होमरूल लीग आंदोलन: स्थापना का उद्देश्य, उद्भव

होमरूल लीग का अर्थ: – होमरूल का अर्थ स्वशासन होता है। भारतीय राजनीति में इस शब्द की प्रेरणा मैडम एनीबेसेन्ट से प्राप्त हुई।

अर्थात होमरूल का तात्पर्य एक ऐसी स्थिति से है जिसमें किसी देश का शासन वहाँ के स्थायी नागरिकों के द्वारा ही चलाया जाता है।

जनता में ब्रिटिश नियंत्रण को कम करने के लिये होमरूल को सर्वप्रथम एक आंदोलन के रूप में 1870 से 1907 के बीच आयरलैंड में चलाया गया था।

होमरूल लीग की स्थापना का उद्देश्य  :

1. प्रथम  उद्देश्य भारत के लिए स्वशासन प्राप्त करना था। एनी बेसेन्ट भारत को उसी तरह का स्वराज्य दिलाना चाहती थी जैसा कि ब्रिटिश साम्राज्य के दूसरे उपनिवेशों में था।

श्रीमती ऐनी बेसेन्ट ने होमरूल आन्दोलन का आशय स्पष्ट करते हुए अपने साप्ताहिक पत्र ‘कामन वील’ के प्रथम अंक में लिखा था कि,

‘‘राजनीतिक सुधारों से हमारा अभिप्राय ग्राम पंचायतों से लेकर जिला बोर्डों और नगरपालिकाओं, प्रान्तीय विधान सभाओं, राष्ट्रीय संसद के रूप में स्वशासन की स्थापना करना है। 

2. 1913 में जब ऐनी बेसेन्ट इंग्लैण्ड गईं तो आयरलैंड की होमरूल लीग से प्रभावित होकर इन्हें भारत को स्वतंत्र कराने के लिए होमरूल आन्दोलन प्रारम्भ करें।

श्रीमती ऐनी बेसेन्ट भारत को उसी तरह का स्वराज दिलाना चाहती थी, जैसा कि ब्रिटिश साम्राज्य के दूसरे उपनिवेशों में था अर्थात् भारत को अधिराज्य स्थिति  दिलाने की इच्छुक थी।

इसी उद्देश्य से भारत लौटने पर कांग्रेस में शामिल हुईं और उदारवादियों तथा उग्रवादियों को एकताबद्ध कर होमरूल आन्दोलन चलाया।

3. अखिल भारतीय होम रूल लीग, एक राष्ट्नीतिक संगठन था जिसकी स्थापना 1916 में बाल गंगाधर तिलक द्वारा भारत में स्वशासन के लिए राष्ट्रीय मांग का नेतृत्व करने के लिए “होम रूल” के नाम के साथ की गई थी।

भारत को ब्रिटिश राज में एक डोमिनियन का दर्जा प्राप्त करने के लिए ऐसा किया गया था।

होमरूल लीग का उद्भव : – 

1. बाल गंगाधर तिलक  16 जून 1914 को जेल से छूटे।  6 वर्ष की सजा काटने के बाद तिलक जेल से छूटे|  कैद का अधिकांश समय माण्डले (बर्मा) में बीता था।

भारत लौटे तो उन्हें लगा कि वह जिस देश को छोड़कर गए थे, वह काफी बदल गया है। स्वदेशी आन्दोलन के क्रांतिकारी नेता अरविन्द घोष ने सन्यास ले लिया तथा पांडिचेरी में रहने लगे थे। लाला लाजपत राय अमेरिका में थे।

तिलक को यह विश्वास हो गया था कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का पर्याय बन चुकी है और बिना इसकी अनुमति के कोई भी राष्ट्रीय आन्दोलन सफल नहीं हो सकता।

नरमपंथियों को समझाने-बुझाने, उनका विश्वास जीतने तथा भविष्य में अंग्रेजी हुकूमत दमन का रास्ता न अख्तियार करे, इस उद्देश्य से उन्होंने  घोषणा की

‘‘मैं साफ-साफ कहता हूँ कि हम लोग हिन्दुस्तान में प्रशासन व्यवस्था का सुधार चाहते हैं जैसा कि आयरलैंड में वहाँ के आन्दोलनकारी मांग कर रहे हैं।

अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने का हमारा कोई इरादा नहीं है। इस बात को कहने में मुझे कोई हिचक नहीं कि भारत के विभिन्न भागों में जो हिंसात्मक घटनाएँ हुई हैं, न केवल मेरी विचारधारा के विपरीत है, बल्कि उनके कारण हमारे राजनीतिक विकास की प्रक्रिया भी धीमी हुई है।’’

2. 1914 में वह 66 वर्ष की थी, उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत इंग्लैण्ड में हुई थी जहाँ उन्होंने स्वतंत्रा चिन्तन (फ्री थॉट) उग्र सुधारवाद (रेडिकलिज्म) फैबियनवाद और ब्रह्मविद्या (थियोसॉफी) के प्रचार में हिस्सा लिया।

1914 में ऐनी बेसेन्ट ने अपनी गतिविधियों का दायरा बढ़ाने का निर्णय किया और आयरलैंड की होमरूल लीग की तरह भारत में भी स्वशासन की माँग को लेकर आन्दोलन चलाने की योजना बनाई।

3. 1915 के शुरू में ऐनी बेसेन्ट ने दो अखबारों ‘न्यू इंडिया’ और ‘कामन वील’ के माध्यम से आन्दोलन छेड़ दिया। जनसभाएँ तथा सम्मेलन आयोजित किए। उनकी माँग थी कि जिस तरह से ब्रिटिश उपनिवेशों में वहाँ की जनता को अपनी सरकार बनाने का अधिकार दिया गया है, भारतीया जनता को भी स्वशासन का अधिकार मिले। अप्रैल 1915 के बाद ऐनी बेसेन्ट ने और भी सख्त कदम उठाया|

 

 

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