भारतीय संसदीय प्रणाली Pdf Download

भारत का संविधान , केंद्र और राज्य दोनों में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था करता हैं| अनुच्छेद 74 और अनुच्छेद 75 में संसदीय व्यवस्था का उल्लेख है| तथा अनुच्छेद 163 और अनुच्छेद 164 में राज्यों का उल्लेख हैं|

सरकार की संसदीय व्यवस्था वह व्यवस्था हैं, जिसमें कार्यपालिका अपनी नीतियों एवं कार्यों के लिए विधायिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होती और यह संवैधानिक रूप से अपने कार्यकाल के मामले में विधायिका से स्वतंत्र होती हैं|

आइवर जेनिंग्स ने संसदीय व्यवस्था को कैबिनेट व्यवस्था कहा हैं क्योंकि इसमें शक्ति का केंद्र बिंदु कैबिनेट होता हैं| संसदीय सरकार को उत्तरदायी सरकार के रूप में भी जाना जाता हैं| क्योंकि इसमें कैबिनेट संसद के प्रति उत्तरदायी होती हैं और इनका कार्यकाल तब तक चलता है, जब तक उन्हें संसद का विश्वास प्राप्त हैं|

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संसदीय सरकार की विशेषताएं

भारत में संसदीय सरकार की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

1. नामिक एवं वास्तविक कार्यपालिका

राष्ट्रपति नामिक कार्यपालिका (विधित कार्यपालिका) हैं, जबकि प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यपालिका (वास्तविक कार्यकारी) हैं| अनुच्छेद 74, प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरषद की व्यवस्था करता हैं, जो राष्ट्रपति को कार्य संपन्न कराने में परामर्श देता है| उसके परामर्श को मानने के लिए राष्ट्रपति बाध्य होता हैं|

2. बहुमत प्राप्त दाल का शासन

जिस राजनीतिक दल को लोकसभा में बहुमत से सीटें प्राप्त होती हैं, उस दल की सरकार बनती हैं| उस दल के नेता को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री नियुक्त करता  हैं| अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के परामर्श से ही करता हैं| जब किसी एक दल को बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो दलों के गठबंधन को राष्ट्रपति द्वारा सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाता हैं|

3.सामूहिक उत्तरदायित्व

यह संसदीय सरकार का विशिष्ट सिद्धांत हैं| मंत्रियों का संसद के प्रति समुचित उत्तरदायित्व होता हैं| विशेषकर लोकसभा के प्रति गठबंधन अनुच्छेद 75 के तहत होता हैं| सामूहिक उत्तरदायित्व सिद्धांत इस रूप में प्रभावी होता हैं की लोकसभा, प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद को अविश्वास प्रस्ताव पारित कर हटा सकती हैं|

4.राजनीतिक एकरूपता

मंत्रिपरिषद के सदस्य एक ही राजनीतिक दल से संबंधित होते हैं और इस तरह उनकी समान राजनीतिक विचारधारा होती हैं| गठबंधन सरकार के मामले में मंत्री सर्वसम्मति के प्रति बाध्य होते हैं|

5.दोहरी सदस्यता

मंत्री, विधयिका एवं कार्यपालिका दोनों के सदस्य होते हैं| इसका तात्पर्य है है कि कोई भी सदस्य बिना संसद का सदस्य बने मंत्री नहीं बन सकता| संविधान में यह उल्लेखित है कि यदि कोई व्यक्ति संसद का नहीं हैं और मंत्री बनता है तो उसे 6 माह के अंदर संसद का सदस्य बनना आवश्यक हैं|

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6.प्रधानमंत्री का नेतृत्व

सरकार कि व्यवस्था में प्रधानमंत्री नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाता है| वह मंत्रिपरिषद , संसद का और सत्तारूढ़ दल का नेता होता हैं| इन क्षमताओं में वह सरकार के संचालन में एक महत्वपूर्ण एवं अहम भूमिका का निर्वहन करता हैं|

7.निचले सदन का विघटन

संसद के निचले सदन (लोकसभा) को प्रधानमंत्री की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति द्वारा विघटन जा सकता हैं| दूसरे शब्दों में, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद का कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व नए चुनाव के लिए राष्ट्रपति से लोकसभा विघटन की सिफारिश कर सकता हैं| इसका तात्पर्य है कि कार्यकारिणी को संसदीय व्यवस्था में कार्यपालिका को विघटन करने का अधिकार हैं|

8.गोपनीयता

मंत्री गोपनीयता के सिद्धांत पर काम करते हैं और अपनी कार्यवाहियों, नीतियों और निर्णयों कि सुचना नहीं दे सकते| अपना कार्य ग्रहण करने से पूर्व वे गोपनीयता कि शपथ लेते हैं| मंत्रियों को गोपनीयता कि शपथ राष्ट्रपति दिलाते हैं|

भारतीय संसदीय प्रणाली के गुण

1. विधायिका एवं कार्यपालिका के मध्य सामंजस्य 

संसदीय व्यवस्था का सबसे बड़ा लाभ यह है की यह सरकार के विधायी एवं कार्यकारी अंगों के बिच सहयोग एवं सहकारी संबंधों को सुनिश्नित करता हैं| कार्यपालिका, विधायिका का एक अंग है और दोनों अपने कार्यों में स्वतंत्र हैं|

2. उत्तरदायी सरकार

संसदीय व्यवस्था में अपनी प्रकृति के अनुरूप उत्तरदायी सरकार का गठन होता हैं| मंत्री अपने मूल एवं कार्याधिकार कार्यों के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं| संसद, मंत्रियों पर विभिन्न तरीकों, जैसे- प्रश्काल, चर्चा, स्थगन प्रस्ताव एवं अविश्वास प्रस्ताव आदि के माध्यम से नियंत्रण रखती हैं|

3. निरंकुशता का प्रतिषेध

इस व्यवस्था के तहत कार्यकारी एक समूह (मंत्रिपरिषद) में निहित रहती हैं| न की एक व्यक्ति में| यह प्राधिकृत व्यवस्था कार्यपालिका की निरंकुश प्रकृति पर रोक लगाती हैं| अर्थात कार्यकारिणी संसद के प्रति उत्तरदायी होती है उसे अविश्वाश प्रस्ताव के माध्यम से हटाया जा सकता हैं|

4. वैकल्पिक सरकार की व्यवस्था

सत्तारून दल के बहुमत खो देने पर राज्य का मुखिया विपक्षी दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकता हैं| इसका तात्पर्य है कि नए चुनाव के बिना वैकल्पिक सरकार का गठन हो सकता है| डॉ जेनिंग्स कहते हैं, ” विपक्ष का नेता वैकल्पिक प्रधानमंत्री हैं|

5. व्यापक प्रतिनिधित्व

संसदीय व्यवस्था में कार्यपालिका लोगों के समूह होती हैं| (उदाहण के लिए मंत्री लोगों का प्रतिनिधित्व) इस प्रकार यह संभव हैं कि सरकार के सभी वर्गों एवं क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व हो|

भारतीय संसदीय प्रणाली के दोष

1. अस्थिर सरकार

संसदीय व्यवस्था, स्थायी सरकार की व्यवस्था नहीं करती| इसकी कोई गारंटी नहीं की कोई सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी| मंत्री बहुमत की दया पर इस बात के लिए निर्भर होते हैं की वे अपने कार्यकाल को नियमित रख सकें| मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, वी पी सिंह, चंद्रशेखर, देवगौड़ा और आई के गुजराल वाली सरकारें इसका उदाहण हैं|

2. नीतियों की निश्चितता  का अभाव

संसदीय व्यवस्था में दीर्घकालिक नीतियां लागू नहीं हो पातीं क्योकिं सरकार के कार्यकाल की अनिश्चितता रहती है| सत्तारूढ़ दल में परिवर्तन से सरकार की नीतियां परिवर्तित हो जाती हैं| उदाहण- 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में  सरकार ने पूर्व की कांग्रेस सरकार की नयी नीतियों को पलट दिया| ऐसा ही कांग्रेस सरकार ने 1980 में सत्ता में वापस आने पर किया|

 

 

Conclusion 

 

आशा है की आप इस आर्टिकल को अच्छे समझ गए होंगे और अपनी तैयार को बेहतर बनाएंगे| क्योकि परिश्रम ही सफलता की कुंजी है, जितना आप परिश्रम करेंगे उतना ही आप सफल होंगे| यदि आप के मन में इस आर्टिकल से सम्बंधित कोई सवाल हो तो आप मुझे कमेंट बॉक्स में msg कर सकते हैं|

 

 

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