भारत की मिट्टियां

मृदा (Soil) –  भूमि के ऊपर पाई जाने वाली दानेदार परत है जिसका निर्माण मूल रूप से चट्टानों के विखंडित होने उनमें वनस्पति व जीवों के सड़ने,

  • गलने तथा जलवायु की क्रिया से निर्मित अन्य पदार्थों से लाखों वर्षों की प्रक्रिया के बाद मृदा का रूप लेती है|

मिट्टी के अध्ययन के विज्ञान को मृदा विज्ञान (Pedology)  कहा जाता है|

भारत की मिट्टी के प्रकार

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (Indian Council of Agricultural Research – ICAR) जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है|

कृषि अनुसंधान परिषद में भारत की मिट्टियों को 8 वर्गों में विभाजित किया है-

1. जलोढ़ मिट्टी

2. काली मिट्टी

3. लाल मिट्टी

4. लैटेराइट मिट्टी

5. दलदली मिट्टी

6. मरुस्थलीय मिट्टी

7. लवणीय मिट्टी

8. पर्वतीय मिट्टी

भारत  में सबसे ज्यादा क्षेत्रफल पर पाए जाने वाली मिट्टीयां 4 प्रकार की है|

1. जलोढ़ मिट्टी

2. लाल मिट्टी

3. काली मिट्टी

4. लैटेराइट मिट्टी

🔸 भारत की सभी मिट्टीयों में मुख्यता तीन तत्वों की कमी होती है|

1. नाइट्रोजन

2. फास्फोरस

3. ह्यूमस (humus)

◾️ ह्युमस ( humus)

🔸 यह भूरे-काले रंग का कार्बनिक पदार्थ है, पेड़-पौधों तथा जंतुओं के प्राकृतिक रूप से सड़ने-गलने ( विघटन ) से जो कार्बनिक पदार्थ होता है उसे ह्युमस कहते हैं|

1. जलोढ़ मिट्टी

🔸इसे दोमट मिट्टी और कछारी मिट्टी भी कहते हैं, जलोढ़ मिट्टी नदियों द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों से लाकर मैदानी क्षेत्रों में बिछा दी जाती हैं|

🔸जलोढ़ मिट्टी भारत में पाई जाने वाली सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी हैं|

क्षेत्रों  :- भारत का संपूर्ण उत्तरी मैदान और  मैदान

प्रचुरता : चुना तथा पोटेशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है

कमी  :-  नाइट्रोजन , फास्फोरस तथा ह्युमस की कमी है

🔸यह मिट्टी धान की खेती के लिए काफी अच्छी मानी जाती है तथा साथ ही साथ गेहूं , मक्का , तिलहन, आलू की खेती भी की जाती है|

◾️ जलोढ़ मिट्टी दो प्रकार की होती है —

1. बांगर (पुरानी जलोढ़ मिट्टी)

 2.खादर  (नई जलोढ़ मिट्टी )

2. काली मिट्टी

🔸इसका  निर्माण बेसाल्ट चट्टानों के टूटने फूटने से होता है|

     ज्वालामुखी विस्फोट

       बेसाल्ट चट्टाने

         काली मिट्टी

🔸काली मिट्टी को रेगुर मिट्टी, कपास की मिट्टी और लावा मिट्टी भी कहते हैं इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट ” की उपलब्धि के कारण होता है|

 क्षेत्र  :  –  मध्य प्रदेश , गुजरात , महाराष्ट्र , उत्तरी कर्नाटक प्रायद्वीपीय भारत में काली मिट्टी सबसे ज्यादा पाई जाती है|

🔸काली मिट्टी का सबसे ज्यादा विस्तार महाराष्ट्र में देखने को मिलता है, काली मिट्टी कपास की खेती के लिए बहुत उपयुक्त होती है|

काली मिट्टी को जूते हुए खेत की मिट्टी भी कहते हैं क्योंकि काली मिट्टी में जल सूखने की क्षमता अधिक होती है

  • और जब इसके ऊपर धूप पड़ती है तो इसमें दरारे पड़ जाती है जिस कारण इसे जूते हुए खेत की कहते हैं|

3.  लाल मिट्टी  

🔸लाल मिट्टी प्रायद्वीपीय भारत के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है इस मिट्टी का लाल रंग फेरिक ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण होता है|

🔸इस मिट्टी में लोहा और सिलिका की अधिकता होती है यह मिट्टी तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, नागालैंड, महाराष्ट्र , कर्नाटक के कुछ भागों में पाई जाती है|

सबसे ज्यादा इसका विस्तार तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश  में देखने को मिलता है यह मिट्टी बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त होती है|

🔸जब लाल मिट्टी जल को सोख लेती है यानी कि जलयोजीत रूप में होती है तब यह पीली दिखाई पड़ती है|

4. लैटेराइट मिट्टी

यह मिट्टी उस क्षेत्र में पाई जाती है जहां पर 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा हो और अत्यधिक गर्मी पड़े इसे मखरनी मिट्टी भी कहते हैं|

🔸 इस मिट्टी में लोहा ऑक्साइड और एलुमिनियम की मात्रा भरपूर होती है  लौह ऑक्साइड के कारण ही इस मिट्टी का रंग लाल होता है|

🔸इस मिट्टी में निक्षालन ( Leaching ) की प्रक्रिया देखने को मिलती है यह मिट्टी मुख्यता केरल , कर्नाटक तमिलनाडु और महाराष्ट्र के कुछ हिस्से में और उड़ीसा , मेघालय और असम के कुछ हिस्से में पाए जाते हैं|

  • लैटेराइट मिट्टी का सर्वाधिक विस्तार केरल में देखने को मिलता है|

🔸लैटेराइट मिट्टी चाय , कॉफी , इलायची, काजू की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है|लैटेराइट मिट्टी का उपयोग ईट बनाने के लिए किया जाता है|

5. दलदली मिट्टी

दलदली मिट्टी का विकास अत्यधिक वर्षा और वनस्पतियों के सड़ने के कारण होता है दलदली मिट्टी में ह्युमस की मात्रा अधिक होती है|

दलदली मिट्टी का विस्तार मुख्यत:  केरल , उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में देखने को मिलती हैं|

6.  मरुस्थलीय मिट्टी

इस मिट्टी की मृदा में नमी की कमी होती है इसका विस्तार भारत में मुख्यत:  राजस्थान,  गुजरात , दक्षिण पंजाब और दक्षिण हरियाणा में देखने को मिलती हैं|

🔸मरुस्थलीय भूमि के कारण यहां पर खाद्यन्न उगाना संभव नहीं है पर मोटा अनाज जैसे कि बाजरा , ज्वार और सरसों की खेती की जाती है|

7. लवणीय मिट्टी  

जब मिट्टी की प्रकृति क्षारीय होती है और उसमें नमक की मात्रा बढ़ जाती है तो उसे लवणीय मिट्टी कहते हैं|

लवणीय मिट्टी को रेह, कल्लर , ऊसर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है भारत में इस मिट्टी का सबसे ज्यादा विस्तार गुजरात के कच्छ के रण में  देखने को मिलती है|

8. पर्वतीय मिट्टी   

इस प्रकार की मृदा का विस्तार पर्वतों पर देखने को मिलता है जहां पर हिमालय पर्वत का विस्तार है, वहां पर इसी प्रकार की मिट्टी पाई जाती है|

🔸पर्वतीय मिट्टी का विस्तार जम्मू कश्मीर , लद्दाख , हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड,   सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश में देखने को मिलती है पर्वतीय ढ़ालो पर सेब , नाशपाती, चाय की खेती की जाती है|

                   PH Scale

मुख्यत: फसलों को उगाने के लिए भूमि का PH:-  6 – 7 होना चाहिए|

◾️ अम्लीय मिट्टी

अम्लीय मिट्टी में अम्लीयता  को कम करने के लिए चुने का प्रयोग किया जाता है|

◾️क्षारीय मिट्टी

क्षारीय मिट्टी में क्षारीयता को कम करने के लिए जिप्सम का उपयोग किया जाता है|

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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