आधुनिक बिहार का इतिहास|Modern History of Bihar Pdf

बिहार का पुराना नाम मगध है| बिहार जनसंख्या की दृष्टि से भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है जबकि क्षेत्रफल की दृष्टि से बारहवां राज्य हैं| तथा बिहार की राजधानी पटना का पुराना नाम पाटलिग्राम , पाटलिपुत्र था|

बिहार की स्थापना

12 दिसंबर 1911 को बिहार को अलग राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ| 22 मार्च 1912 को बंगाल से अलग राज्य बिहार की स्थापना हुई| प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को बिहार दिवस क रूप में मनाया जाता है| 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा की गयी हैं|

बिहार का पुराना नाम मगध है| बिहार जनसंख्या की दृष्टि से भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है जबकि क्षेत्रफल की दृष्टि से बारहवां राज्य हैं| तथा बिहार की राजधानी पटना का पुराना नाम पाटलिग्राम , पाटलिपुत्र था|

बिहार में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय का नाम पुरे विश्व में शिक्षा के क्षेत्र में शीर्ष पर था लेकिन कुल राजाओ की  राजनीतियों के कारण नालन्दा विश्वविद्यालय को जला  दिया गया| वहीं बिहार के भागलपुर में स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय जो की भारत में नालंदा विश्वविद्यालय के बाद दुसरे स्थान पर आता था उसे भी तोर दिया गया|

बिहार में कुल जिले

1951 में बिहार में जिलों की संख्या 18 , 1981 में जिलों की संख्या 31 तथा 1991 में कुल जिलों की संख्या 55 थी| 15 नवम्बर 2000 बिहार और झारखण्ड के विभाजन हुआ उस समय कुल जिलों की संख्या 55 ही थी किन्तु बिहार के दक्षिणी भाग के 18 जिले को झारखण्ड नाम का एक नए राज्य का गठन हुआ| वर्तमान में बिहार में कुल जिलों की संख्या 38 है|

आधुनिक बिहार का इतिहास

बिहार के जिलों के नाम

अरवल, अररिया, बांका, बेगूसराय, औरंगाबाद, बक्सर, भोजपुर, भागलपुर, पूर्वी चंपारण, गया, जमुई, गोपालगंज, दरभंगा, लखीसराय, कटिहार, मधुबनी, नालंदा, मुंगेर, मधेपुरा, जहानाबाद, खगड़िया, किशनगंज, कैमूर, मुजफ्फरपुर, नवादा, रोहतास, पूर्णिया, पटना, सहरसा, समस्तीपुर, सारण, शिवहर, शेखपुरा, सुपौल, सीतामढ़ी, वैशाली, पश्चिम चंपारण एवं सिवान

बिहार में यूरोपीय व्यापर

17 वीं सदी के आरम्भ में बिहार में आगमन : पुर्तगाली बिहार में व्यापर के लिए आने वाले प्रथम व्यापारी थे| उनका व्यापारी केंद्र हुगली था जहाँ से वे नाव द्वारा पटना आते – जाते थे| उस समय बिहार शोरा  के उत्पादन हेतु प्रसिद्ध था| इसी शोरा के उत्पादन ने औपनिवेशक शक्तियों को बिहार में आकर्षित करता था|

नोट: शोरा का प्रयोग बारूद में किया जाता है|

पुर्तगाली अपने साथ चीनी मिट्टी के बर्तन लाते थे और बदले में सूती वस्त्र व अन्य वस्तु ले जाते थे|

अंग्रेजों ने 1620 ई में जहाँगीर के शासन में पटना में अपनी फैक्ट्री स्थापित करने का प्रयास किया लेकिन वे असफल रहे| किन्तु कुछ समय पश्चात् शाहजहाँ के शासन काल में अंग्रेज फैक्ट्री स्थापित करने में सफल हो जाते है|

आरम्भ में अंग्रेज सूती वस्त्र , अनाज और शोरे से व्यापर किया| इसके बाद अंग्रेज नील के उत्पादन की ओर भी आकर्षित हुए| 1632 ई में डचो ने पटना में अपनी फैक्ट्री की स्थापित की|

डच

डचो ने 1632 में पटना कॉलेज के उत्तरी इमारत में फैक्ट्री की स्थापना की| डचो ने 17 वी शताब्दी के मध्य तक बिहार के कई स्थानों पर शोरे का गोदाम स्थापित किया| डच शोरा , सूती वस्त्र , चीनी , अफीम में रूचि रखते थे|

1757 में प्लासी के युद्ध में अंग्रेज विजय हुए और डचो की स्थिति कमजोर हो गयी| 1758 में अंग्रेजों ने बिहार के शोरे के व्यापर पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया| नवंबर 1759 में बद्र का युद्ध  हुआ जिसमे डचों की पराजय हुई , डचो का अस्तित्व समाप्त हो गया| डचो के पास कुछ ही क्षेत्र शेष रह गए|

कासिम बाजार व पटना के माल गोदामों को बचा पाने में डच सफल रहे| किन्तु 1824-25 में अंतिम रूप से डच व्यापारिक केंद्रों को अंग्रेजों ने अपने अधिकार में ले लिया|

ब्रिटिश कंपनी

1651 में पटना के गुलजारबाग में फैक्ट्री की स्थापना की तथा 1664 में जॉब  चारनाक को  फैक्ट्री का प्रमुख नियुक्त किया गया| औरंगजेब के शासनकाल में  बिहार के सूबेदार शाइस्ता खान ने अंग्रेजी कंपनी के व्यापार पर 1680 में 3.5% (2% कर तथा 1.5% जजिया)  कर लगा दिया| जॉब चारनाक को अच्छा नहीं लगा और उसने 1686 में  हुगली को लूट लिया|

इसके पश्चात् शाइस्ता खान ने बिहार , बंगाल के क्षेत्रों के सभी ब्रिटिश संपत्ति को जप्त करने का आदेश दे दिया तथा अंग्रेजो का व्यापार समाप्त होने लगा किन्तु 1690 में एक समझौता हुआ उसके पश्चात् अंग्रेजों को पुन: व्यापार करने की स्वतंत्रता प्राप्त हो गयी|

फर्रुखसियर के शासन काल में पटना फैक्ट्री को 1713 में बंद कर दिया गया| पुन: 1717 में बंगाल बिहार के क्षेत्र में व्यापार करने की स्वतंत्रता दे दी जाती हैं|

नोट: फ्रांसीसी यात्री टैबर्नियर ने पटना को दूसरा सबसे बड़ा नगर बताया| एक अन्य यात्री मैनरिक ने तत्कालीन पटना की जनसंख्या लगभग 2 लाख बताई| अंग्रेजी व्यापारी जॉन मार्शल तथा पीटर मुंडी का पटना आगमन हुआ तथा वे 1630-34 ई के मध्य तक बिहार में रहे|

प्लासी का युद्ध 1757

1757 में प्लासी के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया| इसी दौरान मीरजाफर , लार्ड क्लाइव ( बंगाल का गर्वनर) के साथ पटना आया तथा क्लाइव ने मीरन को बिहार का उप- नवाब नियुक्त किया|

तत्कालीन मुग़ल शहजादा अली गौहर अथवा शाह आलम द्वितीय ने बिहार के क्षेत्र में मुग़ल सत्ता को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया| जिस प्रकार वर्तमान में बिहार राज्य प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता है, ऐसी स्थिति पहले भी थी|

1783 में बिहार में पड़े आकाल का सामना करने के लिए पटना में अनाज भंडारण के लिए गोलघर का निर्माण करवाया गया था| इस समय बंगाल के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग थे|

अंग्रेजों ने अपने हितों की पूर्ति के लिए मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाया था| सही ढंग से कार्य न करने के कारण अंग्रेजों ने मीरजाफर को पद से हटा कर मीरकासिम को बंगाल का नवाब बना दिया| मीरकासिम ने भी अंग्रेजों के हस्क्षेप से बचने के लिए अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थान्तरित की| मुंगेर में बारूद का कारखाना मीरकासिम द्वारा स्थापित किया गया था|

अंग्रेजों की नीतियों से असंतुष्ट अवध के नवाब शुजाउदौला , मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय एवं बंगाल के नवाब मीरकासिम की संयुक्त सेना तथा हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में कंपनी की सेना मध्य बक्सर ( बिहार ) में 1764  में युद्ध हुआ| इस युद्ध में अंग्रेजों की विजय हुई|

अंग्रेजों को बंगाल , बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी ( कर वसूली का अधिकार ) प्राप्त हो गयी| इसके साथ ही अंग्रेजों का भारत में राजनैतिक विस्तार हो गया|

शाह आलम  द्वितीय द्वारा बिहार , बंगाल तथा उड़ीसा (वर्तमान ओडिशा) के क्षेत्रों में लगान वसूली का अधिकार ईस्ट इण्डिया कंपनी को प्रदान करने से बिहार के सामान्य प्रशासन पर भी अंग्रेजों का नियंत्रण स्थापित हो गया तथा 1765 में बिहार तथा बंगाल में द्वैध शासन लागू किया गया|

स्थायी बंदोबस्त 1793 में लागू किया गया इसमें बिहार को भी शामिल किया गया इस समय बंगाल के गवर्नर जनरल कार्नवालिस थे| इन्होने ही बिहार में स्थायी बंदोबस्त लागू किया|

  • नोट : 1885 में पटना व गया को अलग- अलग जिलों में संगठित किया गया|
  •        1866 में सारण जिले से अलग होकर चम्पारण जिले का निर्माण हुआ|
  •         1869 में पटना जिले के कुछ क्षेत्र को तिहत में मिलाया गया|
  •         1875 में तिरहुत से मुजफ्फरपुर तथा दरभंगा नामक दो क्षेत्रो में विभाजित किया गया|

अंग्रेजी शासनकाल में हुए कुछ महत्वपूर्ण विद्रोह

नोनिया विद्रोह

  • नोनिया विद्रोह 1770-1800ई के मध्य बिहार के प्रमुख शोरा उत्पादक केंद्रों तिरहुत , सारण , हाजीपुर और पूर्णिया में हुआ था| मुख्य रूप से नोनिया समुदाय द्वारा शोरा उत्पाद का कार्य किया जाता था तथा शोरा का उपयोग बारूद बनाने में किया जाता था|
  • बिचौलिए ( असामी ) कच्चा शोरा ब्रिटिश कंपनी को देते थे| ब्रिटिश कंपनी शोरा मूल्य प्रति मन 12 से 15 आना देते थे जबकि अन्य व्यापारी जो कंपनी से सम्बंधित नहीं थे वे 3 से 4 रुपए प्रति मन देते थे|
  • नोनिया समुदाय गुप्त रूप से शोरे का व्यापर अन्य व्यापारियों से करने लगे इस बात की जानकारी ब्रिटिश को होने पर ब्रिटिश ने क्रूरता करना आरम्भ कर दिया जिसका नोनिया समुदाय ने विरोध किया|

तामड़ विद्रोह

  • तामड़ विद्रोह जमीदारो के शोषण के विरुद्ध 1789-1794 ई के बीच छोटानागपुर ( झारखण्ड ) की उरौव जनजातियों द्वारा किया गया था| इसके अतिरिक्त इन जनजातियों द्वारा जमीदारों के विरोध में आंदोलन चलाया गया|

वहाबी आंदोलन

  • वहाबी आंदोलन के प्रवर्तक अरब निवासी मुहम्मद अब्दुल नवाब थे| भारत में वहाबी आंदोलन के संस्थापक रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) के निवासी सैय्यद अहमद बरेलवी थे भारत में इस आंदोलन प्रमुख केंद्र पटना था|
  • वहाबी सम्प्रदाय इस्लाम की एक शाखा है| वहाबी आंदोलन का उद्देश्य सामाजिक सुधार था किन्तु धीरे- धीरे इस आंदोलन ने राजनितिक एवं आर्थिक स्वरूप धारण कर लिया|

कोल विद्रोह ( 1831-32 ई )

छोटानागपुर क्षेत्रों में मुंडा , ओरौव , हो , महाली आदि जनजातियां निवास करती है, इन्हे मैदानी लोग कोल कहते है| इस विद्रोह का कारण यह था कि 1822 ई में ब्रिटिश सरकार ने चावल की शराब ( हड़िया ) पर उत्पादन शुल्क लगा दिया था, जिसे आदिवासी अपने उपयोग के लिए तैयार करते थे|

1831 ई में बुद्धों ( बुद्ध ) भगत के नेतृत्व में इस विद्रोह का आरम्भ हुआ , इस विद्रोह में बुद्धों भगत सहित हज़ारों विद्रोही मारे गए| बुद्धो भगत की मृत्यु के पश्चात् गंगा नारायण ने 1823 ई में इस विद्रोह का नेतृत्व किया| यह विद्रोह रुक – रुक कर 1848 ई तक चलता रहा तत्पश्चात इस विद्रोह का दमन कर दिया गया|

संथाल विद्रोह ( 1855-56 ई )

बिहार के भागलपुर से राजमहल तक संथाल बसावट क्षेत्र को दामन-ए-कोह नाम दिया गया था| संथाल जनजाति के लोगो ने कम्पनी के अमानवीय कानूनों , पुलिस , ठेकेदार तथा दिकुओं ( बाहरी लोगों ) के विरूद्ध विद्रोह कर दिया|

संथाल विद्रोह के प्रमुख नेता सिध्दू, कान्हू , चाँद , भैरव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी| ब्रिटिश सरकार द्वारा बलपूर्वक इस आंदोलन का दमन कर दिया गया| तथा चाँद और भैरव को पुलिस द्वारा गोली मार कर हत्या कर दी गयी तथा सिध्दू और कान्हू को फांसी दे दी गयी|

लोटा विद्रोह

लोटा विद्रोह 1856 ई में कैदियों द्वारा मुजफ्फरपुर जेल में किया गया था| इस विद्रोह का प्रमुख कारण यह था की पहले कैदियों को जेल में पीतल का लोटा दिया जाता था किन्तु बाद में सरकार ने इसके स्थान पर मिट्टी का लोटा दिए जाने की घोषणा की जिसके कारण कैदियों ने विद्रोह कर दिया|

बिहार में 1857ई की क्रांति

भारत और अंग्रेजों के विरूद्ध सबसे सशक्त जन आंदोलन 1857ई  का आंदोलन था| 1857 ई की क्रांति में बिहार की महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं| 12 जून 1857ई को बिहार के देवघर जिले के रोहिणी ग्राम ( झारखण्ड )  में सेना की 32वीं रेजिमेंट ने विद्रोह कर दिया|

32वीं रेजिमेंट में कार्यरत सैनिकों ने मेजर नार्मन लेस्ली तथा सहायक सार्जेंट डा ग्रांट की हत्या कर दी| 16 जून 1857 को तीन सैनिकों को फांसी दे दी गयी तथा 32वीं रेजिमेंट के कार्यालय को रोहिणी से भागलपुर स्थानांतरित कर दिया गया|

1857 ई की क्रांति के समय पटना के कमिश्नर विलियम थे तथा दानापुर स्थित सैनिक मुख्यालय मेजर जनरल लोहायत के नियंत्रण में था|

पटना में विद्रोह का नेतृत्व एक स्थानीय पुस्तक विक्रेता पीर अली ने किया था| पीर अली ने ब्रिटिश अधिकारी डा आर लॉयल एवं उसके सहयोगी की हत्या कर दी| पटना के कमिश्नर टेलर ने इस विद्रोह का दमन कर दिया|

मुंडा विद्रोह

मुंडा विद्रोह भारत के झारखंड राज्य में 1899 से 1900 तक चले विद्रोह को कहा जाता है। यह विद्रोह मुंडा जनजाति के लोगों के बीच जगह-जगह फैला था और उनके आदिकालिन स्वतंत्रता, भूमि और सामाजिक अधिकारों की मांगों का प्रतीक था।

यह विद्रोह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हुआ था और कई जगहों पर संघर्ष देखा गया जिसमें सुरक्षा बलों और विद्रोहियों के बीच हिंसक संघर्ष भी शामिल था। इस विद्रोह के परिणामस्वरूप, कई मुंडा जनजाति के लोगों की मृत्यु हो गई और विद्रोह का दबाव बढ़ गया।

मुंडा विद्रोह के नेतृत्वकर्ता

मुंडा विद्रोह का नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया था। वह मुंडा जनजाति के एक प्रमुख नेता और महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपने समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति में सुधार करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने अपने जीवन के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई और मुंडा जनजाति के अधिकारों की रक्षा की।

 

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