सिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी / हड़प्पा सभ्यता का इतिहास :-

🔸सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है सिंधु सभ्यता  के लिए साधारणतया तीन नामों का प्रयोग किया गया है सिंधु सभ्यता  ,सिंधु घाटी की सभ्यता और हड़प्पा  सभ्यता |

  • यह सभ्यता मेसोपोटामिया तथा मिस्त्र की सभ्यताओं की समकालीन थी |

सिंधु घाटी सभ्यता का उत्खनन :-

🔸सिंधु घाटी सभ्यता एक शहरी सभ्यता थी 1826 में चार्ल्स मेसन ने सर्वप्रथम इस सभ्यता की तरफ ध्यान आकर्षित      किया |

  • 1856 में जॉन बर्टन एवं  विलियन बर्टन दो भाइयों ने लाहौर से कराची के मध्य रेलवे लाइन बिछाते  समय हड़प्पा की ईंटों का प्रयोग किया था|

🔸1856 में एलेक्जेंडर कनिंघम ने हड़प्पा का सर्वे किया था जिन्हें भारतीय पुरातत्व विभाग का जनक भी कहा जाता है|

  • 1921 में भारतीय पुरातत्व विभाग के निर्देशक सर जॉन मार्शल के निर्देशन पर दयाराम साहनी ने हड़प्पा में उत्खनन किया|

🔸1922 में राखादास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो में उत्खनन  किया|

  • सर जॉन मार्शल ने इस सभ्यता का नाम सिंधु घाटी सभ्यता रखा क्योंकि आरंभिक सभी स्थल सिंधु नदी एवं उसकी सहायक नदियों के किनारों पर स्थित थे|

🔸इतिहासकार पिग्गट ने मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा को सिंधु घाटी सभ्यता की जुड़वा राजधानी कहां है |

विभिन्न विद्वानों ने सिंधु सभ्यता की तिथि का निर्धारण निम्नवत किया है ———

विद्वान                      निर्धारित तिथि                             जॉन मार्शल               3250 ई. पू.  – 2750 ई. पू.       अर्नेस्ट मैके              2800 ई. पू. – 2500 ई. पू.            माधवस्वरूप  वत्स     2700 ई. पू. – 2500 ई. पू.              सी. जे. गैड           2350 ई. पू.  – 1700 ई. पू.            मार्टिमर  व्हीलर        2500 ई. पू. – 1700 ई. पू.             फेयर सर्विस          2000 ई. पू – 1500 ई. पू.

  • अब तक इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान में पंजाब , सिंध,  बलूचिस्तान और भारत में पंजाब , गुजरात , राजस्थान, हरियाणा ,पश्चिमी उत्तर प्रदेश जम्मू – कश्मीर, पश्चिमी महाराष्ट्र के भागों में पाए जाते हैं |

🔸इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पूरास्थल सुत्कागेनडोर (बलूचिस्तान), पूर्वी पूरास्थल आलमगीरपुर (पश्चिमी उत्तर प्रदेश) उत्तरी पुरास्थल  मांडा (जम्मू कश्मीर),

  • तथा दक्षिणी पूरास्थल दायमाबाद (महाराष्ट्र )इसका आकार त्रिभुजाकार है तथा वर्तमान में लगभग 13लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है |

🔸प्राप्त साक्ष्यों से पता चलता है कि मोहनजोदड़ो की जनसंख्या एक मिश्रित प्रजाति की थी जिसमें कम से कम 4 प्रजातियां थी |

1. प्रोटो ऑस्ट्रेलायड (काकेशिय) 2. भूमध्य सागरीय 3. अल्पाइन 4. मंगोलॉयड |

🔸मोहनजोदड़ो के निवासी अधिकांशत: भूमध्य सागरीय थे |

हड़प्पा सभ्यता का इतिहास:-

  •  हड़प्पा के ध्वसावशेष के विषय में सर्वप्रथम जानकारी 1826 ईस्वी में चार्ल्स मेसन ने दी |

🔸1921 में दयाराम सहानी ने पंजाब( पाकिस्तान) के तत्कालीन मांटगोमरी सप्रति शाहिवाल जिले में रावी नदी के बाएं तट पर स्थित हड़प्पा का सर्वेक्षण किया|

  • 1923 में इसका नियमित उत्खनन आरम्भ हुआ|

🔸 1926 में माधवस्वरूप वत्स ने तथा वर्ष 1946 में मार्टिमर व्हीलर ने व्यापक स्तर पर उत्खनन कराया|

  • हड़प्पा से प्राप्त दो टीलों में पूर्वी टीले को नगर टीला तथा पश्चिमी टीले को दुर्ग टीले के नाम से संबोधित किया गया|

🔸यहां पर 6-6 कक्षो की 2 पंक्तियों में निर्मित कुल 12 कक्षो वाले एक अन्नागार के अवशेष प्राप्त है|

  • हड़प्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक ऐसा कब्रिस्तान स्थित है, जिसे समाधि R-37 नाम दिया गया है|

🔸सिंधु सभ्यता के अभिलेख युक्त मुहरे सर्वाधिक हड़प्पा से मिली हैं |

  • नगर की रक्षा के लिए पश्चिम की ओर स्थित  दुर्ग टीले को व्हीलर लोन माउंड A-B की संज्ञा दी है |

🔸इसके अतिरिक्त यहां से प्राप्त कुछ अन्य स्त्रोतों अवशेषों में एक बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र, शंख का बना बैल ,स्त्री के गर्भ से निकला हुआ पौधा  (जिसे उर्वरता की देवी माना गया है),

  • पीतल का बना इक्का, ईटों के वृत्ताकार चबूतरे,  गेहूं तथा जौ के दाने के अवशेष प्रमुख है |

 

 

 

 

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