अंग्रेजी हुकूमत के दौर में 3 बार राजकीय दरबार का आयोजन दिल्ली में किया गया|
1877 का दरबार – सन 1877 का दरबार, जिसे प्रोक्लेमेशन दरबार , या घोषणा दरबार कहा गया हैं, 1 जनवरी 1877 को महारानी विक्टोरिया को भारत की समज्ञ घोषित और राजतिलक के लिए आयोजित हुआ था|
- इसमें लायटन के प्रथम अर्ल, रॉबर्ट बल्वर लाएटन, भारत के वायसरॉय, कई महाराजा, नवाब आये|
इस सभा में उद्ध-घोषणा पहले अंग्रेजी और फिर उर्दू में पढ़ी गई और इसके बाद 101 तोपों की सलामी दी गई| इसके बाद वायसराय ने सभा को संबोघित किया और महारानी की ओर से प्रत्येक राजा को एक स्वर्ण पदक एवं एक पताका प्रदान किया गया|
इस दरबार में दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए:
- प्रिवी काउंसिल का गठन
- वायसराय एवं अन्य राजाओं के लिए तोपों की सलामी की संख्या|
1903 का दरबार – यह दरबार एडवर्ड सप्तम एवं महारानी एलेक्जेंड्रा को भारत के सम्राट एवं समज्ञ घोषित करने हेतु लगा था| लार्ड कर्जन द्वारा दो पूरे सप्ताहों के कार्यक्रम आयोजित करवाये गये थे|
सन 1911 का दिल्ली दरबार – यह दरबार लार्ड हार्डिंग द्वारा आयोजित किया गया था| बादशाह जार्ज पंचम और उनकी महारानी इस अवसर पर भारत आये थे उनकी ताजपोशी का समारोह भी हुआ|
इसी दरबार में एक घोषणा के द्वारा बंगाल के विभाजन को रद्द कर दिया गया, साथ ही राजधानी को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता ) से दिल्ली लाने की घोषणा भी की गई|
जार्ज पंचम का राजतिलक
दिसंबर में महाराजा जार्ज पंचम एवं महारानी मैरी के भारत के सम्राट एवं सम्राज्ञ बनने पर राजतिलक समारोह हुआ था| व्यवहरिक रूप से प्रत्येक शासक राजकुमार, महाराज एवं नवाब तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति, सभापतियों को अपना व्यक्त करने पहुंचे|
सम्राटगण अपनी शाही राजतिलक वेशभूषा में आये थे| सम्राट ने आठ मेहराबों युक्त भारत का इम्पीरियल मुकुट पहना, जिसमें छह हजार एक सौ सत्तर उत्कृष्ट तराशे हीरे, जिनके साथ नीलम , पन्ना और माणिक्य जड़े थे|
- साथ ही एक शनील और मिनिवर टोपी भी थी, जिन सब का भार 965 ग्राम था| फिर वे लाल किले के एक झरोखे में दर्शन के लिये आये, जहां दस लाख से अधिक लोग दर्शन हेतु उपस्थित थे|