भारत में सर्वप्रथम आने वाले यूरोपियों में पुर्तगाली थे उन्होंने मसाला व्यापार को ध्यान में रखते हुए भारत में प्रवेश किया, विशेष कर काली मिर्च जिसे पुर्तगाली यवनिका भी कहते थे| और विभिन्न स्थानों पर फैक्टरी, कारखानों, बस्ती व्यापार केंद्र की स्थापना की|
यह कारखाने उत्पादन के केंद्र नहीं थे बल्कि भंडारगृह थे यहां पर वस्तुओं का संग्रह कर उन्हें यूरोप भेजा जाता था| पहला पुर्तगाली बर्थोलोम्यूज़ डियास 1487 में आशा अंतरीप (Cape of Good hope) तक आया किन्तु भारत तक नहीं पहुंच पाया यही से वापस चला गया|
वास्कोडिगामा
वास्कोडिगामा प्रथम यूरोपीय जिसने भारत के सीधे समुद्री मार्ग की खोज की| 20 मई 1498 को भारत के पश्चिमी तट केरल स्थित बंदरगाह कालीकट के कपपकडाबू नामक बंदरगाह पंहुचा| वास्कोडिगामा पुर्तगाल के शासक डॉन हेनरिक (प्रिंस हेनरी दि नेविगेटर) के प्रतिनिधि के रूप में भारत आया| यहां के हिंदू शासक जिसकी पैतृक उपाधि जमोरिन थी ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया| 1500 ई में वास्कोडिगामा वापस यूरोप चला गया| 1502 ई में वास्कोडिगामा पुन: भारत आया| 1503 में पुर्तगालियों की पहली फैक्ट्री कोच्चि में स्थापित हुई तथा 1505 ई में दूसरी फैक्ट्री कुन्नूर में स्थापित हुई| तीसरी बार 1524 ई वायसराय बनकर आया|
पुर्तगाली का उद्देश्य
पुर्तगालियों के भारत आने के दो प्रमुख उद्देश्य थे|
- अरबों और वेनिस के व्यापारियों का भारत से प्रभाव समाप्त करना|
- भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करना|
पुर्तगालियों के गवर्नर
फ्रांसिस्को डी अल्मेडा(1505-1509 ई)
प्रथम गवर्नर फ्रांसिस्को डी अल्मेडा था इसका मुख्य उद्देश्य पुर्तगालियों के दक्षिण-पूर्वी एशिया के व्यापार को सुरक्षित करना| फ्रांसिस्कों डी अल्मेडा ने शांत जल की नीति(Blue Water Policy) अपनायी|
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