वर्ष कम्पनी
1498 ई. पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कम्पनी
1600 ई. अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी
1602 ई. डच ईस्ट इंडिया कम्पनी
1616 ई. डेनिस ईस्ट इंडिया कम्पनी
1664 ई. फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी
1731 ई. स्वीडिश ईस्ट इंडिया कम्पनी
🔸भारत के सामुद्रिक रास्तों की खोज 15वीं सदी के अन्त में हुई जिसके बाद यूरोपीयों का भारत आना आरंभ हुआ।
🔸यद्यपि यूरोपीय लोग भारत के अलावा भी बहुत स्थानों पर अपने उपनिवेश बनाने में सफल हुए पर इनमें से कइयों का मुख्य आकर्षण भारत ही था।
🔸सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक यूरोपीय कई एशियाई स्थानों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके थे और अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में वे कई जगहों पर अधिकार भी कर लिए थे।
🔸किन्तु उन्नासवीं सदी में जाकर ही अंग्रेजों का भारत पर एकाधिकार हो पाया था
🔸कोलंबस भारत का पता लगाने अमरीका पहुँच गया और सन् 1487-88 में पेडरा द कोविल्हम नाम का एक पुर्तगाली नाविक पहली बार भारत के तट पर मालाबार पहुँचा।
🔸भारत पहुचने वालों में पुर्तगाली सबसे पहले थे इसके बाद डच आए और डचों ने पुर्तगालियों से कई लड़ाईयाँ लड़ीं। भारत के अलावा श्रीलंका में भी डचों ने पुर्तगालियों को खडेड़ दिया।
🔸डचों का मुख्य आकर्षण भारत न होकर दक्षिण पूर्व एशिया के देश थे। अतः उन्हें अंग्रेजों ने पराजित किया जो मुख्यतः भारत से अधिकार करना चाहते थे।
🔸आरंभ में तो इन यूरोपीय देशों का मुख्य काम व्यापार ही था पर भारत की राजनैतिक स्थिति को देखकर उन्होंने यहाँ साम्राज्यवादी और औपनिवेशिक नीतियाँ अपनानी आरम्भ की|
भारत में पुर्तगाली का आगमन
🔸17 मई 1498 को पुर्तगाल का वास्को-डी-गामा भारत के तट पर आया जिसके बाद भारत आने का रास्ता तय हुआ। वास्को- डी-गामा की सहायता गुजराती व्यापारी अब्दुल मजीद ने की ।
🔸उसने कालीकट के राजा जिसकी उपाधि ‘जमोरिन’थी से व्यापार का अधिकार प्राप्त कर लिया पर वहाँ सालों से स्थापित अरबी व्यापारियों ने उसका विरोध किया।
🔸1499 में वास्को-डी-गामा स्वदेश लौट गया और उसके वापस पहुँचने के बाद ही लोगों को भारत के सामुद्रिक मार्ग की जानकारी मिली।
🔸सन् 1500 में पुर्तगालियों ने कोचीन(केरल) के पास अपनी कोठी बनाई। शासक सामुरी (जमोरिन) से उसने कोठी की सुरक्षा का भी इंतजाम करवा लिया क्योंकि अरब व्यापारी उसके ख़िलाफ़ थे।
🔸इसके बाद कालीकट और कन्ननोर में भी पुर्तगालियों ने कोठियाँ बनाई। उस समय तक पुर्तगाली भारत में अकेली यूरोपी व्यापारिक शक्ति थी।
🔸उन्हें बस अरबों के विरोध का सामना करना पड़ता था। सन् 1510 में अल्बुकर्क ने बीजापुर के युसूफ आदिलशाह से गोवा को जीत लिया तथा उसे अपना प्रशासनिक केंद्र बनाया ।
🔸ये घटना जमोरिन को पसन्द नहीं आई और वो पुर्तगालियों के खिलाफ हो गया |
🔸1505 ई. में फ्रांसिस्को दी अल्मेड़ा भारत में प्रथम पुर्तगाली वायसराय बनाया|
🔸1509 ई. अल्फांसो द अल्बुकर्क भारत में पुर्तगालियों का वायसराय बन कर आया|उसने 1510 में कालीकट के शासक जमोरिन का महल लूट लिया।
🔸पुर्तगाली इसके बाद व्यापारी से ज्यादा साम्राज्यवादी नज़र आने लगे। वे पूरब के तट पर अपनी स्थिति सुदृढ़ करना चाहते थे।
🔸अल्बूकर्क के मरने के बाद पुर्तगाली और क्षेत्रों पर अधिकार करते गए। सन् 1571 में बीजापुर, अहमदनगर और कालीकट के शासकों ने मिलकर पुर्तगालियों को निकालने की चेष्टा की पर वे सफल नहीं हुए।
🔸1579 में वे मद्रास के निकच थोमें, बंगाल में हुगली और चटगाँव में अधिकार करने मे सफल रहे। 1580 में मुगल बादशाह अकबर के दरबार में पुर्तगालियों ने पहला ईसाई मिशन भेजा।
🔸वे अकबर को ईसाई धर्म में दीक्षित करना चाहते थे पर कई बार अपने नुमाइन्दों को भेजने के बाद भी वो सफल नहीं रहे। पर पुर्तगाली भारत के विशाल क्षेत्रों पर अधिकार नहीं कर पाए थे।
🔸उधर स्पेन के साथ पुर्तगाल का युद्ध और पुर्तगालियों द्वारा ईसाई धर्म के अन्धाधुन्ध और कट्टर प्रचार के कारण वे स्थानीय शासकों के शत्रु बन गए और 1612 में कुछ मुगल जहाज को लूटने के बाद उन्हें भारतीय प्रदेशों से हाथ धोना पड़ा।
हुगली पर अधिकार
🔸पुर्तगालियों ने हुगली पर अधिकार, वहां से गुजरने वाले जहाजों को लूटने के मकसद से किया था,
🔸24 जून 1632 से लेकर 24 सितंबर 1632 तक लगातार तीन महीने तक कासिम खान (मुगल सेनापति) ने 1,50,000 की सेना लेकर पुर्तगालियों पर हमला कर दिया,
🔸300 पुर्तगाली और 600 निवासी ईसाई सैनिक लड़ते रहे, जिसके बाद वे भाग खड़े हुए, उनके अधिकतर जहाज को गए, लेकिन कुछ किसी प्रकार सागर द्वीप तक पहुंचने में कामयाब हो गए,
🔸लेकिन वहां व्याप्त महामारी से अधिकतर जिंदा लोग मर गए। मुग़लों के 1000 लोग मारे गए, लेकिन उन्होंने 400 पुर्तगालियों को बंधक भी बना लिया,
🔸जिन्हें आगरा लाया गया। बंदियों को इस्लाम धर्म अपनाने या दासता स्वीकार करने का विकल्प दिया गया।
भारत में डचों का आगमन (1598)
🔸पुर्तगालियों की समृद्धि देख कर डच भी भारत और श्रीलंका की ओर आकर्षित हुए। सर्वप्रथम 1598 में डचों का पहला जहाज अफ्रीका और जावा के रास्ते भारत पहुँचा।
🔸1602 में प्रथम डच ईस्ट कम्पनी की स्थापना की गई जो भारत से व्यापार करने के लिए बनाई गई थी।
🔸इस समय तक अंग्रेज और फ्रांसिसी लोग भी भारत में पहुँच चुके थे पर नाविक दृष्टि से डच इनसे वरीय थे।
🔸डचो ने मसाले के स्थान पर भारतीय कपड़ों के निर्यात की अधिक महत्व दिया। सन् 1602 में डचों ने अम्बोयना पर पुर्तगालियों को हरा कर अधिकार कर लिया।
🔸इसके बाद 1612 में श्रीलंका में भी डचों ने पुर्तगालियों को खदेड़ दिया। उन्होंने मसुलिपटृम (1605),पुलीकट (1610), सूरत (1616), बिमिलिपटृम (1641), करिकल
- (1653),चिनसुरा (1653), क़ासिम बाज़ार, बड़ानगर, पटना, बालेश्वर (उड़ीसा) (1658), नागापट्टनम् (1658) और कोचीन (1663) में अपनी कोठियाँ स्थापित कर लीं।
🔸डचों का मुख्य उद्येश्य भारत से व्यापार न करके पूर्वी एशिया के देशों में अपने व्यापार के लिए कड़ी के रूप में स्थापित करना था|
- और दूसरे अंग्रेजों ओर फ्रांसिसियों ने उन्हें यहाँ और यूरोप दोनों जगह युद्धों में हरा दिया। इस कारण डचों का प्रभुत्व बहुत दिनों तक भारत में नहीं रह पाया था
भारत में अंग्रेजों का आगमन (1600 ई.)
🔸16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक एशियाई वस्तुएं यूरोप में पहुंचने लगी थी इस लाभ के व्यापार ने अंग्रेजों को पूर्व की ओर आने के लिए प्रेरित किया|1599 ई. में एक व्यापारी डेनहॉल भारत आया
🔸महारानी एलिजाबेथ प्रथम का चार्टर – ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 ई. में हुए पूर्व में अंग्रेजों या इंग्लैंड के व्यापार के संदर्भ में प्रथम महत्वपूर्ण कदम 31 दिसंबर 1600 उठाया गया|
🔸 महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने एक चार्टर (आदेश पत्र) जारी करके गवर्नर और लंदन की कंपनी के व्यापारियों को पूर्व में व्यापार के विशिष्ट अधिकार प्रदान किए|
🔸प्रारंभ में यह विशेषाधिकार 15 वर्षों के लिए प्रदान किए गए जिन्हें मई 1609 ई. में एक नवीन चार्टर (आदेश पत्र) के माध्यम से अनिश्चितकाल के लिए विस्तार कर दिया गया|
🔸यूरोप से आने वाली सभी व्यापारिक कंपनियों में अंग्रेज सबसे अधिक प्रभावशाली थे| इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम द्वारा 31 दिसंबर 1600 को ईस्ट इंडिया कंपनी को अधिकार पत्र प्रदान किया गया जिसके तहत वह 15 वर्षों तक भारत से व्यापार कर सकते थे|
🔸1609 ईस्वी में भारत में व्यापारिक कोठी खोलने के उद्देश्य से कैप्टन हॉकिंस मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में गया था| किंतु प्रारंभ में उसे अनुमति नहीं मिली|
🔸जब 1611 में कैप्टन मिड्डलेटन ने सूरत के निकट स्वामी होल में पुर्तगालियों के जहाजी बेड़े को परास्त किया तो मुगल सम्राट जहांगीर ने प्रभावित होकर 1613 ईस्वी में सूरत में स्थायी कारखाना स्थापित करने की अनुमति प्रदान कर दी|
🔸इससे पूर्व 1611 मसुलीपट्टनम में अंग्रेज एक कारखाना स्थापित कर चुके थे| बाद में पश्चिम तट की आने की स्थानों पर उन्हें कारखाना खोलने की अनुमति मिली|
अंग्रेजों का व्यापारिक विस्तार
🔸पुर्तगालियों के प्रभाव और शक्ति को समाप्त कर अंग्रेजों ने भारत के विभिन्न हिस्सों में कारखानों की स्थापना की 1623 ई. तक सूरत और मसूलीपट्टनम के अतिरिक्त अहमदाबाद में कारखाने खोले गए और कंपनी की सुरक्षा की दृष्टि से इनकी किलेबंदी की गई|
🔸1625 में अंग्रेजों ने सूरत की किलेबंदी की| अंग्रेजों ने 1639 में स्थानीय राजा से मद्रास लीज पर लिया| मद्रास एक बंदरगाह था और अंग्रेजों ने राजा को आधा सीमा शुल्क देने का वादा किया, इसके बदले में उन्होंने किलेबंदी करने और अपना सिक्का जारी करने का अधिकार प्राप्त कर लिया|
🔸1640 ई.में अंग्रेजों ने विजयनगर शासकों के प्रतिनिधि चंद्रगिरी के राजा से मद्रास छीन लिया यहां पर सेंट जॉर्ज किले का निर्माण किया गया जिसकी भीतर कारखाने खोले गए|
🔸1687 ईस्ट इंडिया कंपनी का मुख्यालय सूरत से मुंबई लाया गया और धीरे-धीरे स्थल जॉर्ज ऑक्सेनडेन (1662-1669), जेराल्ड आगियार (1669-77), और सर जॉन चाइल्ड ( 1682-90) के प्रशासन के दौरान इस समृद्धि की तरफ बढ़ने लगा|
🔸1661 ईस्वी में ब्रिटेन के सम्राट चार्ज द्वितीय ने पुर्तगाल की राजकुमारी से विवाह कर लिया जिसमें दहेज स्वरूप उसे बम्बई टापू मिल गया चार्ल्स ने इसे 10 पौण्ड वार्षिकी की मामूली के किराए पर ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया|
पूर्वी भारत में कंपनी का प्रभाव
🔸1630 के बाद पूर्वी भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभाव तेजी से बढ़ा | 1633 ई. में ओडिशा के बालासोर और 1651 में बंगाल के हुगली में कारखाने स्थापित किए गए|
🔸बिहार में पटना और बंगाल में ढाका और कासिम बाजार में भी कई कारखाने खोलें| 1658 ई. बंगाल, बिहार, उड़ीसा और कोरोमंडल तट सेंट जॉर्ज केले के नियंत्रण में आ गए|
🔸पूर्वी भारत में कंपनी को अपने व्यापार के लिए माल जैसे कपड़े का थान, सिल्क, चीनी और शोरा देश के अंदरूनी हिस्से में लाना पड़ता था|
🔸इसके लिए उन्हें कई जगह सीमा शुल्क देना पड़ता था कंपनी ने इन बाधाओं को दूर करने का प्रयत्न किया| 1651, 1656 और 1672 में प्राप्त फरमानो से उन्हें इन बाधाओं से मुक्ति मिली|
🔸अब उन्हें कुछ निश्चित राशि भारतीय राजाओं को देनी पड़ती थी 1680 में मुगल सम्राट ने कंपनी पर जजिया कर लगाया और इसके बदले में कंपनी को सूरत के अलावा सभी जगह सीमा शुल्क रहे तथा व्यापार करने की अनुमति दे दी|
भारत में डेनिस का आगमन (1616 ई.)
🔸 डेनमार्क की डेनिस ईस्ट इंडिया कंपनी 1616 ई. में स्थापित हुई| कंपनी भारत में अपनी स्थिति मजबूत करने में असफल रही और अंतत: 1845 तक अपनी सारी संपत्ति अंग्रेजों को बेच कर चले गये|
🔸डेनिसों ने 1620 ई. में त्रिकोबार ( तमिलनाडु ) तथा 1676 ई. में सेरामपुर ( बंगाल ) में अपनी कुछ फैक्ट्री और बस्ती बसाई थी, जिसमें सेरामपुर प्रमुख थी|
भारत में फ्रांसीसियों का आगमन (1664 ई.)
🔸फ्रांसीसियों ने भारत में अन्य यूरीपीय कंपनियों की तुलना में सबसे बाद में प्रवेश किया । भारत में पुर्तगाली डच अंग्रेज तथा डेन लोगो ने इनसे पहले अपनी व्यवसायिक कोठियों की स्थापना कर दी थी ।
🔸सन 1664 ई. में फ्रांस की सम्राट लुइ 14वें की समय उनके मंत्री कोल्बर्ट की प्रयासों से फ़्रांसीसी व्यापारिक कंपनी ‘कंपनी द इंड ओरिएंटल’ (कंपनी देस इंडस ओरिएंटल) की स्थापना हुई ।
🔸इस कंपनी का निर्माण फ्रांस की सरकार द्वारा किया गया था। तथा इसका सारा खर्च भी सर्कार ही वहन करती थी । इसे सरकारी व्यापारिक कंपनी भी कहा जाता था क्योकि यह कंपनी सरकार द्वारा संरक्षित थी|
🔸सरकार आर्थिक सहायता पर निर्भर करती थी ।सूरत में 1668 ई. में फ्रांसीसियों की प्रथम कोठी ई स्थापना फ्रैंक कैरो द्वारा की गई ।
🔸फ्रांसीसियों द्वारा दूसरी व्यपारिक कोठी की स्थापना गोलकुंडा रियासत के सुल्तान से अधिकार पत्त्र प्राप्त करने के पश्चात सन 1669 ई. मसूलीपट्टनम में की गई ।
🔸’पांडिचेरी’ की नींव फ़्रेंडोईस मार्टिन द्वारा सन 1673 ई. में डाली गई । बंगाल के नवाब शाइस्ता खां ने फ्रांसीसियों को एक जगह किराये पर दी जहाँ चंद्रनगर की सु्प्रसिद्ध कोठी की स्थापना की गई ।
🔸डचों ने 1639 ई. में पांडिचेरी को फ्रांसीसियों के नियंत्रण से छीन लिया किन्तु 1697 ई. के रिज्विक समझौते के अनुसार उसे वापस कर दिया ।
🔸फ्रांसीसियों द्वारा 1721 ई. में मारीशस, 1725 ई. में माहे (मालाबार तट) एवं 1939 ई. में कराईकल पर अधिकार कर लिया गया ।
🔸1742 ई. के पश्चात व्यापारिक लाभ कमाने के साथ साथ फ्रांसीसियों की राजनितिक महत्त्वकांक्षाए भी जाग्रत हो गई । परिणामस्वरुप अंग्रेज और फ्रांसीसियों के बीच युद्ध छिड़ गया । इन युद्धों को ‘कर्नाटक युद्ध’ के नाम से जानते है ।