हैं, राज्य स्तर पर सरकार के ढांचे से संबंधित हैं| बिहार की राज्य-व्यवस्था संविधान के प्रावधानों पर आधारित हैं|

बिहार की राज्यव्यवस्था

बिहार राज्य का गठन 22 मार्च 1912 ई को एक प्रांत के रूप में हुआ था जिसमें उड़ीसा भी सम्मलित था|

1 अप्रैल 1936 को उड़ीसा एवं 15 नवंबर, 2000 को झारखंड बिहार से अलग हुआ| विभाजन के परिणामस्वरूप अब बिहार का स्थान भारत में जनसंख्या की दृष्टि से तीसरा जबकि क्षेत्रफल दृष्टि से 13वां हैं| बिहार की राज्यव्यवस्था

राज्य की कार्यपालिका

  • राज्यपाल
  • मुख्यमंत्री
  • मंत्रिपरिषद

राज्यपाल


राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता हैं| राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं जो राष्ट्रपति के प्रसादपर्यत पद पर बना रहता हैं| राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री के परामर्श से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता हैं| राज्य लोक सेवा आयोग एवं राज्य निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति तथा महाधिवक्ता की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती हैं| बिहार के प्रथम राज्यपाल जयरामदास दौलतराम (1947-48) थे| बिहार के वर्तमान राजयपाल श्री फागू चौहान हैं|

मुख्यमंत्री

राज्य विधानसभा में किसी भी दल के नेता का जिसे स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो, राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्त किया जाता हैं| जब विधानसभा में किसी भी दल स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता हैं तो राज्यपाल स्वविवेक के आधार पर मुख्यमंत्री की नियुक्ति कर सकता हैं| श्री

कृष्ण सिन्हा दो बार बिहार के प्रीमियर रहे तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री बने| बिहार की एकमात्र महिला मुख्यमंत्री राबड़ी देवी हैं जिन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री पद को सुशोभित किया| वर्तमान में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं जो 8वीं बार मुख्यमंत्री बने| व्यक्तिगत स्टार पर नीतीश कुमार बिहार के 24वें मुख्यमंत्री हैं जबकि मुख्यमंत्री के क्रम में इनका क्रमांक 39वां हैं|

मंत्रिपरिषद

संविधान के अनुच्छेद-164 के अनुसार, प्रत्येक राज्य में एक मंत्रिपरिषद का गठन होगा| मंत्रिपरिषद में सामान्यत: 3 प्रकार के मंत्री होते हैं| 1. मंत्रिमंडल स्तर के मंत्री 2. राज्यमंत्री 3. उपमंत्री

बिहार की न्यायपालिका

  • उच्च न्यायालय
  • अधीनस्थ न्यायालय

उच्च न्यायालय

संविधान के अनुच्छेद 214 के अनुसार, प्रत्येक राज्य में एक उच्च न्यायलय होगा| संसद दो या दो से अधिक राज्यों के लिये एक उच्च न्यायालय की स्थापना कर सकती हैं| मूल संविधान के अनुसार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 60 वर्ष की आयु तक पद पर रह सकते थे परन्तु 15वें संशोधन के द्वारा अब वे ६२ वर्ष तक कार्य कर सकते हैं| संविधान के अनुच्छेद 226 के अनुसार मौलिक अधिकार से संबंधित कोई भी मामला उच्च न्यायालय में लाया जा सकता हैं|

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