◾️स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन
🔸स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन सरकार द्वारा बंगाल के विभाजन के विरोध स्वरूप चलाया गया था दिसंबर 1993 में अंग्रेज सरकार ने बंगाल विभाजन की सार्वजनिक घोषणा की|
इसके पीछे सरकार ने यह तर्क दिया कि बंगाल की विशाल आबादी के कारण प्रशासन का सुचारू रूप से संचालन करना कठिन हो गया है|
🔸यद्यपि कुछ हद तक सरकार का यह तर्क सही था किंतु वह अंग्रेजों की वास्तविक मंशा कुछ और ही थी उनका मुख्य उद्देश्य
- बंगाल को दुर्बल करना था क्योंकि उस समय बंगाल भारतीय के राष्ट्रवाद का सबसे प्रमुख केंद्र था|
◾️अंग्रेज सरकार ने बंगाल को दो तरह से विभाजन किया
1. भाषा के आधार पर
2. धर्म के आधार पर
🔸ब्रिटिश सरकार ने 20 जुलाई 1905 को बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा की|
🔸7 अगस्त 1905 को कलकत्ता के टाउन हॉल में एक ऐतिहासिक बैठक में स्वदेशी आंदोलन की विधिवत घोषणा की गई|
- इसमें ऐतिहासिक बहिष्कार पारित हुआ इसी के बाद से बंगाल के विभिन्न क्षेत्रों में बंग -भंग विरोध आंदोलन औपचारिक रूप से एकजुट होकर प्रारंभ हो गया|
🔸16 अक्टूबर 1905 को वायसराय लार्ड कर्जन ( 1899-1905 ई. ) के काल में बंगाल विभाजन हुआ| उस दिन बंगाल में ‘ शोक दिवस’ के रूप में मनाया गया|
- लोगों ने व्रत रखे, गंगा में स्नान किया तथा नंगे पांव पदयात्रा करते हुए वंदे मातरम गीत गाया|
- तभी से ‘ वंदे मातरम गीत ‘ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे प्रमुख गीत बन गया|
🔸रवींद्रनाथ टैगोर के सुझाव पर संपूर्ण बंगाल में इस दिन को राखी दिवस के रूप में मनाया गया|
🔸सर ऐण्डूज हेंडरसन लिथ फ्रेजर भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी थे उन्होंने वर्ष 1903 से 1908 तक बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में अपनी सेवाएं दी थी|
बंगाल विभाजन का विरोध (1903-1905)
🔸बंगाल विभाजन के विरोध में सुरेंद्रनाथ बनर्जी, के के मित्रा तथा पृथ्वीशचंद्र राय ने प्रमुख भूमिका निभायी|
🔸बंगाल विभाजन के विरोध में सरकार को प्रार्थना पत्र भेजे गए, सभाएं आयोजित की गई, निंदा प्रस्ताव पारित किए गए तथा
- हितवादी , संजीवनी एवं बंगाली जैसे पत्रों के माध्यम से बंगाल विभाजन का विरोध किया गया|
- बंगाल विभाजन के प्रस्ताव के विरोध में बांग्ला पत्रिका ‘ ‘ ‘संजीवनी’ के ‘ संपादक कृष्ण कुमार मित्र ‘ ने अपनी पत्रिका में 13 जुलाई 1905 में सर्वप्रथम सुझाव दिया|
🔸इसके पश्चात राष्ट्रवादी नेताओं ने बंगाल के विभिन्न भागों का दौरा किया तथा लोगों ने मैनचेस्टर के कपड़ों एवं लिवरपूल के बने नमक का बहिष्कार करने का आग्रह किया|
◾️ बंगाल विभाजन के समय कांग्रेस की स्थिति
🔸1905 में गोपाल कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में निम्न दो प्रस्ताव पारित किए गए
1. कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीतियों एवं बंगाल विभाजन की आलोचना करना
2. बंगाल में बंग-भंग विरोधी अभियान तथा स्वदेशी अभियान को समर्थन देना
◾️ बंगाल विभाजन के दौरान उग्रवादी नेताओं के विचार
🔸बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय , बिपिन चंद्र पाल एवं अरविंद घोष का मत था कि विरोध अभियान का प्रसार बंगाल से बाहर पूरे देश में हो तथा
- इसे विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तक सीमित न रखकर पूर्ण स्वतंत्रता संघर्ष के रूप में चलाया जाए जिससे पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके|
◾️ नरमपंथी नेताओं के विचार
🔸इस समय में कांग्रेस में नरमपंथिओ का प्रभुत्व था तथा वे इसे बंगाल के बाहर चलाए जाने के पक्ष में नहीं थे|
🔸1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन कोलकाता में आयोजित किया गया इस अधिवेशन में दादा भाई नौरोजी की अध्यक्षता में कांग्रेस ने प्रस्ताव पारित किया |
🔸कांग्रेस का लक्ष्य इंग्लैंड या अन्य अपनी उपनिवेश की तरह ‘स्वशासन या स्वराज’ है|
🔸धीरे-धीरे उदारवादियों एवं उग्रवादियों में विभिन्न विषयों पर मतभेद बढ़ते गए | 1907 में सूरत अधिवेशन में हुयी, जब कांग्रेस दो भागों में विभक्त हो गया|
🔸इस विभाजन का स्वदेशी अभियान एवं अन्य तत्कालिक आंदोलनों पर गंभीर प्रभाव पड़ा|
◾️ स्वदेशी या राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम
🔸रविंद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन से प्रेरणा लेकर कोलकाता में नेशनल कॉलेज खोला गया तथा अरविंद घोष इसके प्रधानाचार्य नियुक्त किए गए|
🔸15 अगस्त 1906 को नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन की स्थापना की गई| तथा
- मेघावी छात्रों को उच्च तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने हेतु जापान भेजने की व्यवस्था की गई|
◾️भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहन
🔸स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन के कारण भारतीय उद्योगों को अत्यधिक प्रोत्साहन मिला|
🔸अनेक कपड़ा मिले, साबुन और माचिस की फैक्ट्रियां, हथकरघा कारखाने, बैंक एवं बीमा कंपनियां खोली गई|
◾️ आंदोलन का सामाजिक आधार
🔸स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन के कारण बड़ी संख्या में छात्रों ने राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लेना शुरू कर दिया छात्रों ने स्वदेशी को व्यवहार रूप में अपनाया |
🔸बहिष्कार संबंधी धरनों एवं प्रदर्शनों में भूमिका निभाई किंतु उन्हें सरकार की दमनकारी नीति का आक्रोश झेलना पड़ा|
🔸जिन शिक्षा संस्थानों के छात्रों ने स्वदेशी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी उन्हें दी जाने वाली सरकारी सहायता एवं छात्रवृत्ति ऊपर रोक लगा दी गई|
🔸स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन के द्वारा अनेक मुस्लिम नेताओं ने राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लिया| इनमें बैरिस्टर अब्दुल रसूल, लियाकत हुसैन तथा गजनवी मौलाना आजाद प्रमुख थे|
आंदोलन का अखिल भारतीय स्वरूप
🔸बंगाल से प्रारंभ हुआ स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन शीघ्र ही देश के अन्य भागों में फैल गया|
🔸बाल गंगाधर तिलक जिन्होंने आंदोलन के अखिल भारतीय प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी|
◾️ बंगाल विभाजन रद्द
दिसम्बर 1911 में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम और महारानी मेरी के भारत आगमन पर उनके स्वागत हेतु दिल्ली में एक दरबार का आयोजन किया गया
🔸दिल्ली दरबार में ही 12 दिसंबर 2011 को सम्राट ने बंगाल विभाजन को रद्द घोषित किया था|
🔸विभाजन रद्द किए जाने के साथ ही सरकार ने भारत की राजधानी कोलकाता से बदलकर दिल्ली आने की घोषणा की जो मुस्लिम संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र था|
🔸किंतु मुसलमान इस निर्णय से खुश नहीं थे बिहार एवं उड़ीसा(1912 ई. ) को बंगाल से पृथक कर दिया गया तथा असम को एक पृथक प्रांत बना दिया गया|
◾️स्वदेशी आंदोलन की असफलता के कारण
🔸1908 तक स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन लगभग समाप्त हो ही गया था इसके कई कारण थे –
1. ब्रिटिश सरकार ने आंदोलनकारियों के प्रति कठोर रुख अपनाया|
2. आंदोलन आगे चलकर नेतृत्वविहीन हो गया क्योंकि 1908 तक अधिकांश नेता या तो गिरफ्तार कर लिए गए या देश के निर्वासित कर दिए गए थे|
- इसी समय अरविंद घोष तथा बिपिन चंद्र पाल ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया|
3. कांग्रेस के नेताओं के मध्य आंतरिक झगड़े के कारण 1907 के सूरत विभाजन के रूप में हुई इससे आंदोलन असफल हुआ|
4. आंदोलन समाज के सभी वर्गों में अपनी पैठ नहीं बना सका यह उच्च वर्ग, मध्यवर्गीय तथा जमीदारों तक ही सीमित रहा|
- मुसलमानों तथा किसानों को प्रभावित करने में यह पूर्णता असफल साबित हुआ|
5. असहयोग एवं सत्याग्रह मुख्यता सिद्धांत रूप में ही रहे तथा ज्यादा व्यावहारिक रूप नहीं ले सके|
1 thought on “बंगाल विभाजन 1905 व स्वदेशी आंदोलन”