भारतीय संविधान (ऐतिहासिक पृष्ठभूमि)

संविधान क्या है?

किसी भी देश की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था के अनुरूप सरकार की नीतियों तथा कार्यों को संचालित करने की वैधानिक प्रक्रिया को संविधान कहते हैं|”

 भारतीय संविधान का विकास

🔸भारतीय संविधान एक लंबे संवैधानिक विकास का परिणाम है, भारत में ब्रिटिश 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में व्यापार करने आए |

महारानी एलिजाबेथ प्रथम के चार्टर द्वारा उन्हें भारत में व्यापार करने का विस्तृत अधिकार प्राप्त था |

🔸1765 में बंगाल बिहार और उड़ीसा में दीवानी( अर्थात राजस्व एवं दीवानी न्याय के अधिकार) अधिकार प्राप्त कर    लिए |

1858 में ‘सिपाही विद्रोह ‘ के परिणाम स्वरूप ब्रिटिश ताज ने भारत के शासन का उत्तरदायित्व अपने हाथ में ले लिया,

  • यह शासन 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति तक जारी रहा |

🔸1934 में एम. एन.राय (भारत में साम्यवाद आंदोलन के प्रणेता) के दिए गए सुझाव को अमल में लाने के उद्देश्य से 1946 में एक संविधान सभा का गठन किया गया|

  • और 26 जनवरी 1950 को संविधान अस्तित्व में आया |

 कंपनी का शासन 1773 -1858

 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट

🔸ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा कार्यों को नियमित व नियंत्रित करने हेतु ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया पहला कदम था |

पहली बार कंपनी को प्रशासनिक व राजनीतिक कार्यों की अनुमति मिली |

🔸इसके द्वारा भारत में केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी             गई |

बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल पद नाम दिया गया उसकी सहायता के लिए एक 4 सदस्य सहकारी परिषद का गठन किया गया | पहले गवर्नर जनरल लार्ड वारेन हेस्टिंग थे |

🔸कलकाता में 1774 में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई जिसमें मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे|

कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंध कर दिया गया |

🔸ब्रिटिश सरकार का कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (कंपनी की गवर्निंग बॉडी ) के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया|

 1781 का संशोधन अधिनियम

🔸रेगुलेटिंग एक्ट 1773 की खामियों को ठीक करने के लिए ब्रिटिश संसद ने अमेंडिंग एक्ट ऑफ 1781 पारित किया, जिसे एक्ट ऑफ सेटलमेंट / बंदोबस्त कानून के नाम से भी जाना जाता है |

इस कानून में राजस्व संबंधी मामलों तथा राजस्व वसूली से जुड़े मामलों को भी सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार के बाहर कर दिया गया |

🔸कलकाता के सभी निवासियों को सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कर दिया गया|

इस कानून में गवर्नर -जनरल -इन काउंसिल को प्रांतीय न्यायालयों एवं काउंसिलो ( प्रोविंशियल कोर्ट से एवं काउंसिल्स) के लिए नियम -विनियम बनाने के लिए अधिकृत किया|

 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट

🔸इस एक्ट ने कंपनी के राजनीतिक और वाणिज्य कार्यों को अलग- अलग कर दिया गया|

इसमें निदेशक मंडल को कंपनी के व्यापारिक मामलों के अधीक्षण की अनुमति तो दे दी,

  • लेकिन राजनीतिक मामलों के प्रबंधन के लिए नियंत्रण बोर्ड (बोर्ड ऑफ कंट्रोल) नाम से एक निकाय का गठन कर दिया|इस प्रकार द्वैध शासन की व्यवस्था का आरंभ किया गया|

🔸नियंत्रण बोर्ड को यह शक्ति थी कि वह ब्रिटिश नियंत्रण भारत में सभी नागरिक सैन्य सरकार व  राजस्व राजनीतिक गतिविधियों का अधीक्षण एवं नियंत्रण करें|

भारत में कंपनी के अधीन क्षेत्रों को पहली बार ब्रिटिश आधिपत्य का क्षेत्र कहां गया|

🔸ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के कार्यों और इसके प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया|

 1786 का अधिनियम

🔸1786 में लार्ड कार्नवालिस को बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया| उसने यह पद स्वीकार करने के लिए 2 शर्तें रखी |

उससे सेनापति अथवा commander-in-chief का पद भी दिया जाए उपरोक्त शर्तो को 1786 के कानून में प्रवधानों के रूप में जोड़ा गया|

🔸इसने गवर्नर जनरल को अधीनस्थ बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडेंसी की सरकारों के ऊपर अधिक नियंत्रणकारी शक्ति प्रदान की|

व्यापार के एकाधिकार को अगले 20 वर्षों की अवधि के लिए बढ़ा दिया|

🔸इसने व्यवस्था दी कि बोर्ड ऑफ कंट्रोल के सदस्यों तथा उनके कर्मचारियों को भारतीय राजस्व से ही भुगतान किया जाएगा|

 1813 का चार्टर अधिनियम

🔸इस कानून ने भारत में कंपनी के व्यापार एकाधिकार को समाप्त कर दिया, यानी भारतीय व्यापार को सभी ब्रिटिश व्यापारियों के लिए खोल दिया गया,

  • तथा इस कानून में चाय के व्यापार तथा चीन के साथ व्यापार में कंपनी के एकाधिकार को जारी रखा|

🔸इस कानून के द्वारा भारत के पश्चिमी क्षेत्रों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार की व्यवस्था दी गई |

इस कानून ने भारत के स्थानीय सरकारों को व्यक्तियों पर कर लगाने के लिए अधिकृत किया|

🔸कर भुगतान नहीं करने पर दंड की भी व्यवस्था की|

 1833 का चार्टर अधिनियम

ब्रिटिश भारत के केंद्रीयकरण की दिशा में यह अधिनियम निर्णायक कदम था|

🔸इसने बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया जिसमें सभी नागरिक और सैन्य शक्तियां निहित थी|

लार्ड विलियम बेंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे|

🔸इसके अंतर्गत पहले बनाए गए कानूनों को ‘नियामक कानून‘ कहा गया और नए कानून के तहत बने कानून को एक्ट या अधिनियम कहा गया|

🔸ईस्ट इंडिया कंपनी की एक व्यापारिक निकाय के रूप में की जाने वाली गतिविधियों को समाप्त कर दिया गया|

🔸 चार्टर एक्ट 1833 ने सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन शुरू करने का प्रयास किया,

  • जिसमें कहा गया कि कंपनी में भारतीय को किसी पद कार्यालय और रोजगार को हासिल करने से वंचित नहीं किया जाएगा|

 1853 का चार्टर अधिनियम

🔸1773 से 1853 के दौरान ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किए गए चार्टर अधिनियमों की श्रंखला में यह अंतिम अधिनियम था|

संवैधानिक विकास की दृष्टि से यह अधिनियम एक महत्वपूर्ण अधिनियम था |

 इस अधिनियम की विशेषताएं

🔸इसने पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया|

इसके तहत परिषद में 6 नए पार्षद और जोड़े गए जिन्हें विधान पार्षद कहा गया|

🔸दूसरे शब्दों में इसने गवर्नर जनरल के लिए नई विधान परिषद का गठन किया, जिसे भारतीय (केंद्रीय) विधान परिषद कहा गया|

इसमें वही प्रक्रिया अपनाई गई जो ब्रिटिश संसद में अपनाई जाती थी|

🔸इसमें सिविल सेवकों की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगिता व्यवस्था का आरंभ किया|

इस प्रकार विशिष्ट सिविल सेवा भारतीय नागरिकों के लिए भी खोल दी गई और इसके लिए 1854 में (भारतीय सिविल सेवा के संबंध में) मैकाले समिति की नियुक्ति की गई|

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