भारत में संघीय व्यवस्था Pdf Download
भारत में संघीय व्यवस्था को अपनाया गया हैं| संविधान निर्माताओं ने संघीय व्यवस्था को दो कारणों से अपनाया – देश का बृहद आकार एवं सामाजिक- सांस्कृतिक विविधता| संघीय व्यवस्था से न केवल सरकार की शक्ति बढ़ेगी बल्कि क्षेत्रीय स्वायत्तता एवं राष्ट्रीय एकता में अभिवृद्ध होगी|
संविधान में कहीं भी संघ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया हैं| इसके स्थान पर संविधान का अनुच्छेद 1 भारत के राज्यों के संघ के रूप में परिभाषित करता हैं|
भारत की संघीय व्यवस्था कनाडाई मॉडल पर आधारित हैं| एक अत्यंत सशक्त केंद्र होने के आधार पर कनाडाई मॉडल, अमेरिका मॉडल से सर्वथा भिन्न हैं| भारत में संघीय व्यवस्था, कनाडाई व्यवस्था से इन आधारों पर समानता प्रदर्शित हैं|
संघीय सरकार एवं एकात्मक सरकार में अंतर
1. | दोहरी सरकार की व्यवस्था(राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सरकार) | एकल सरकार राष्ट्रीय सरकार होती हैं, जो क्षेत्रीय सरकार बना सकती हैं| |
2. | लिखित संविधान | संविधान फ़्रांस की तरह लिखित भी हो सकता है या ब्रिटेन की तरह अलिखित भी हो सकता हैं| |
3. | राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सरकारों के मध्य शक्तियों का विभाजन| | इसमें शक्तियों का कोई विभाजन नहीं होता है समस्त शक्तियां राष्ट्रीय सरकार में निहित होती हैं| |
4. | संविधान की सर्वोच्चता | संविधान जापान की तरह सर्वोच्च भी हो सकता हैं और ब्रिटेन की तरह नहीं भी हो सकता हैं| |
5. | कठोर संविधान | संविधान फ़्रांस की तरह कठोर भी हो सकता हैं और ब्रिटेन की तरह लचीला भी हो सकता हैं| |
6. | स्वतंत्र न्यायपालिका | न्यायपालिका स्वतंत्र भी हो सकती हैं नहीं भी हो सकती| |
7. | द्विसदनीय विधायिका | विधायिका ब्रिटेन की तरह द्विसदनीय भी हो सकती हैं और चीन की तरह एक सदनीय भी हो सकता| |
संघीय व्यवस्था की विशेषताएं
भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएं निम्नलिखित हैं|
द्वैध राजपद्धति
संविधान में संघ स्तर पर केंद्र एवं राज्य स्तर पर राजपद्धति को अपनाया गया| प्रत्येक को संविधान द्वारा क्रमश: अपने क्षेत्रों में संप्रभु शकियां प्रदान की गयी हैं| केंद्र सर्कार राष्ट्रीय महत्व के मामलों, जैसे- रक्षा, विदेशी, मुद्रा, संचार, आदि को देखती हैं, जबकि दूसरी तरफ राज्य सरकारें क्षेत्रीय एवं स्थानीय महत्व के मुद्दों को देखती हैं, जैसे- सार्वजानिक व्यवस्था, कृषि, स्वास्थ्य, स्थानीय प्रशासन आदि|
लिखित संविधान
हमारा संविधान न केवल लिखित अभिलेख हैं, वरन विश्व का सबसे विस्तृत संविधान भी है| मूलत: इसमें एक प्रस्ताव, 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभक्त) और 8 अनुसूचियां थी| वर्तमान समय (2016) में इसमें 450 अनुच्छेद (24 भागों में विभक्त) और 12 अनुसूचियां हैं| इसमें केंद्रीय एवं राज्य सरकारों की शक्तियों एवं उनके प्रयोग की विस्तृत विवेचना हैं| अत: यह दोनों के मध्य गलतफहमी और असहमति को उतपन्न नहीं होने देता|
शक्तियों का विभाजन
संविधान में केंद्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया इनमे सातवीं अनुसूची में केंद्र, राज्य एवं दोनों से संबंधित सूची निहित हैं| केंद्र सूची में 100 विषय है(मुख्य 97), राज्य सूची में 61 विषय (मुख्य 66) और समवर्ती सूची में 52 विषय (मुख्य 47) हैं| समवर्ती सूची के विषयों पर केंद्र एवं राज्य दोनों कानून बना सकते है|
संविधान की सर्वोच्चता
संविधान सर्वोच्च हैं, केंद्र या राज्य सरकार द्वारा प्रभावी कानूनों के विषय में इसकी व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए अन्यथा इन्हे उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में न्यायिक समीक्षा के तहत अवैध घोषित किया जा सकता हैं| इस तरह सरकार के घटकों ( विधायिका, कार्यकारी एवं न्यायिक ) को दोनों स्तरों पर संविधान द्वारा विधित क्षेत्र के अंतर्गत कार्य करना चाहिए|
कठोर संविधान
संविधान द्वारा शक्तियों का विभाजन एवं संविधान की सर्वोच्चता तभी बनाए रखी जा सकती हैं, जब संविधान में संशोधन की प्रक्रिया कठोर हो| केंद्र एवं राज्य सरकारों की समान संस्तुति से ही संशोधन किए जा सकते हैं| इन प्रावधानों के संशोधन हेतु संसद के विषय बहुमत एवं संबंधित राज्यों में से आधे से अधिक की स्वीकृति अनिवार्य होती हैं|
स्वतंत्र न्यापालिका
संविधान ने दो कारणों से उच्चतम न्यायालय के नेतृत्व में स्वतंत्र न्यायपालिका का गठन किया हैं| एक अपनी न्यायिक समीक्षा के अधिकार का प्रयोग कर संविधान की सार्विचिता को स्थापित करना, और दूसरा केंद्र एवं राज्य के बीच विवाद के निपटारे के लिए संविधान ने विभिन्न तरीकों से न्यायपालिका को स्वतंत्र बनाया हैं, जैसे- न्यायाधीशों के कार्यकाल की सुरक्षा, निश्चित सेवा शर्ते आदि|
द्विसदनीय
संविधान ने द्विसदनीय विधायिका की स्थापना की हैं- उच्च सदन (राज्य सभा) और निम्न सदन (लोकसभा)| राज्यसभा, भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं| जबकि लोकसभा भारत के लोगों का| राज्यसभा केंद्र के अनावश्यक हस्तक्षेप से राज्यों के हितों की रक्षा करती हैं|
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एकात्मक सरकार की विशेषताएं
संघीय ढांचे के आलावा भारतीय संविधान की निम्नलिखित एकात्मक या गैर-संघीय विशेषताएं भी हैं, जो इस प्रकार हैं|
सशक्त केंद्र
शक्तियों का विभाजन केंद्र के पक्ष में हैं, जो संघीय दृष्टिकोण के काफी विरुद्ध हैं| केंद्रीय सूची में राज्य के मुकाबले ज्यादा विषय हैं| केंद्रीय सूची में ज्यादा महत्वपूर्ण विषय शामिल हैं| समवर्ती सूची में केंद्र को प्राथमिकता दी गयी हैं| अंतत: अवशेषीय शक्तियों में भी केंद्र प्रमुख हैं, जबकि अमेरिका में ये राज्यों में निहित हैं| इस तरह संविधान केंद्र को सशक्त बनता हैं|
एकल संविधान
सामान्यत: एक संघ में राज्यों के केंद्र से हटाकर अपना संविधान बनाने का अधिकार होता हैं| भारत में इससे इतर राज्यों को ऐसी कोई शक्ति नहीं दी गयी हैं| भारतीय संविधान सिर्फ केंद्र का ही नहीं, राज्यों का भी हैं| राज्य एवं केंद्र दोनों को इसी एक ढांचे का पालन अनिवार्य हैं| सिर्फ जम्मू एवं कश्मीर एक उपवाद हैं जिसका अपना पृथक संविधान हैं|
संविधान का लचीलापन
संघीय प्रणालियों की तुलना में भारतीय संविधान में संशोधन प्रक्रिया कम कठोर हैं| संविधान के हिस्से को संसद द्वारा साधारण या विशेष बहुमत द्वारा एकल प्रणाली से संशोधित किया जा सकता हैं| संविधान संशोधन की शक्ति सिर्फ केंद्र में निहित हैं अमेरिका में राज्य भी संविधान संसोधन का प्रस्ताव रख सकते हैं|
राज्य प्रतिनिधित्व में समानता का अभाव
राज्यों की जनसंख्या के आधार पर राज्यसभा में प्रतिनिधित्व दिया जाता हैं| अत: सदस्य्ता में 1 से 31 तक की भिन्नता हैं| अमेरिका में राज्यों के सिद्धांत को उच्च सदन में पूर्णरूप से महत्ता दी जाती हैं| इस तरह अमेरिका सीनेट में 100 सदस्य होते हैं, प्रत्येक राज्य से दो| यह सिद्धांत छोटे राज्यों के लिए सुरक्षा कवच के समान होता हैं|
Conclusion |
आशा है की आप इस आर्टिकल को अच्छे समझ गए होंगे और यदि आप के मन में इस आर्टिकल से सम्बंधित कोई सवाल हो तो आप मुझे कमेंट बॉक्स में msg कर सकते हैं|
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